हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)। राज्य के प्रमुख औद्योगिक संस्थान NTPC सीपत में स्थानीय मजदूरों की लगातार उपेक्षा का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। यूनियनों का आरोप है कि परियोजना क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय युवाओं को रोजगार से वंचित कर बाहरी राज्यों से आए श्रमिकों को प्राथमिकता दी जा रही है। इस मसले पर समय-समय पर विरोध और प्रदर्शन भी होते रहे हैं, लेकिन अब तक प्रशासन या संयंत्र प्रबंधन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
स्थानीय युवाओं के साथ हो रहा अन्याय
NTPC सीपत, जिसकी स्थापना के समय यह आश्वासन दिया गया था कि संयंत्र से आसपास के गांवों को रोजगार और बुनियादी सुविधाएं प्राप्त होंगी, अब उन्हीं गांवों के युवाओं के लिए संकट का कारण बनता जा रहा है।
जानकारी के अनुसार, संयंत्र में कार्यरत अधिकांश मजदूर अन्य राज्यों जैसे झारखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार से लाए गए हैं। ठेकेदार इन बाहरी मजदूरों को प्राथमिकता देते हैं जबकि बिलासपुर जिले के ग्रामीण युवा रोजगार की तलाश में दर-दर भटकते हैं।
🔧 अनुबंध प्रणाली बनी भेदभाव की जड़
प्रबंधन द्वारा श्रमिकों की नियुक्ति सीधे न कर ठेकेदारों के माध्यम से की जा रही है। यूनियन नेताओं का कहना है कि यह ठेकेदारी प्रणाली पूरी तरह मनमानी से भरी हुई है। ठेकेदार न केवल बाहरी मजदूरों को प्राथमिकता देते हैं बल्कि मजदूरी भुगतान में भी धांधली करते हैं।
हाल ही में सिमर इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के अंतर्गत कार्यरत 35 मजदूरों को दो महीने से वेतन नहीं मिला था। जब उन्होंने भुगतान की मांग की, तो उनका गेट पास जब्त कर संयंत्र से निकाल दिया गया।
📣 यूनियनों की चेतावनी: यदि नहीं सुनी गई आवाज़, होगा बड़ा आंदोलन
छत्तीसगढ़ के साथ-साथ झारखंड व कोरबा में भी NTPC यूनिट्स में यूनियनें सक्रिय हो चुकी हैं।
पतरातू (झारखंड) में दिसंबर 2024 में आयोजित एक बैठक में यह तय किया गया कि जनवरी 2025 से स्थानीय युवाओं को रोजगार न दिए जाने और 12 घंटे की शिफ्ट में काम करवाने के विरोध में आंदोलन शुरू किया जाएगा।
कोरबा की यूनियनों ने भी ठेकेदारों द्वारा खातों से पैसा निकालने, धमकी देने और भुगतान रोकने जैसी गंभीर शिकायतें दर्ज करवाई हैं।
🏥 राखड़ और प्रदूषण से स्वास्थ्य पर संकट
NTPC सीपत के आसपास बसे गांवों—डोंगरी, पेंडरी, खम्हरिया, हरदी, बटाई, अमलीदीह आदि—में पर्यावरणीय समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं। संयंत्र से निकलने वाली राखड़ धूल और अन्य प्रदूषक तत्व सांस की बीमारियों, त्वचा रोगों और जलजनित समस्याओं का कारण बन रहे हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि शादी-ब्याह जैसे सामाजिक संबंधों पर भी असर पड़ा है क्योंकि लोग प्रदूषित इलाकों में रिश्ते नहीं जोड़ना चाहते। इससे न केवल सामाजिक ढांचे में विकृति आई है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों की सेहत भी दांव पर लग गई है।
📊 महत्वपूर्ण आंकड़े
- स्थानीय गांव प्रभावित: 8
- रोजगार वादों की स्थिति: स्थानीय युवाओं की नियुक्ति नगण्य
- ठेकेदारी शिकायतें: वेतन भुगतान में देरी, धमकी, जबरन निकाला जाना
स्वास्थ्य प्रभाव: फेफड़ों की बीमारियाँ, त्वचा रोग, पानी की गुणवत्ता में गिरावट
हालिया घटना: फरवरी 2025 में 35 मजदूरों को वेतन न मिलने का मामला उजागर
✔️ क्या कहता है स्थानीय समुदाय?
डोंगरी निवासी श्यामलाल वर्मा का कहना है, “हमने उम्मीद की थी कि संयंत्र से गांव के बच्चों को नौकरी मिलेगी, लेकिन कोई पूछने नहीं आता। सिर्फ बाहर से लोग लाकर काम करवाते हैं। हमसे सिर्फ राख और प्रदूषण मिला।”
वहीं NTPC यूनियन के एक प्रतिनिधि ने बताया, “स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता देना सिर्फ नैतिक जिम्मेदारी नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का विषय है। यदि हमारी आवाज़ फिर अनसुनी की गई, तो संयंत्र के सामने अनिश्चितकालीन आंदोलन होगा।”
किस ओर जा रहा है विकास का वादा?
NTPC जैसी बड़ी सार्वजनिक कंपनियों से स्थानीय विकास की अपेक्षा की जाती है, लेकिन सीपत में हो रही घटनाएं इसके विपरीत इशारा कर रही हैं। ठेकेदारों की मनमानी, स्थानीय युवाओं की बेरोजगारी, और प्रदूषण की मार से त्रस्त गांव अब धीरे-धीरे असंतोष की आग में झुलसने लगे हैं।
यदि जल्द ही ठोस और जवाबदेह नीति नहीं बनाई गई, तो यह मामला एक बड़े जन आंदोलन का रूप ले सकता है।
💡 समाधान की ओर कुछ सुझाव
- स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार आरक्षण नीति लागू की जाए।
- ठेकेदारी प्रणाली में पारदर्शिता लाई जाए और भुगतान प्रत्यक्ष खातों में हो।
- प्रदूषण नियंत्रण व पर्यावरण निगरानी के लिए स्वतंत्र समिति गठित की जाए।
- यूनियन और प्रबंधन के बीच त्रैमासिक संवाद अनिवार्य किया जाए।
NTPC सीपत में स्थानीय युवाओं की अनदेखी और बाहरी श्रमिकों को प्राथमिकता देने की नीति न केवल रोजगार के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक असंतुलन की भी जनक बनती जा रही है। सरकार, प्रशासन और NTPC प्रबंधन को शीघ्र हस्तक्षेप कर न्यायसंगत नीतियाँ लागू करनी होंगी—वरना हालात बिगड़ने से कोई नहीं रोक सकता।