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शिक्षा के मंदिर में दाग: जब शिक्षक ही करने लगें यौन शोषण

क्या नियुक्ति से पहले अनिवार्य होनी चाहिए चारित्रिक जांच?

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क्या शिक्षक बनते वक्त चारित्रिक जांच होनी चाहिए? जानें क्यों स्कूलों में बढ़ रहा यौन शोषण, पुरुष और महिला शिक्षकों की भूमिका, और कैसे रोकी जा सकती है यह विकृति।

▶️अनिल अनूप

जब आस्था टूटती है

शिक्षा को भारतीय संस्कृति में “विद्या ददाति विनयम्” की भावना के साथ जोड़ा गया है। गुरु को ईश्वर से भी ऊपर माना गया है – “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय…” जैसी पंक्तियाँ इस विश्वास को दर्शाती हैं। लेकिन जब इसी ‘गुरु’ की भूमिका में बैठा व्यक्ति बच्चों की गरिमा को तार-तार करने लगे, तो सवाल उठता है: क्या अब शिक्षा के मंदिर भी सुरक्षित नहीं बचे?

आज देशभर से आ रही खबरें यह संकेत दे रही हैं कि कुछ पुरुष शिक्षक छात्राओं के प्रति और कुछ महिला शिक्षक छात्रों के प्रति यौन हिंसा व दुर्व्यवहार में संलिप्त पाए जा रहे हैं। यह सिर्फ एक सामाजिक अपराध नहीं, बल्कि उस विश्वास की हत्या है जो एक विद्यार्थी अपने शिक्षक में करता है।

समस्या की गंभीरता: एक नजर घटनाओं पर

हाल ही में देश के विभिन्न हिस्सों से सामने आई घटनाओं ने समाज को झकझोर कर रख दिया है। कहीं शिक्षक व्हाट्सएप चैट के माध्यम से अश्लील संदेश भेज रहा है, तो कहीं खेल-शिक्षिका छात्रों को मानसिक रूप से शोषित कर रही है। स्कूल, जो कि एक पवित्र स्थल माना जाता है, वहाँ छात्रों को भय और असहायता का सामना करना पड़ रहा है।

यह घटनाएं बताती हैं कि यह समस्या किसी एक क्षेत्र या लिंग तक सीमित नहीं है – पुरुष शिक्षक छात्राओं को निशाना बना रहे हैं, और महिला शिक्षक छात्रों को। यह असंतुलन केवल यौन प्रवृत्ति की विकृति नहीं है, बल्कि मानसिक और नैतिक पतन का प्रतीक है।

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क्यों होते हैं शिक्षक यौन शोषण में संलिप्त?

इस प्रश्न का उत्तर ढूंढना आसान नहीं, परंतु कुछ संभावित कारणों का विश्लेषण किया जा सकता है:

1. नैतिक पतन और मानसिक विकृति:

कुछ शिक्षकों में यौन कुंठा या विकृत मानसिकता विकसित हो जाती है, जो शिक्षा के माध्यम से मिली ‘शक्ति’ का गलत उपयोग करते हैं।

2. व्यवस्था में चारित्रिक मूल्यांकन की कमी:

शिक्षकों की नियुक्ति के समय उनके नैतिक आचरण की कोई गंभीर पड़ताल नहीं होती। केवल डिग्री या प्रशिक्षण को योग्यता माना जाता है।

3. प्रभावहीन अनुशासनात्मक तंत्र:

कई बार स्कूल प्रबंधन और समाज ऐसे मामलों को दबाने की कोशिश करते हैं, जिससे अपराधी और भी साहसी हो जाता है।

4. साइबर माध्यम की निर्बाध पहुंच:

अब शिक्षक व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्मों के जरिए बच्चों से गैर-शैक्षणिक जुड़ाव बना लेते हैं, जो बाद में शोषण का जरिया बनता है।

महिला शिक्षकों द्वारा बच्चों के यौन शोषण पर चुप्पी क्यों?

यह एक दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है कि जब महिला शिक्षक किसी छात्र के साथ शारीरिक या मानसिक दुर्व्यवहार करती हैं, तो समाज उतनी गंभीरता से प्रतिक्रिया नहीं देता, जितना वह किसी पुरुष शिक्षक द्वारा छात्रा के साथ शोषण पर देता है। यह “लिंग आधारित पक्षपात” भी एक बड़ी समस्या है।

कई बार महिला शिक्षकों द्वारा किए गए अपराधों को “छात्र की सहमति” या “आकर्षण” का रूप दे दिया जाता है।

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इसके अलावा, सामाजिक मान्यताओं में “महिला अपराधी नहीं हो सकती” जैसी धारणाएं भी इन मामलों को पर्दे के पीछे धकेल देती हैं।

क्या समाधान है?

1. नियुक्ति से पहले चारित्रिक जांच अनिवार्य हो

पुलिस वेरिफिकेशन, मनोवैज्ञानिक परीक्षण, सामाजिक व्यवहार रिपोर्ट जैसी प्रक्रियाएं शिक्षक की नियुक्ति से पहले जरूरी की जाएं।

केवल डिग्री या TET (Teacher Eligibility Test) पास करना पर्याप्त नहीं होना चाहिए।

2. मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन

शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य का निरंतर आकलन किया जाए। प्रत्येक वर्ष किसी प्रमाणित काउंसलर द्वारा एक बार मूल्यांकन अनिवार्य हो।

3. सीसीटीवी निगरानी और डिजिटल इंटरैक्शन मॉनिटरिंग

कक्षाओं में सीसीटीवी कैमरे अनिवार्य किए जाएं।

शिक्षकों के छात्रों से डिजिटल माध्यमों (WhatsApp, Messenger आदि) पर जुड़ाव को नियंत्रित किया जाए।

4. सख्त दंड और कानूनी कार्रवाई

ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई और दृढ़ सजा दी जाए। यह न केवल पीड़ित को न्याय दिलाएगा, बल्कि अन्य अपराधियों के लिए संदेश भी होगा।

5. बच्चों की जागरूकता और साहसिक शिक्षा

बच्चों को यह सिखाया जाए कि किस व्यवहार को “अनुचित स्पर्श” कहा जाता है और उसे किस तरह रिपोर्ट किया जा सकता है।

छात्र-छात्राओं को मानसिक रूप से सशक्त बनाने के लिए लाइफ स्किल एजुकेशन को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।

समाज की भूमिका: मौन तोड़ना होगा

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समाज को अब इस विषय पर मौन रहने की आदत छोड़नी होगी। अभिभावकों को स्कूल प्रशासन से जवाबदेही मांगनी चाहिए। साथ ही, मीडिया को इस प्रकार की खबरों पर गंभीर और संतुलित रिपोर्टिंग करनी चाहिए — न अतिशयोक्ति और न ही दबाव में दबाना।

शिक्षक की भूमिका पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता

शिक्षक केवल पाठ्यक्रम पढ़ाने वाला एक कर्मचारी नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों का निर्माता है। यदि वही भ्रष्ट, विकृत और मानसिक रूप से अस्थिर होगा तो समाज की नींव ही डगमगा जाएगी।

चारित्रिक जांच, मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन, और अनुशासन की सख्ती अब केवल विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता बन चुकी है। वरना जिस मंदिर में ज्ञान का दीप जलना चाहिए, वहाँ सिर्फ भय, अपमान और अपराध की छाया रह जाएगी।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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