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गोद के नाम पर सौदे : तीन औरतें, खौफनाक कहानियां और मासूमों बच्चों की मंडी, घटनाएं रुह कंपा देती हैं… 

साजिश का जन्म: गर्भ से गिरोह तक, कानून के बावजूद ज़मीर की मौत क्यों?

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चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

दिल्ली पुलिस ने एक ऐसे किडनैपिंग गिरोह का पर्दाफाश किया है, जिसमें तीन महिलाएं—एक नर्स, एक अकाउंटेंट और एक बंगाली महिला—मासूम बच्चों को रेलवे स्टेशन से अगवा कर उन्हें झूठे गोदनामे के जरिए बेच रही थीं। पढ़ें कैसे ये महिलाएं सुनियोजित तरीके से यह घिनौना धंधा चला रही थीं।

जुलाई की उमस भरी दोपहर, एनसीआर में कांवड़ यात्रा की गहमागहमी, फरीदाबाद टोल प्लाज़ा के पास अचानक एक लावारिस बच्चा दिखाई देता है। पुलिस पहुंचती है, बच्चा सकुशल होता है और कुछ ही दिनों बाद उसके मां-बाप तक पहुंचा दिया जाता है। सब कुछ सामान्य लगता है… लेकिन नहीं, यह कोई गुमशुदगी नहीं थी। दो साल बाद, दिल्ली पुलिस ने जो रहस्य खोला वह बेहद खौफनाक था।

दरअसल, यह एक सुनियोजित बाल तस्करी का मामला था, जिसमें मासूम बच्चों को किडनैप कर उन्हें अवैध रूप से बेचने का नेटवर्क काम कर रहा था। और इस नेटवर्क की कमान किसी डॉन या गैंगस्टर के पास नहीं थी—बल्कि तीन आम महिलाएं इसे चला रही थीं।

गिरोह की सरगनाएं कौन थीं?

आरती उर्फ रजीना कोती – पश्चिम बंगाल से भागकर फरीदाबाद में बसने वाली महिला, जिसने अपनी पहचान और जिंदगी दोनों बदली।

कांता भुजेल – फरीदाबाद की नर्स, जो खुद को ‘डॉक्टर प्रिया’ बताती थी और बच्चा न पाल सकने वाले जोड़ों की तलाश करती थी।

निर्मला नेम्मी – दिल्ली में वकीलों के लिए काम करने वाली अकाउंटेंट, जिसकी जिम्मेदारी थी फर्जी दस्तावेज तैयार करना।

ये तीनों महिलाएं, सुनियोजित तरीके से स्टेशन से बच्चों का अपहरण करतीं, उन्हें खरीददारों तक पहुंचातीं और नकली कानूनी दस्तावेजों के ज़रिए सब कुछ वैध दिखाने का प्रयास करतीं।

आरती की कहानी यहीं नहीं रुकी। साल 2023 में जब वह एक बार फिर गर्भवती हुई, तो गरीबी ने उसे मजबूर कर दिया कि वह अपने होने वाले बच्चे को गोद दे दे। इसी दौरान उसकी मुलाकात कांता भुजेल से हुई, जिसने उसे एक ‘ऑफर’ दिया—बच्चे को किसी बेऔलाद दंपति को बेच दो।

तभी तीसरी किरदार निर्मला नेम्मी सामने आई और कहा कि वह फर्जी दस्तावेजों की व्यवस्था कर सकती है। यहीं से शुरू हुआ वह अपराध का रास्ता, जहां गर्भपात को छोड़कर अब दूसरों के बच्चों को चुराकर बेचना इन महिलाओं का “धंधा” बन गया।

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पहला केस: बच्चा चुराया और बेचने से पहले छोड़ दिया

31 जुलाई 2023, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से आरती ने एक 3 साल के बच्चे को अगवा किया। दो दिन तक फरीदाबाद में उसे रखने के बाद जब कोई खरीददार नहीं मिला, तो घबरा कर बच्चे को टोल प्लाज़ा के पास छोड़ दिया गया। यही वो बच्चा था जिसे फरीदाबाद पुलिस ने “गुमशुदा” मानकर माता-पिता को सौंप दिया था।

दूसरा केस: बच्चा बिका, बाइक खरीदी गई

17 अक्टूबर 2024 को अगली घटना सामने आई। इस बार एक ढाई साल का बच्चा अपनी मां के पास सो रहा था, जिसे आरती ने उठाया और गाजियाबाद ले गई। यहां एक दंपति को यह बच्चा “गोद” में दे दिया गया और बदले में 1.2 लाख रुपये लिए गए। इन पैसों से बाइक खरीदी गई और कुछ जरूरी खर्चे निपटाए गए।

तीसरा केस: बच्ची को 30 हजार में बेचा

21 जनवरी 2025 को एक 4 महीने की बच्ची अगवा की गई। कांता भुजेल ने पहाड़गंज में एक जोड़ा तलाशा, जिन्हें यह बच्ची यह कहकर बेची गई कि वह एक कुंवारी मां की संतान है। बदले में 30,000 रुपये मिले। रैकेट के पकड़े जाने के बाद बच्ची को भी रेस्क्यू कर लिया गया।

भारत में गोद लेने की पूरी प्रक्रिया CARA (Central Adoption Resource Authority) के तहत संचालित होती है। आंकड़े बताते हैं कि:

  • 2022-23 में भारत में केवल 3,175 कानूनी घरेलू गोदनामे हुए।
  • जबकि सालाना 80,000 से अधिक दंपति गोद लेने की प्रतीक्षा सूची में होते हैं।
  • यही असंतुलन एक गैरकानूनी बाजार को जन्म देता है, जहां गरीब, बेसहारा या अपहरण किए गए बच्चों को खरीदने-बेचने की ज़मीन तैयार हो जाती है।

जब मासूम बने शिकार

हैदराबाद 2022 

मुसाफिरखाने के पास से 6 साल की बच्ची को एक महिला उठा ले गई। दो दिन बाद बच्ची एक अनजान घर में पाई गई। पूछताछ में पता चला कि महिला ने बच्ची को 50,000 रुपये में एक बेऔलाद परिवार को सौंपने का सौदा किया था।

भोपाल 2021 

भोपाल रेलवे स्टेशन से एक बच्चा अगवा कर लिया गया। बच्चा दो दिन तक एक झुग्गी बस्ती में छुपाकर रखा गया और बाद में बेचने की तैयारी थी। पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर समय रहते उसे बचा लिया।

नेपाल सीमा मामला 

भारत-नेपाल सीमा से हर साल औसतन 400 से अधिक बच्चों की तस्करी की रिपोर्ट मिलती है। इनमें से कई बच्चों को “अनाथ” दिखाकर अवैध रूप से गोद दिया जाता है।

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सब कुछ जानते थे ये अपराधी

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार, इन तीनों महिलाओं को कानून की पूरी जानकारी थी। उन्हें यह भी पता था कि किस उम्र के बच्चे ज्यादा “डिमांड” में होते हैं और किन्हें छोड़ देना चाहिए। उन्होंने सस्ते मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया, फर्जी नाम रखे और कोई सबूत न छूटे इसकी पूरी तैयारी की।

अन्य आरोपी व पुलिस की जांच

पुलिस का कहना है कि इस मामले में दो और बिचौलियों की पहचान हो चुकी है, जिनकी तलाश जारी है। वहीं, जिन दंपतियों ने बच्चों को गोद लिया, वे खुद को इस पूरी साजिश से अनजान बता रहे हैं, लेकिन पुलिस उनके बयानों की भी गहराई से जांच कर रही है।

कानूनी कार्रवाई और आगे की राह

आरती, कांता और निर्मला के अलावा आरती का पति सूरज भी इस गिरोह में शामिल पाया गया। इन सभी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 137(2), 143 और 61(2) के तहत केस दर्ज किया गया है। दोषी पाए जाने पर इन्हें सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।

कानून की पकड़ से दूर नहीं बचा कोई

यह मामला न सिर्फ पुलिस की सजगता का उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे समाज में कुछ महिलाएं भी मासूम बच्चों की खरीद-फरोख्त जैसे संगीन अपराधों में लिप्त हो सकती हैं। बच्चों को अगवा करना, फर्जी दस्तावेज तैयार कर उन्हें बेचना – यह अपराध जितना क्रूर है, उतना ही संगठित भी। अब जबकि यह गिरोह टूट चुका है, आगे की कार्रवाई यह सुनिश्चित करेगी कि ऐसे नेटवर्क भविष्य में फिर पनप न सकें।

दिल्ली में सामने आए बच्चों की तस्करी और फर्जी गोदनामों के गिरोह का पर्दाफाश इस सवाल को फिर से हमारे सामने खड़ा करता है। यह केवल अपराध नहीं, बल्कि समाज की आत्मा को लहूलुहान कर देने वाली घटना है।

समस्या की जड़: गरीबी नहीं, व्यवस्था में छेद

दिल्ली में पकड़ा गया यह गिरोह न सिर्फ बच्चों का सौदा कर रहा था, बल्कि समाज के कई स्तरों पर विफलता को उजागर कर रहा था:

  • महिलाएं जो खुद पीड़ित थीं, अपराधी बन गईं।
  • फर्जी दस्तावेजों की व्यवस्था एक अकाउंटेंट कर रही थी, जिससे साबित होता है कि कानूनी प्रक्रिया की नकल भी हो रही है।
  • और, ऐसे “खरीदार” भी मौजूद हैं जो वैध प्रक्रिया को छोड़कर आसान रास्ते से बच्चा गोद लेना चाहते हैं।
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मन को झकझोरने वाले आंकड़े

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2021 में भारत में 7,102 बच्चों के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज हुई।

आंकड़ों की आंखें खोलती सच्चाई

  • NCRB 2021: 7,102 बच्चों का अपहरण दर्ज।
  • UNICEF: हर साल 12 लाख बच्चे वैश्विक तस्करी का शिकार।
  • हर घंटे भारत में 4 बच्चे लापता होते हैं।
  • UNICEF के अनुसार, हर साल दुनियाभर में करीब 12 लाख बच्चे तस्करी का शिकार होते हैं।
  • भारत में हर घंटे औसतन 4 बच्चे लापता होते हैं, जिनमें से कई कभी नहीं मिलते।

अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भारत

भारत उन देशों में शामिल है, जहां बाल तस्करी के केस तेजी से बढ़ रहे हैं। इंटरपोल की 2023 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण एशिया में बाल तस्करी का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट भारत, नेपाल और बांग्लादेश की त्रिकोणीय सीमा है।

क्या करें हम? – समाधान और सुझाव

  • कानूनी प्रक्रिया को सरल व डिजिटल बनाना:
  • CARA की प्रक्रिया जटिल और धीमी है, जिससे लोग अवैध रास्ता चुनते हैं।
  •  रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर स्पेशल बाल सुरक्षा यूनिट्स:
  • जहां सबसे ज्यादा बच्चे लापता होते हैं, वहां सुरक्षा ज़रूरी है।
  •  माता-पिता के लिए जागरूकता अभियान:
  • गरीब इलाकों और झुग्गियों में यह बताना ज़रूरी है कि कोई बच्चा “बेचने की चीज़” नहीं है।

फर्जी गोदनामों पर सख्त कार्रवाई:

जो वकील, डॉक्टर या एजेंट इसमें शामिल होते हैं, उन्हें भी कड़ी सजा मिले।

5. समाज में नैतिक संवाद की ज़रूरत:

एक संवेदनशील समाज ही ऐसे अपराधों के खिलाफ सबसे बड़ी दीवार बन सकता है।

जब ममता बिकने लगे, तो हम सब दोषी हैं

यह केवल आरती, कांता और निर्मला की साजिश नहीं थी—यह समाज की उस चुप्पी का परिणाम है, जो वर्षों से ऐसे अपराधों को अनदेखा करती रही। यह समय है जागने का, सोचने का और जिम्मेदारी उठाने का।

क्योंकि जब ममता बिकती है, तो इंसानियत की कीमत सबसे ज्यादा चुकानी पड़ती है।

यह कोई एक अपराध नहीं, बल्कि सामाजिक नैतिकता की विफलता है। कानून से पहले समाज को बदलना होगा। वरना अगला बच्चा किसी और की गोद से किसी और की तिजोरी में चला जाएगा – और हम बस रिपोर्ट पढ़ते रह जाएंगे।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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