2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी ने ओबीसी समुदायों को साधने के लिए रणनीतिक कवायद शुरू कर दी है। अखिलेश यादव बीजेपी के वोटबैंक में सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर चुके हैं।
अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव भले ही डेढ़ साल दूर हों, लेकिन सूबे की सियासत में हलचल अभी से तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 2027 के चुनावी समर के लिए अपनी रणनीति को धार देना शुरू कर दिया है। इस बार उनका पूरा फोकस अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के मतदाताओं पर है, जो पिछले कुछ चुनावों में भाजपा की जीत के प्रमुख आधार रहे हैं।
बीजेपी की रणनीति को उसी के अंदाज़ में जवाब
गौरतलब है कि 2017 में भाजपा ने “यादववादी राजनीति” के नैरेटिव को स्थापित कर गैर-यादव ओबीसी, दलित और सवर्ण वोटों को एकजुट किया था। इसी सोशल इंजीनियरिंग मॉडल के दम पर उसने समाजवादी पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया था। अब अखिलेश उसी रणनीति को भाजपा के खिलाफ मोड़ने की कोशिश में जुटे हैं।
2024 के लोकसभा चुनाव में “पीडीए”—पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक—वर्गों के गठजोड़ के सहारे सपा को जिस हद तक सफलता मिली, उसे अब और विस्तार देने की तैयारी हो रही है।
नोनिया, राजभर, चौरसिया—हर जाति पर नजर
अखिलेश यादव ने हाल में नोनिया समाज के प्रतिनिधियों से मुलाकात की, जो अपने नाम के साथ “चौहान” उपनाम का इस्तेमाल करते हैं। इसी क्रम में राजभर समुदाय को साधने के लिए उन्होंने लखनऊ की गोमती नदी के किनारे राजा सुहेलदेव की अष्टधातु प्रतिमा स्थापित करने का वादा किया। सुहेलदेव सम्मान स्वाभिमान पार्टी के प्रमुख महेंद्र राजभर की उपस्थिति में की गई यह घोषणा पूर्वांचल में राजनीतिक समीकरण बदलने की मंशा का संकेत देती है।
इसी तरह चौरसिया समाज को लुभाने के लिए अखिलेश ने पूर्व सांसद शिवदयाल चौरसिया की जयंती पर घोषणा की कि सत्ता में आने पर उनके नाम पर गोमती किनारे स्मारक बनाया जाएगा। यह समुदाय भले ही किसी एक सीट पर निर्णायक न हो, लेकिन चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
बीजेपी की राह पर सपा
भाजपा ने 2014 के बाद से माइक्रो सोशल इंजीनियरिंग के जरिए छोटी-छोटी जातियों को जोड़ा था। अमित शाह ने नेताओं को निर्देश दिया था कि वे इन समुदायों के महापुरुषों के पर्वों और कार्यक्रमों में शामिल हों। अब यही मॉडल सपा अपना रही है—मगर अपने अंदाज़ में।
2024 में सपा ने यादवों के अलावा कुर्मी, मौर्य, लोध जैसी ओबीसी जातियों को अपने पक्ष में मोड़ने में सफलता पाई थी। अब प्रजापति, लोहार, बढ़ई जैसी तमाम जातियों को भी अपने पाले में लाने की कोशिश की जा रही है।
लोक कलाकारों को भी मिलेगा मंच
सपा की रणनीति सिर्फ जातीय समीकरणों तक सीमित नहीं है। पार्टी ने लोक गायकों और सांस्कृतिक कलाकारों को भी अपने पक्ष में लाने की पहल की है। दिसंबर 2024 में सांस्कृतिक प्रकोष्ठ की बैठक में इन्हें ‘उचित सम्मान’ देने और सत्ता में आने पर सरकारी मंच उपलब्ध कराने का वादा किया गया।
2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर अखिलेश यादव बेहद सजग और रणनीतिक दिखाई दे रहे हैं। वे भाजपा की आजमाई हुई सोशल इंजीनियरिंग रणनीति को न सिर्फ चुनौती दे रहे हैं, बल्कि उसे अपने पक्ष में मोड़ने की हरसंभव कोशिश में जुटे हैं। अब देखना यह होगा कि क्या यह रणनीति उन्हें सत्ता की दहलीज़ तक पहुंचा पाएगी या नहीं।