एनटीपीसी सीपत: रोशनी के पीछे छिपा गांवों का अंधेरा
हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट
छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित एनटीपीसी सीपत ताप विद्युत संयंत्र न केवल प्रदेश का, बल्कि देश का भी एक महत्वपूर्ण ऊर्जा उत्पादन केंद्र बन चुका है। यह संयंत्र बिलासपुर जिले के सीपत क्षेत्र में स्थित है, और इसकी स्थापना ने क्षेत्रीय विकास की नई इबारतें लिखी हैं। परंतु, हर विकास के साथ कुछ चुनौतियाँ भी आती हैं। इस रपट में हम स्थापना काल से लेकर वर्तमान तक इस परियोजना के स्थानीय जनजीवन पर प्रभाव और दुष्प्रभावों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कर रहे हैं।
“कोयले की आग में तपता है गांवों का भविष्य”
एनटीपीसी सीपत की आधारशिला 2001 में रखी गई थी और इसका पूर्ण रूप से संचालन 2008 में आरंभ हुआ। यह संयंत्र लगभग 2980 मेगावाट विद्युत उत्पादन क्षमता के साथ कार्यरत है। परियोजना के लिए सैकड़ों हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की गई, जिसमें कई गाँव प्रभावित हुए।
“जहां बिजली पहुंची, वहां कुछ उम्मीदें भी जगीं”
एनटीपीसी सीपत ने विकास के कई द्वार खोले संस्थान ने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान किया। निर्माण कार्यों, सुरक्षा सेवाओं और प्रशासनिक कार्यों में बड़ी संख्या में नौकरियाँ मिलीं। साथ ही, छोटे व्यवसायों—जैसे होटल, परिवहन, और दुकानों—को भी लाभ मिला।
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“स्थानीय नहीं, बाहरी मजदूर – और भ्रष्टाचार की मिलीभगत”
हालांकि परियोजना ने रोजगार सृजन का दावा किया लेकिन स्थानीय मजदूरों की उपेक्षा और बाहरी श्रमिकों की भर्ती एक बड़ी चिंता का विषय बन गई। स्थानीय युवाओं ने बार-बार आरोप लगाया कि ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत से मजदूरों की भर्ती प्रक्रिया में भारी भ्रष्टाचार होता है।
“पगडंडियों से राजमार्ग तक – अधूरी पहुँच की कहानी”
परियोजना के साथ आई आधारभूत सुविधाओं की बाढ़, चौड़ी सड़कें, पुल, स्कूल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र। हालांकि कुछ दूरस्थ गांव अब भी पिछड़े हुए हैं।
“सीएसआर की छांव – पर क्या सब तक पहुँची?”
सीएसआर के अंतर्गत कई स्कूल, मोबाइल स्वास्थ्य क्लिनिक और स्वच्छता अभियान चलाए गए, जिससे शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार हुआ।
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“जहां उम्मीदें थीं, वहां आ गया धुआँ और राख”
जहां विकास की धारा बही, वहीं कुछ कड़वे सच भी सामने आए…
“अपनी मिट्टी से बिछुड़ गए लोग – मुआवज़ा नहीं भर सका खालीपन”
भूमि अधिग्रहण के दौरान कई गांवों की उपजाऊ जमीन ली गई, विस्थापित परिवारों को मुआवज़ा मिला, लेकिन न पर्याप्त था, न समय पर। पुनर्वास कॉलोनियों में मूलभूत सुविधाएं देर से पहुंचीं।
“हवा में घुला ज़हर – सांसें लेने में डर”
ताप विद्युत संयंत्र से निकलती राख और धुएं के कारण…
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“खेतों में राख, किसानों की आँखों में आंसू”
राख और प्रदूषित जल के कारण खेतों की उर्वरता घटी है। इससे किसानों को फसल घाटा हुआ और कृषि आय पर असर पड़ा।
“जब गांव प्यासे रहे, और संयंत्र पीता रहा जल”
संयंत्र के जल उपयोग ने स्थानीय जल स्रोतों को कमजोर किया है…
“वक्त के साथ बदली तस्वीर, मगर सबके लिए नहीं”
पहलू | स्थापना काल (2001-2010) | वर्तमान स्थिति (2011-2025) |
---|---|---|
रोजगार | सीमित अवसर, बाहरी श्रमिक अधिक | स्थानीय भर्ती में वृद्धि, पर भ्रष्टाचार की शिकायतें जारी |
अधोसंरचना | न्यूनतम सुविधा | सड़क, स्कूल व अस्पताल में सुधार |
पर्यावरण | निर्माणकालीन प्रदूषण अधिक | स्थायी प्रदूषण, पर राख प्रबंधन बेहतर |
सामाजिक असंतोष | अधिग्रहण विरोध, प्रदर्शन | समायोजन व संतुलन की प्रक्रिया चल रही |
कृषि व जल संकट | प्रारंभिक संकेत | समस्या अब गंभीर रूप में उभर रही है |
“हर गांव को चाहिए विकास में बराबरी का हक”
- सशक्त पुनर्वास नीतियाँ
- पर्यावरणीय निगरानी
- स्थानीय भागीदारी
- जल संरक्षण
- स्वास्थ्य अभियान
- पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया
“अगर विकास में कोई पीछे रह जाए, तो रोशनी अधूरी रह जाती है”
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एनटीपीसी सीपत निश्चित रूप से भारत की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में अग्रणी है लेकिन, इस सफलता की कीमत कई बार स्थानीय लोगों को चुकानी पड़ती है। अब आवश्यक है कि विकास न सिर्फ तेज हो, बल्कि संतुलित और न्यायसंगत भी हो। तभी यह संयंत्र वास्तव में “राष्ट्रीय संपत्ति” कहलाने का हकदार होगा।
भ्रष्टाचार और बाहरी मजदूरों की भर्ती से जुड़े बिंदु को अब विस्तार से रिपोर्ट में समाहित कर दिया गया है। यह हिस्सा न केवल स्थानीय युवाओं की आवाज़ को जगह देता है, बल्कि रिपोर्ट की प्रामाणिकता और सामाजिक संवेदना को भी मजबूती प्रदान करता है।