सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आज़मगढ़ में अपने नए आवास और पार्टी कार्यालय का शुभारंभ किया। यह कदम पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी के राजनीतिक विस्तार की नई इबारत लिखने की तैयारी का संकेत है।
जगदंबा उपाध्याय की खास रिपोर्ट
पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने 3 जुलाई को आज़मगढ़ में अपने नवनिर्मित आवास एवं अत्याधुनिक पार्टी कार्यालय का विधिवत उद्घाटन कर एक नया सियासी संदेश दिया। यह केवल गृहप्रवेश नहीं, बल्कि पूर्वांचल की राजनीति में सपा की वापसी का ऐलान माना जा रहा है। विशाल जनसभा और कार्यकर्ताओं की भारी भागीदारी ने यह स्पष्ट कर दिया कि पार्टी अब पूर्वांचल को केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि रणनीतिक युद्धभूमि के तौर पर देख रही है।
एक दूरदर्शी निर्णय: रणनीतिक ज़मीन की खरीदारी
गौरतलब है कि जनवरी 2021 में अखिलेश यादव ने आज़मगढ़-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग के निकट अनवरगंज क्षेत्र में समाजवादी पार्टी के नाम से 38 बिस्वा 16 कड़ी ज़मीन की रजिस्ट्री कराई थी। बाद में और भी ज़मीन खरीदी गई, जिससे यह क्षेत्रफल बढ़कर 68 बिस्वा तक पहुँच गया। यह ज़मीन भले ही भूखंड के रूप में खरीदी गई हो, परंतु इसका सियासी मोल बेहद व्यापक है — शहर के नज़दीक रहकर ग्रामीण और शहरी दोनों वोटबैंक पर पकड़ बनाना इसकी मुख्य मंशा प्रतीत होती है।
कार्यालय नहीं, राजनीतिक कमांड सेंटर
इस नवनिर्मित भवन का स्वरूप देखने से ही स्पष्ट हो जाता है कि इसे केवल आवासीय उपयोग के लिए नहीं, बल्कि एक राजनीतिक कमांड सेंटर के रूप में विकसित किया गया है। ज़िला मीडिया प्रभारी विवेक सिंह के अनुसार, ग्राउंड फ्लोर पर आगंतुकों से मिलने के लिए कक्ष, निजी सचिव का ऑफिस, सुरक्षा कर्मचारियों के लिए सुविधाएं और जनसंपर्क केंद्र जैसी व्यवस्थाएं की गई हैं। वहीं प्रथम तल पर अखिलेश यादव का निजी निवास, बैठक और विश्राम कक्ष मौजूद हैं।
इसके अलावा, भविष्य की योजनाओं के तहत एक भव्य ऑडिटोरियम का भी शिलान्यास किया जाएगा, जिसकी क्षमता 2000 लोगों की होगी। यह स्थान प्रशिक्षण सत्रों, बैठकें और सांस्कृतिक आयोजनों का केंद्र बनेगा।
आजमगढ़: अब सिर्फ गढ़ नहीं, सपा का मस्तिष्क
मुलायम सिंह यादव जिस आज़मगढ़ को अपनी “धड़कन” कहते थे, अब अखिलेश यादव भी उसे अपना सियासी केंद्र मानते हैं। यह आवास मात्र एक घर नहीं, बल्कि एक वैचारिक प्रयोगशाला है, जहां से पूर्वांचल की राजनीतिक दिशा तय की जाएगी। यहां से अखिलेश यादव न केवल नीतिगत फैसले करेंगे बल्कि कार्यकर्ताओं के साथ सीधा संवाद स्थापित कर संगठनात्मक ढांचे को भी नई ऊर्जा देंगे।
सत्ता की ओर बढ़ता आत्मविश्वास
आजमगढ़ में सपा की पकड़ दशकों पुरानी है। 2012, 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में जिले की अधिकांश सीटों पर पार्टी का परचम लहराता रहा है। लोकसभा में भी यह सीट सपा के लिए शुभ रही है—मुलायम सिंह यादव (2014), अखिलेश यादव (2019), और धर्मेन्द्र यादव (2024) यहां से निर्वाचित हो चुके हैं। यही कारण है कि यह नया केंद्र न केवल भावनात्मक बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी पार्टी के लिए बेहद अहम है।
पूर्वांचल में 164 सीटें: एक विशाल संभावनाशील मैदान
पूर्वांचल के 28 जिलों में 164 विधानसभा सीटें हैं। 2017 में सपा ने जहां मात्र 14 सीटें जीती थीं, वहीं 2022 में यह संख्या बढ़कर 53 तक पहुंची। यह वृद्धि भले ही सरकार बनाने के लिए पर्याप्त न रही हो, लेकिन संगठन के लिए यह संकेत अवश्य था कि जमीनी पकड़ अब भी मजबूत की जा सकती है।
यही वजह है कि अखिलेश यादव का यह नया केंद्र सिर्फ एक निर्माण कार्य नहीं, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारी का प्रतीक है। इस कार्यालय से हर विधानसभा क्षेत्र में सांगठनिक कार्यक्रम, कार्यकर्ता सम्मेलन और रणनीतिक संवाद अभियान चलाए जाएंगे।
आज़मगढ़ से निकलेगा बदलाव का सूरज?
राजनीतिक संकेत साफ हैं—समाजवादी पार्टी अब प्रतीक्षा नहीं कर रही, वह पहल कर रही है। अखिलेश यादव का आज़मगढ़ में स्थायी ठिकाना बनाना यह दर्शाता है कि पार्टी पूर्वांचल को चुनावी रणभूमि के रूप में पूरी गंभीरता से ले रही है। ज़मीन की रणनीतिक खरीद, शानदार भवन का निर्माण और कार्यकर्ताओं को संगठित करने का क्रम—यह सब मिलकर एक नए राजनीतिक अध्याय की प्रस्तावना लिख रहे हैं।
2027 में सपा क्या सत्ता के शिखर पर लौटेगी, यह तो समय बताएगा। परंतु इतना तय है कि इसकी नींव आज़मगढ़ की इसी ज़मीन पर डाली जा चुकी है।