सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षक एक बार फिर सरकार की नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतरने को तैयार हैं। 31 जुलाई 2025 को प्रदेश के सभी 75 जिलों में शिक्षा विभाग के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन होगा। शिक्षकों का यह आंदोलन सरकार की ट्रांसफर नीति, पुरानी पेंशन बहाली, ऑनलाइन हाजिरी और विभागीय उपेक्षा जैसे अहम मुद्दों पर केंद्रित रहेगा।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ (पांडेय गुट) द्वारा लिए गए इस निर्णय की घोषणा लखनऊ में आयोजित राज्य कार्यकारिणी की बैठक में की गई। संगठन का कहना है कि यदि सरकार ने समय रहते मांगें नहीं मानीं, तो आंदोलन को और व्यापक रूप दिया जाएगा।
प्रदर्शन के प्रमुख मुद्दे
1. ऑनलाइन-ऑफलाइन ट्रांसफर में भारी अनियमितता
शिक्षक संघ ने आरोप लगाया है कि प्रदेश में स्थानांतरण प्रक्रिया दोहरी नीति के तहत चलाई जा रही है – एक ओर ऑनलाइन प्रक्रिया के नाम पर पारदर्शिता का दावा किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर अफसरशाही के दबाव में ऑफलाइन ट्रांसफर को तरजीह दी जा रही है।
ऑनलाइन ट्रांसफर पाने वाले कई शिक्षकों को कार्यभार ग्रहण नहीं करने दिया जा रहा, जबकि ऑफलाइन स्थानांतरण की लिस्ट अब तक जारी नहीं हुई है। इससे शिक्षकों में जबरदस्त असंतोष है।
2. पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग
देशभर में उठ रही पुरानी पेंशन बहाली की मांग उत्तर प्रदेश में भी जोर पकड़ चुकी है। शिक्षकों ने सरकार से स्पष्ट रूप से कहा है कि राष्ट्रीय पेंशन योजना (NPS) के स्थान पर पुरानी पेंशन योजना (OPS) को लागू किया जाए। शिक्षकों का कहना है कि नई पेंशन व्यवस्था में सुरक्षा और स्थायित्व नहीं है, जिससे सेवानिवृत्त होने वाले शिक्षकों का भविष्य अधर में है।
3. 2000 से अधिक शिक्षकों को अब तक नहीं मिली पेंशन
प्रदेश में लगभग 2000 शिक्षक ऐसे हैं जिन्हें सेवानिवृत्त होने के बावजूद आज तक पेंशन का लाभ नहीं मिला है। शिक्षकों ने इसे गंभीर प्रशासनिक लापरवाही बताते हुए नाराजगी जाहिर की है।
संघ का कहना है कि जब तक सभी पात्र शिक्षकों को पेंशन नहीं दी जाती, तब तक वे संघर्ष जारी रखेंगे।
4. ऑनलाइन उपस्थिति प्रणाली का विरोध
शिक्षकों व छात्रों दोनों के लिए ऑनलाइन हाजिरी अनिवार्य करने के फैसले का भी जोरदार विरोध किया जा रहा है। संघ के अनुसार यह प्रणाली न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि इससे शिक्षण कार्य की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है।
शिक्षक मानते हैं कि तकनीकी संसाधनों की कमी और इंटरनेट की उपलब्धता ग्रामीण क्षेत्रों में इस व्यवस्था को फेल कर चुकी है।
5. 2300 तदर्थ शिक्षकों का वेतन अब तक लंबित
बैठक में यह मुद्दा भी उठा कि 2300 से अधिक तदर्थ शिक्षकों का वेतन महीनों से लंबित है और उनके नियमितीकरण की प्रक्रिया भी अधर में लटकी है। इससे न केवल इन शिक्षकों का आर्थिक संकट गहराया है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था पर भी असर पड़ा है।
शिक्षा विभाग की संवादहीनता और अधिकारियों का रवैया
प्रदेश अध्यक्ष डॉ. जितेंद्र कुमार पटेल और महासचिव अशोक कुमार सिंह ने कहा कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों का रवैया पूरी तरह असंवेदनशील और तानाशाहीपूर्ण हो चुका है। शिक्षकों की मांगों पर कोई सुनवाई नहीं हो रही और अधिकारियों के अहंकारपूर्ण व्यवहार से जमीनी स्तर पर समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं।
उन्होंने कहा कि विभागीय संवादहीनता ने हालात को बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
31 जुलाई को प्रदेशव्यापी प्रदर्शन की रणनीति
शिक्षक संघ ने घोषणा की है कि 31 जुलाई को सभी जिलों में जिला विद्यालय निरीक्षक (DIOS) कार्यालय के समक्ष धरना दिया जाएगा। यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण लेकिन सशक्त रूप में किया जाएगा, ताकि सरकार को शिक्षकों की समस्याओं की गंभीरता का एहसास हो।
प्रमुख नेता जो शामिल रहेंगे
डॉ. जितेंद्र कुमार पटेल (प्रदेश अध्यक्ष), अशोक कुमार सिंह (महामंत्री), भगवान शंकर त्रिवेदी, अमरनाथ सिंह, ओम प्रकाश त्रिपाठी, विजय कुमार सिंह, सुरेश चंद्र वैश्य।
सरकार की चुप्पी पर उठे सवाल
अब तक सरकार या शिक्षा विभाग की ओर से इस आंदोलन को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। शिक्षकों का कहना है कि यदि सरकार जल्द वार्ता नहीं करती, तो आंदोलन को राजधानी लखनऊ तक लाया जाएगा और मुख्यमंत्री आवास घेराव जैसी रणनीति पर भी विचार किया जा सकता है।
31 जुलाई का यह प्रदर्शन उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यदि सरकार ने समय रहते संवाद नहीं किया, तो यह आंदोलन राज्यव्यापी अशांति का रूप ले सकता है। शिक्षक वर्षों से अपनी बुनियादी मांगों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और अब उनका धैर्य जवाब दे रहा है।
ऐसे में सभी की निगाहें 31 जुलाई पर टिकी हैं — क्या यह दिन एक नई शिक्षा नीति के लिए आधार बनेगा, या फिर यह आंदोलन भी बाकी आंदोलनों की तरह सरकारी फाइलों में दबकर रह जाएगा?