अनिल अनूप की खास रिपोर्ट
कभी दुबई के आलीशान दफ्तरों में, फिर बर्लिन के बिजनेस गलियारों में नाम कमाने वाले मिस्टर कमल आडवाणी की कहानी आज एक ऐसा आइना है, जिसमें आधुनिक प्रवासी जीवन की अस्थिरता, अकेलापन और सामाजिक तिरस्कार साफ झलकता है।
दुबई से बर्लिन तक का सफर: करोड़ों की कमाई, लेकिन…
कमल आडवाणी ने अपने संघर्ष की शुरुआत दुबई में की थी। वहां उन्होंने दो साल तक मल्टीनेशनल कंपनियों में काम किया, फिर बर्लिन का रुख किया। जर्मनी में 14 वर्षों तक इंपोर्ट-एक्सपोर्ट, ट्रांसपोर्ट और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में उन्होंने अपार सफलता पाई।
बताया जाता है कि उस दौरान उनकी कुल संपत्ति 10 करोड़ रुपए से अधिक की थी। आलीशान बंगले, विदेशी गाड़ियाँ और यूरोप में रूतबा—कमल आडवाणी एक सफल NRI का आदर्श चेहरा थे।
परिवार, धोखा या मानसिक अवसाद: गिरावट की शुरुआत कहां से हुई?
कमल आडवाणी की जिंदगी में अंधेरा अचानक नहीं आया। उनके करीबी बताते हैं कि बर्लिन में रहते हुए उन्हें पारिवारिक धोखे, कानूनी विवाद और भावनात्मक टूटन का सामना करना पड़ा। एक समय ऐसा भी आया जब:
बैंक खातों पर रोक लगी, बिजनेस पार्टनर ने पैसे हड़प लिए, परिवार ने दूरी बना ली, मानसिक तनाव और डिप्रेशन ने घेर लिया, वो अकेले पड़ते चले गए।
भारत लौटे, लेकिन अपनापन नहीं मिला
2018 के आसपास कमल भारत लौटे—यह सोचकर कि अपने देश में उन्हें सहारा मिलेगा। लेकिन यहां की सामाजिक संरचना ने उन्हें ‘असफल’ मान लिया। उनकी करोड़ों की संपत्ति कानूनी झंझटों में फंस गई, किराएदारों ने मकान खाली करने से मना कर दिया, और बैंक खातों में कुछ बचा नहीं।
आज वे मुंबई, जयपुर और दिल्ली जैसे शहरों में फुटपाथों पर सोते देखे गए हैं, कभी मंदिरों के बाहर, तो कभी रेलवे स्टेशनों के पास।
एक करोड़पति, आज दान पर निर्भर क्यों?
कमल आडवाणी कोई नशेड़ी नहीं, न ही भिखारी। उनकी बातचीत, भाषा और चाल-ढाल में आज भी विदेशी जीवनशैली की झलक दिखती है। लेकिन पेट भरने के लिए उन्हें मंदिरों से खाना लेना पड़ता है, और रातें सड़कों पर गुजारनी पड़ती हैं।
एक बातचीत में उन्होंने कहा
“जो रिश्ते पैसे से बनते हैं, वो पैसे के खत्म होते ही खत्म हो जाते हैं।”
क्या यह सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी है? या पूरे सिस्टम का चेहरा?
कमल आडवाणी की कहानी अकेली नहीं है। यह NRI समाज, प्रवासी संघर्ष, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक उपेक्षा का जीवंत उदाहरण है। यह दिखाता है कि:
सफलता कभी स्थायी नहीं होती
- देश लौटे प्रवासियों को ‘फिट’ करने की कोई योजना नहीं है
- मानसिक स्वास्थ्य को समाज अभी भी हल्के में लेता है
- रिश्ते सिर्फ सफलता से टिके होते हैं, इंसान से नहीं
क्या कमल आडवाणी फिर उठ पाएंगे?
कमल आडवाणी जैसे लोगों को समाज से नहीं, सम्मान, पुनर्वास और साथ की ज़रूरत है। उन्हें न तो करुणा चाहिए और न ही दया—बस एक अवसर चाहिए खुद को फिर से साबित करने का।
सरकार, NGOs और समाज को चाहिए कि ऐसे गुमनाम और भटके हुए प्रतिभावान लोगों की ओर हाथ बढ़ाएं। शायद तब ही हम ‘विकसित भारत’ की ओर वाकई बढ़ पाएंगे।
क्या आप यकीन करेंगे? एक इंसान जिसने दुबई और बर्लिन में करोड़ों कमाए, आज सड़कों पर रह रहा है। यह है कमल आडवाणी की सच्ची लेकिन चौंकाने वाली कहानी। देखते रहिए👇