google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
खास खबर

“पत्रकार नहीं, अब प्रवक्ता हैं न्यूज़ रूम में!” — अनिल अनूप का बेबाक विश्लेषण

फेक न्यूज़, टीआरपी और सत्ता की कठपुतली: पत्रकारिता पर अनिल अनूप की खरी-खरी

IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
IMG_COM_202505222101103700

ब्रजकिशोर सिंह की रिपोर्ट

अ़ंबाला। नगर के प्रतिष्ठित सभागार में आयोजित शैक्षणिक सम्मेलन का माहौल उस समय बेहद विचारोत्तेजक हो गया, जब समाचार दर्पण समूह के संस्थापक, संपादक और चर्चित लेखक-पत्रकार अनिल अनूप मंच पर आए।

विषय था – “आज की हिंदी पत्रकारिता की बिगड़ती साख” और प्रस्तुति थी – तार्किक, तथ्यपरक और भावनाओं से ओतप्रोत।

✍️ हिंदी पत्रकारिता: स्वर्णिम अतीत से बाज़ारू वर्तमान तक

अपने उद्घाटन वक्तव्य में अनिल अनूप ने हिंदी पत्रकारिता की ऐतिहासिक विरासत को रेखांकित करते हुए कहा —

 “यह वही भाषा है जिसने स्वतंत्रता संग्राम की चेतना को जन-जन तक पहुँचाया था। हिंदी समाचार पत्रों ने विचारधारा, जागरूकता और जनजागरण की मशाल उठाई थी। लेकिन आज वही पत्रकारिता, विज्ञापनदाताओं और राजनीतिक एजेंडा चलाने वालों की कठपुतली बन गई है।”

उन्होंने कहा कि पहले संपादक विचारशील होता था, अब वह प्रबंधक बन गया है। “न्यूज़रूम अब जनहित के लिए नहीं, ब्रांड बिल्डिंग और राजनीतिक लॉबिंग के लिए चल रहे हैं।”

📉 मूल्य, विवेक और साख की गिरावट

अनिल अनूप ने विस्तार से समझाया कि वर्तमान हिंदी पत्रकारिता में साख क्यों गिर रही है:

1. संपादकीय स्वतंत्रता का क्षरण – “संपादकों से ज्यादा प्रभाव अब मैनेजमेंट और विज्ञापन एजेंसियों का है।”

2. बाज़ारवाद का दबाव – “सच्ची खबरों की जगह अब ‘वायरल खबरों’ ने ले ली है।”

3. फेक न्यूज़ का बोलबाला – “सत्यापन का स्थान सनसनी ने ले लिया है। कई बार खबर पहले चलती है, फिर सच्चाई खोजी जाती है।”

4. टेलीविज़न और डिजिटल की ‘चिल्ला-चिल्ली‘ – “पत्रकार अब प्रश्नकर्ता नहीं, प्रवक्ता बनते जा रहे हैं।”

📲 सोशल मीडिया का हस्तक्षेप और अवसर

उन्होंने स्वीकार किया कि सोशल मीडिया एक ओर जहाँ सूचनाओं का लोकतंत्रीकरण कर रहा है, वहीं अफवाहों और अधूरी खबरों का सबसे बड़ा स्रोत भी बन गया है।

“हर व्यक्ति पत्रकार बन बैठा है, लेकिन बिना प्रशिक्षण, बिना उत्तरदायित्व।”

🌱 उपाय: पत्रकारिता को पुनर्जीवित कैसे करें?

अनिल अनूप ने जोर देकर कहा कि हिंदी पत्रकारिता को पुनर्जीवित करने के लिए हमें कुछ मूलभूत उपाय अपनाने होंगे:

  • पत्रकारिता प्रशिक्षण संस्थानों में नैतिकता आधारित पाठ्यक्रम अनिवार्य हों।
  • निष्पक्ष और स्वतंत्र मीडिया के लिए वैकल्पिक आर्थिक मॉडल विकसित हों।
  • युवा पत्रकारों में भाषा की गरिमा और जनसरोकारों की चेतना जगाई जाए।
  • पाठकों और दर्शकों को भी जवाबदेह बनाया जाए — वे जैसा देखेंगे, वैसा ही मीडिया बनेगा।

🎤 सवाल-जवाब में भी दिखा गहराई का असर

भाषण के बाद संवाद सत्र में अनिल अनूप ने युवाओं से जुड़े प्रश्नों का सहज, सटीक और प्रेरणादायी उत्तर दिया। एक छात्र ने पूछा कि “क्या आज भी पत्रकार बदलाव ला सकते हैं?”

उन्होंने उत्तर दिया

“बिलकुल! पत्रकार अगर निडर हों, तथ्यों के प्रति ईमानदार हों और जनता की नब्ज़ पहचानते हों — तो पत्रकारिता आज भी सबसे बड़ा बदलाव का हथियार बन सकती है।”

🏆 सम्मान और समापन

कार्यक्रम के अंत में आयोजकों ने उन्हें शॉल और सम्मान-पत्र भेंट कर आभार प्रकट किया। श्रोताओं में मौजूद शिक्षाविदों, पत्रकारों, छात्रों और गणमान्य नागरिकों ने उनके विश्लेषण को अत्यंत ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायी बताया।

साख लौटाने की पुकार

यह आयोजन न केवल एक बौद्धिक विमर्श का केंद्र बना, बल्कि पत्रकारिता की आत्मा को समझने और संवारने का एक दुर्लभ अवसर भी साबित हुआ। अनिल अनूप ने अपने चिंतन से यह स्पष्ट कर दिया कि अगर पत्रकारिता को “मिशन” के रूप में पुनर्स्थापित किया जाए — तो हिंदी पत्रकारिता की साख फिर से बुलंद हो सकती है।

125 पाठकों ने अब तक पढा
samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close
Close