कांग्रेस सरकार बचाने में अमर सिंह बने थे चाणक्य और संकटमोचन बने थे मुलायम सिंह यादव जी तो बची “मनमोहन” की सरकार

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कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट

डॉ. मनमोहन सिंह, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता, का 26 दिसंबर की रात 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्हें रात 8:06 बजे एम्स की मेडिकल इमरजेंसी में भर्ती कराया गया, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद डॉक्टर उन्हें बचा नहीं सके। रात 9:51 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद पूरे देश में शोक की लहर है। उनके सम्मान में भारत सरकार ने 7 दिनों का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है। इस दौरान राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा। उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।

एक कुशल प्रशासक और अद्वितीय अर्थशास्त्री

डॉ. मनमोहन सिंह का नाम भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। एक शिक्षाविद् और अर्थशास्त्री के रूप में उनका योगदान अभूतपूर्व रहा। उन्होंने 1991 में देश को आर्थिक संकट से उबारने में केंद्रीय भूमिका निभाई थी। तब वे प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री थे और उनकी नई आर्थिक नीतियों ने भारत को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दिलाई।

प्रधानमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल 2004 से 2014 तक रहा। इस दौरान उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले लिए, जिनमें भारत-अमेरिका परमाणु समझौता (न्यूक्लियर डील) सबसे महत्वपूर्ण है। इस समझौते ने भारत को ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में नई दिशा दी, लेकिन यह उनके राजनीतिक जीवन का एक बड़ा संकट भी साबित हुआ।

2008 का राजनीतिक संकट: समाजवादी पार्टी बनी संकटमोचक

डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-1 सरकार को 2008 में भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील के कारण वामपंथी दलों ने समर्थन वापस लेकर अल्पमत में ला दिया था। उस समय, समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख मुलायम सिंह यादव और उनके रणनीतिकार अमर सिंह ने सरकार को गिरने से बचाने में अहम भूमिका निभाई।

अमर सिंह ने न केवल सपा सांसदों को कांग्रेस के पक्ष में खड़ा किया, बल्कि कई निर्दलीय और छोटे दलों के सांसदों को भी समर्थन दिलवाया। इस रणनीतिक कदम ने यूपीए सरकार को बहुमत बनाए रखने में मदद की। डॉ. मनमोहन सिंह ने स्वयं इस सहयोग के लिए सपा नेतृत्व को धन्यवाद दिया था।

मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पीड़ितों के साथ

डॉ. मनमोहन सिंह का उत्तर प्रदेश से जुड़ाव उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान भी देखने को मिला। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ पीड़ितों का दर्द बांटने के लिए दंगा प्रभावित इलाकों का दौरा किया।

16 सितंबर 2013 को उन्होंने शाहपुर थाना क्षेत्र के बसीकला गांव में एक राहत शिविर का दौरा किया और पीड़ितों से बातचीत की। दंगा प्रभावित लोगों ने अपने अनुभव साझा किए और अपने परिवार के सदस्यों की हत्या का दर्दनाक विवरण दिया। डॉ. सिंह ने पीड़ितों को हर संभव मदद का आश्वासन दिया। हालांकि, इस दौरे पर विपक्षी दलों ने कांग्रेस पर केवल एक पक्षीय राजनीति करने का आरोप लगाया।

सादगी और नीतिगत दृढ़ता के प्रतीक

डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति में अपनी सादगी, नीतिगत दृढ़ता, और निष्कलंक छवि के लिए जाने जाते थे। उनके नेतृत्व में भारत ने आर्थिक और सामाजिक विकास के कई महत्वपूर्ण चरण पार किए। उनके योगदान को याद करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्य वरिष्ठ नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया है।

डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन: एक प्रेरणा

डॉ. सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पाकिस्तान के गाह में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आ गया। उनकी शिक्षा बेहद शानदार रही। उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों से उच्च शिक्षा प्राप्त की। भारतीय राजनीति में आने से पहले वे एक प्रख्यात अर्थशास्त्री के रूप में प्रतिष्ठित थे।

उनके निधन से देश ने न केवल एक नेता, बल्कि एक विचारक और प्रेरणा स्रोत खो दिया है। उनकी विरासत हमेशा जीवित रहेगी और उनकी नीतियां आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन देती रहेंगी।

samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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