मोहन द्विवेदी
समाज में एकता के लिए भाषा का माध्यम अनिवार्य अंग है। जिस देश में राष्ट्रीय सहानुभूति के लिए भाषा का आशीर्वाद नहीं होता वहां जातीय जीवन के लक्षण परिलक्षित नहीं होते। जहां विचार विनिमय की एकता का साधन भाषा एक नहीं अपितु अनेक रूपों में उपलब्ध हो वहां एकता संजोने में कठिनाई हो सकती है। एक विचार शैली, एक विचारधारा, एक भाषा से ही अद्भुत होती है। इसकी अनेकता समाज की अनवरत अवनती का कारण है। संसार के सभी राष्ट्रों में उन्नत भाषा की दो शैलियां परलक्षित होती हैं। इनमें से एक साहित्यिक भाषा है और दूसरी व्यावहारिक। यदि हम अपने देश के प्राचीन इतिहास को लें, तो उसमें भी दो शैलियां प्रचलित रही हैं। एक उनकी साहित्यिक भाषा संस्कृत थी और व्यावहारिक भाषा नाना प्रकार की प्राकृतिक उपभाषाएं थी। कालक्रम से वह प्राकृतिक उपभाषाएं वर्तमान जान भाषा में परिवर्तित होकर महत्व प्राप्त करने लगी और धीरे-धीरे संस्कृत गौण हो गई।
‘ह’ से हिंदी और ‘ह’ से ही है हिन्दुस्तान तभी तो है हमारा देश महान। भले ही ये पंक्तियां सुनने में काफी उत्साह व राष्ट्र के प्रति भाषा प्रेमियों के प्यार को व्यक्त करती हों, मगर वास्तविकता से भी कोई अनजान नहीं है। भारत राष्ट्र हिन्दी व संस्कृत भाषा के अथाह ज्ञान भंडार का स्रोत रहा है। हर मुश्किल में नमस्ते, वसुधैव कुटुंबकम व स्वागतम की संस्कृति भारत की रही है। कहा जाता है कि किसी भी राष्ट्र और समाज के संतुलित विकास में वहां की भाषा व संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। ऐसी ही विशेष भूमिका भारतीय समाज के विकास में हमारी अपनों के सपनों की भाषा हिन्दी ने निभाई है। हिन्दी ने हमें विश्व में एक नई पहचान दिलाई है। हिन्दी दिवस भारत में हर वर्ष 14 सितंबर को मनाया जाता है। हिन्दी विश्व में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाओं में से एक है। विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा होने के साथ-साथ हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा भी है। वह दुनियाभर में हमें सम्मान भी दिलाती है। यह भाषा है हमारे सम्मान, स्वाभिमान और गर्व की। हम आपको बता दें कि हिन्दी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, साक्षर से निरक्षर तक प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति हिन्दी भाषा को आसानी से बोल-समझ लेता है।
इस संस्कृत भाषा का स्थान धीरे धीरे हिन्दी लेने लगी है। किसी भी राष्ट्र की पहचान प्रधानता तीन बातों से होती है। यह तीन राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान और राष्ट्रभाषा हैं। इन तीनों में ही राष्ट्रभाषा सर्वोपरि है जो समस्त देशवासियों को एकता के सूत्र में पिरोती है। हिंदी हमारे देश की राष्ट्रीय भाषा भावात्मक एकता, अखंडता और राष्ट्रीय एकता की भाषा है। देशवासियों को एकता में जोड़ती है। भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधताओं से भरे भारतवर्ष को संगठनात्मक एकता में संगठित करती है। हिंदी ही भारतीयों के सांस्कृतिक जागरण और राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की भाषा रही है। यह राष्ट्र की सामाजिक, सांस्कृतिक से लेकर देश की अस्मिता तक की पहचान है। हिंदी से ही हमारा साहित्य लोक साहित्य अनुप्रणीत है। इससे ही हम अपना सुख-दुख बांट पाते हैं। भावों की वाटिका और जीवन का साथी है। प्रगति की प्रेरणा है। इसमें जीवन के तत्व छिपे हैं। इतिहास, परंपरा, संस्कृति और धर्म दर्शन अपनी भाषा हिंदी से भरे हैं। भारत की संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया, हालांकि इसे 26 जनवरी 1950 का देश के संविधान द्वारा आधिकारिक भाषा के रूप में इस्तेमाल करने के विचार को मंजूरी दी गई। हर वर्ष देश 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाता है क्योंकि 1950 के अनुच्छेद 343 के तहत इस दिन भारत के संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी भाषा को भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया। तब से लेकर हिंदी भाषा की यात्रा निरंतर प्रगति की ओर बढ़ रही है। हिंदी सिनेमा, साहित्य, योग, कथा प्रवचन कारों की मदद से हिंदी विदेशों में भी अपना अस्तित्व बनाने में कामयाब हुई है और इसे इक्कीसवीं सदी की भाषा के रूप में जाना जाने लगा है। इसकी लोकप्रियता को देखकर अनेक विदेशी अंग्रेजी चैनलों ने अपना हिंदी में प्रसारण प्रारंभ किया है। हिंदी विश्व की चौथी ऐसी भाषा है जिसे सबसे ज्यादा लोग बोलते हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में भारत में 44 फीसदी लोग हिंदी भाषा बोलते हैं। पूरे विश्व की बात करें तो दुनिया में तकरीबन 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो उसे बोल या समझ सकते हैं। भारत के बाहर हिंदी जिन देशों में बोली जाती है उनमें पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, यमन, युगांडा और कनाडा आदि देश शामिल हैं।
12वां विश्व हिंदी सम्मेलन नाडी फीजी में 15 से 17 फरवरी 2023 को फीजी सरकार के सहयोग से आयोजित किया गया, जिसका मुख्य विषय ‘हिंदी पारंपरिक ज्ञान से कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक’ था। पूर्ण सत्र में इस विषय पर चर्चा की गई। सम्मेलन के दौरान हिंदी प्रसार के लिए भारत से कुल 12 हिंदी विद्वान और विदेशों से 19 विद्वानों के साथ-साथ भारत और विदेश के दो-दो संस्थाओं को सम्मान के लिए चुना गया। इससे पहले विश्व हिंदी सम्मेलन मॉरीशस में हुआ था और यह सम्मेलन विभिन्न तरीकों और पहलुओं के माध्यम से हिंदी को बढ़ावा देने में कामयाब रहा था। इसके अतिरिक्त लंदन, सूरीनाम, न्यूयॉर्क और जोहांसबर्ग में भी सम्मेलन हिंदी को वैश्विक भाषा बनाने के लिए हुए हैं ताकि हिंदी का प्रचार व प्रसार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो सके। हिंदी एक समृद्ध, भाषिक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परंपरा की वाहिनी है। अपनी जननी संस्कृत की उत्तराधिकारिणी से उसे गंभीर शब्द संपदा और प्रखर व्याकरण गरिमा प्राप्त है। यह समस्त भारतीय आदान-प्रदान की संपर्क भाषा है तथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक समझी और बोले जाने वाली भाषा है। यह नित्य प्रति अभिनंदनीय है। लेकिन खेद की बात है कि कुछ लोग हिंदी बोलने तथा उसका प्रयोग करने में शर्म महसूस करते हैं, जबकि गौरव की बात होनी चाहिए। अंग्रेजी मीडियम वाले स्कूलों में भी अगर बच्चे हिंदी का प्रयोग करते हैं तो अध्यापक उन्हें डांट देते हैं और अंग्रेजी का प्रयोग करने के लिए बाध्य करते हैं। यह स्थिति हिंदी के लिए अवश्य ही प्रतिकूल है। कम से कम सरकारी स्तर पर हिंदी का प्रयोग करना गौरव की बात होनी चाहिए। हिंदी को यह स्थान अभी प्राप्त करना है।
यही इस भाषा की पहचान भी है कि इसे बोलने और समझने में किसी को कोई परेशानी नहीं होती। पहले के समय में अंग्रेजी का ज्यादा चलन नहीं हुआ करता था। तब यही भाषा भारतवासियों या भारत से बाहर रह रहे हर वर्ग के लिए सम्माननीय होती थी। लेकिन बदलते युग के साथ अंग्रेजी ने भारत की जमीं पर अपने पांव गड़ा लिए हैं, जिस वजह से आज हमारी राष्ट्रभाषा को हमें एक दिन के नाम से मनाना पड़ रहा है। पहले जहां स्कूलों में अंग्रेजी का माध्यम ज्यादा नहीं होता था, आज उनकी मांग बढऩे के कारण देश के बड़े-बड़े स्कूलों में पढऩे वाले बच्चे हिन्दी में पिछड़ रहे हैं। इतना ही नहीं, उन्हें ठीक से हिन्दी लिखना और बोलना भी नहीं आती है। भारत में रहकर हिन्दी को महत्व न देना भी हमारी बहुत बड़ी भूल है। भाषा बाजार में हिंदी भाषा आजकल अंग्रेजी बाजार के चलते दुनियाभर में हिंदी जानने और बोलने वाले को अनपढ़ या एक गंवार के रूप में देखा जाता है या यह कह सकते हैं कि हिन्दी बोलने वालों को लोग तुच्छ नजरिए से देखते हैं। यह कतई सही नहीं है। हम हमारे ही देश में अंग्रेजी के गुलाम बन बैठे हैं और हम ही अपनी हिन्दी भाषा को वह मान-सम्मान नहीं दे पा रहे हैं, जो भारत और देश की भाषा के प्रति हर देशवासियों के नजर में होना चाहिए। हम या आप जब भी किसी बड़े होटल या बिजनेस क्लास के लोगों के बीच खड़े होकर गर्व से अपनी मातृभाषा का प्रयोग कर रहे होते हैं तो उनके दिमाग में आपकी छवि एक गंवार की बनती है। घर पर बच्चा अतिथियों को अंग्रेजी में कविता आदि सुना दे तो माता-पिता गर्व महसूस करने लगते हैं। इन्हीं कारणों से लोग हिन्दी बोलने से घबराते हैं।
हिन्दी हिंदुस्तान की भाषा है। राष्ट्रभाषा किसी भी देश की पहचान और गौरव होती है। हिन्दी हिंदुस्तान को बांधती है। इसके प्रति अपना प्रेम और सम्मान प्रकट करना हमारा राष्ट्रीय कत्र्तव्य है। आज हमारी राष्ट्रभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत पसंद की जाती है। इसका एक कारण यह है कि हमारी भाषा हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं। एक हिंदुस्तानी को कम से कम अपनी भाषा यानी हिन्दी तो आनी ही चाहिए, साथ ही हमें हिन्दी का सम्मान भी करना सीखना होगा। जहां अंग्रेजी एक विश्वव्यापी भाषा है और इससे इसके महत्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता, वहीं हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है और हम सब भारतवासियों को अपनी राष्ट्रभाषा का आदर व सम्मान करना चाहिए। हमें सदैव हिंदी भाषा का आदर करना चाहिए। हिंदी दिवस केवल औपचारिकता पूरी करने के लिए नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक जड़ों को फिर से देखने और अपनी समृद्धि का जश्न मनाने का दिन है। हिंदी हमारी मातृभाषा है और हमें इसका हमेशा आदर करना चाहिए और इसका मूल्य समझना चाहिए।
भारतीय विचार और संस्कृति का वाहक होने का श्रेय हिन्दी को ही जाता है। आज संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं में भी हिंदी की गूंज सुनाई देने लगी है। पिछले वर्ष सितंबर माह में हमारे प्रधानमंत्री द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में ही अभिभाषण दिया गया था। विश्व हिंदी सचिवालय विदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार करने और संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए कार्यरत है। उम्मीद है कि हिंदी को शीघ्र ही संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा भी प्राप्त हो सकेगा। हिंदी आम आदमी की भाषा के रूप में देश की एकता की सूत्र है। सभी भारतीय भाषाओं की बड़ी बहन होने के नाते हिंदी विभिन्न भाषाओं के उपयोगी और प्रचलित शब्दों को अपने में समाहित करके सही मायनों में भारत की संपर्क भाषा होने की भूमिका निभा रही है। हिंदी जन-आंदोलनों की भी भाषा रही है। हिंदी के महत्त्व को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने बड़े सुंदर रूप में प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा था, ‘भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी’। हिंदी के इसी महत्व को देखते हुए तकनीकी कंपनियां इस भाषा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं। यह खुशी की बात है कि सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी का इस्तेमाल बढ़ रहा है।
आज वैश्वीकरण के दौर में, हिंदी विश्व स्तर पर एक प्रभावशाली भाषा बनकर उभरी है। आज पूरी दुनिया में 175 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जा रही है। ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें बड़े पैमाने पर हिंदी में लिखी जा रही हैं। सोशल मीडिया और संचार माध्यमों में हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है। कोई भी भाषा हो, उसका विकास उसके साहित्य पर निर्भर करता है। आज के तकनीकी युग में विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी हिंदी में काम को बढ़ावा देना चाहिए ताकि देश की प्रगति में ग्रामीण जनसंख्या सहित सबकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके। इसके लिए यह अनिवार्य है कि हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में तकनीकी ज्ञान से संबंधित साहित्य का सरल अनुवाद किया जाए। इसके लिए राजभाषा विभाग ने सरल हिंदी शब्दावली भी तैयार की है। हिंदी भाषा के प्रसार से पूरे देश में एकता की भावना और मजबूत होगी।
Author: कार्यकारी संपादक, समाचार दर्पण 24
हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं