संपादकीय

राम नवमी पर विवाद: आस्था बनाम राजनीति – एक संपादकीय दृष्टिकोण

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राम नवमी के पर्व पर बढ़ते तनाव और राजनीतिक ध्रुवीकरण ने देश की धार्मिक सहिष्णुता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या राम के नाम पर राजनीति होना उचित है? क्या हिंदुओं के पर्व मनाने के अधिकारों का हनन हो रहा है? इस संपादकीय में पढ़ें एक संतुलित विश्लेषण।

राम नवमी, जो कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जन्मोत्सव का पावन दिन है, आजकल श्रद्धा से अधिक विवाद का विषय बनती जा रही है। जहां एक ओर यह दिन धार्मिक उल्लास और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक होना चाहिए, वहीं दूसरी ओर, यह विभिन्न राज्यों में तनाव, सुरक्षा बंदोबस्त और न्यायालयों के आदेशों का पर्याय बन चुका है।

संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता

भारत का संविधान हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसमें संदेह नहीं कि यह अधिकार राम भक्तों को भी उतना ही प्राप्त है जितना किसी और को। फिर यह स्थिति क्यों आ रही है कि राम नवमी जैसे त्योहारों के लिए अदालत की अनुमति लेनी पड़ती है? क्या शोभा-यात्रा निकालना और राम का नाम लेना अपराध हो गया है?

राजनीति और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक धार्मिक महिला मानी जाती हैं। वे मां दुर्गा और काली की पूजा करती हैं, परंतु ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष उन्हें उत्तेजित क्यों करता है? यह विरोधाभास समाज में भ्रम की स्थिति पैदा करता है। दूसरी ओर, भाजपा द्वारा भी भगवा ध्वज और रैली जैसे प्रतीकों का राजनीतिक प्रयोग किया जा रहा है, जिससे माहौल और अधिक गरमाया जा रहा है।

सुरक्षा बनाम श्रद्धा

राम नवमी के अवसर पर जिन राज्यों में सुरक्षा को लेकर अलर्ट घोषित किया गया, उनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र प्रमुख हैं। ड्रोन, सीसीटीवी, फ्लैग मार्च – क्या यही है त्योहार मनाने का नया स्वरूप? जब धार्मिक आयोजन ही असुरक्षा के प्रतीक बन जाएं, तब यह आत्ममंथन का विषय बन जाता है।

राज्य बनाम केंद्र सरकार

ममता बनर्जी का यह आरोप कि केंद्र सरकार दंगे भड़का रही है, अपने आप में अत्यंत गंभीर है। यदि ऐसा है, तो केंद्र को इसे सिरे से खारिज कर पारदर्शिता के साथ अपनी भूमिका स्पष्ट करनी चाहिए। वहीं विपक्ष द्वारा भावनात्मक और उकसाने वाले आह्वानों से स्थिति और बिगड़ती है।

आखिर समाधान क्या है?

इस देश का सौंदर्य उसकी विविधता और सहिष्णुता में है। यदि त्योहारों पर ही तनाव हो, तो इसका अर्थ यह है कि हम कहीं न कहीं अपने सामाजिक मूल्यों से भटक रहे हैं। राजनेताओं को यह समझना होगा कि धर्म आस्था का विषय है, हथियारों या नारों का नहीं। किसी भी समुदाय विशेष के त्योहार को संदेह की दृष्टि से देखना संविधान और लोकतंत्र का अपमान है।

राम किसी एक जाति, धर्म या दल के नहीं हैं। वे संपूर्ण मानवता के आदर्श हैं। राम नवमी पर दिखने वाला यह सामाजिक तनाव, राजनीति और धार्मिक असहिष्णुता का मिश्रण है, जो देश की एकता के लिए खतरा है। हमें यह तय करना होगा कि हम राम को राजनीति का औजार बनाना चाहते हैं या राष्ट्र की आत्मा का प्रतीक।

➡️अनिल अनूप

samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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