
उत्तर प्रदेश की राजनीति में बृजभूषण शरण सिंह के बयान से सियासी हलचल तेज हो गई है। मुलायम सिंह यादव की तारीफ और वर्तमान सत्ता पर कटाक्ष से अटकलें तेज—क्या बृजभूषण सपा में जा सकते हैं?
अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजनीति में लंबा समय स्थिरता के साथ बीत जाए, ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है। हर कुछ वर्षों में यहां की सियासी फिजा में कोई न कोई बड़ा बदलाव दस्तक देता है। अब एक बार फिर सूबे की राजनीति में बड़ा उलटफेर होने की संभावनाएं तेज़ हो गई हैं। वजह है बीजेपी के पूर्व सांसद बृजभूषण शरण सिंह का एक ऐसा बयान, जिसने सियासी गलियारों में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है।
राजनीति का बदला हुआ चेहरा—बृजभूषण का दर्द
हाल ही में एक पॉडकास्ट में बृजभूषण शरण सिंह ने राजनीति के बदलते स्वरूप को लेकर अपना दर्द साझा किया। उन्होंने कहा—
“अब राजनीति का तरीका बदल चुका है। न मेरे हाथ में कुछ है, न मेरे फोन की कोई अहमियत रह गई है। आज विधायकों की स्थिति इतनी कमजोर हो गई है कि उन्हें अपने कामों के लिए डीएम के पैर तक पकड़ने पड़ते हैं।”
उनका यह बयान न केवल उनके व्यक्तिगत अनुभव को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वर्तमान सत्ता संरचना में जनप्रतिनिधियों की भूमिका किस हद तक सीमित हो गई है।
‘चिट्ठी वाला राज’—मुलायम सिंह यादव की कार्यशैली पर चर्चा
बृजभूषण ने मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री काल की एक घटना साझा करते हुए बताया कि वह विपक्ष के सांसद थे और मुलायम सिंह सत्ता में थे। लेकिन जब वे मुख्यमंत्री से मिलने गए, तो मुलायम सिंह ने लिफ्ट रोककर बाहर आकर न केवल उनका स्वागत किया, बल्कि उनकी चिट्ठी लेकर शाम तक दोनों काम भी करवा दिए।
इस प्रसंग के जरिए बृजभूषण ने सत्ता के साथ सम्मानजनक संवाद और पुराने राजनैतिक शिष्टाचार की तुलना वर्तमान स्थितियों से की, जो अब लगभग लुप्त हो चुके हैं।
सपा समर्थकों की सक्रियता और नया समीकरण
जैसे ही यह वीडियो सामने आया, समाजवादी पार्टी के समर्थकों ने इसे सोशल मीडिया पर तेजी से साझा करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही ‘क्षत्रिय समाज हमारा बड़ा भाई था और आज भी है’ जैसे संदेशों के ज़रिए यह संकेत भी दिए जा रहे हैं कि सपा, रामजी लाल सुमन के विवादित ‘राणा सांगा’ बयान से हुई क्षति की भरपाई की कोशिश में लगी है।
क्या सपा की ओर बढ़ रहे हैं बृजभूषण?
बृजभूषण के इस बयान को लेकर एक बड़ी अटकल यह भी है कि वे भारतीय जनता पार्टी से नाराज़ चल रहे हैं और अब समाजवादी पार्टी में अपनी राजनीतिक ज़मीन तलाश रहे हैं। हालांकि अभी तक उन्होंने ऐसा कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि बृजभूषण का नेताजी (मुलायम सिंह यादव) की तारीफ में कसीदे पढ़ना यूं ही नहीं है।
परिवार की राजनीतिक स्थिति—बड़ा फैक्टर
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि बृजभूषण शरण सिंह भले ही खुद चुनावी मैदान में न हों, लेकिन उनके बेटे करण भूषण सिंह इस बार कैसरगंज से बीजेपी के सांसद बने हैं, और दूसरे बेटे प्रतीक भूषण सिंह गोंडा से विधायक हैं। यानी उनका राजनीतिक परिवार अभी भी बीजेपी के भीतर सक्रिय है।
राजनीति में कुछ भी संभव है!
भले ही इन तमाम बातों को फिलहाल अटकलें माना जाए, लेकिन भारतीय राजनीति में अक्सर वही होता है जिसकी सबसे कम संभावना होती है। और जब बात उत्तर प्रदेश की राजनीति की हो, तब तो कुछ भी निश्चित नहीं कहा जा सकता।