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खास खबर

परंपरा और पराजय के बीच फंसी पहचान… विकास से दूर, हाशिए पर खड़े कोल आदिवासी

पाठा के कोल: बीहड़ों में बसी एक अदृश्य दुनियाँ

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बुंदेलखंड के पठारी और बीहड़ी इलाके में बसे कोल समुदाय की ऐतिहासिक जड़ों, सामाजिक उपेक्षा, आर्थिक संघर्ष और संभावनाओं की यह गहराई से विश्लेषणात्मक रिपोर्ट है।

संजय सिंह राणा की खास रिपोर्ट

पाठा — चित्रकूट, बांदा और महोबा जिलों की बीहड़ पट्टी में फैला एक ऐसा इलाका, जो भौगोलिक रूप से दुर्गम और प्रशासनिक रूप से उपेक्षित है। यहाँ निवास करने वाला कोल समुदाय भारत के आदिमतम समुदायों में से एक है। ये लोग सदियों से जंगलों, पहाड़ियों और बीहड़ों में टिके हुए हैं, पर आधुनिक विकास की धारा से अब भी बहुत दूर।

कोल आदिवासी समुदाय ; जंगलों के संरक्षक और विद्रोह की विरासत ; आदिकालीन अस्तित्व

कोल समुदाय को भारत के प्राचीन आदिवासी समुदायों में गिना जाता है। कुछ इतिहासकार इन्हें “निषाद वंश” से जोड़ते हैं, जो वनवासी जीवन जीते थे। इनकी पहचान शिकार, वन उपज, और पर्वतीय कृषि से जुड़ी रही है।

औपनिवेशिक युग और विद्रोह

ब्रिटिश काल में कोलों ने अन्य आदिवासी समूहों की तरह शोषण और वनाधिकारों के हनन के खिलाफ विद्रोह किए। विशेष रूप से झारखंड, छत्तीसगढ़ और बुंदेलखंड में फैले कोल विद्रोह (1831-32) ने औपनिवेशिक सत्ता को चुनौती दी थी। हालांकि बुंदेलखंड में इस विद्रोह का स्वरूप सीमित रहा, फिर भी प्रतिरोध की भावना आज तक जीवित है।

पाठा क्षेत्र: भूगोल जो नियति बन गया; बीहड़ों का बनावट

पाठा क्षेत्र में गहरी घाटियाँ, पथरीले पठार, और जंगली पहाड़ियां हैं। यहाँ आवागमन के साधन सीमित हैं। बस्तियों तक पहुंचने के लिए कभी-कभी 5 से 8 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है।

सरकारी उपेक्षा

भौगोलिक कठिनाइयों के कारण यह इलाका प्रशासनिक निगरानी से बाहर रह गया है। यहां तक कि कई बस्तियाँ राजस्व मानचित्र पर भी दर्ज नहीं हैं।

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सामाजिक स्थिति: परंपरा और पराजय के बीच फंसी पहचान

जनसंख्या और पारिवारिक संरचना

कोल समुदाय संयुक्त परिवारों में रहते हैं। महिलाएं मेहनतकश होती हैं, लेकिन सामाजिक निर्णयों में उनकी भागीदारी सीमित है। परंपरागत विश्वास, प्रकृति-पूजन और स्थानीय देवी-देवताओं में गहरी आस्था है।

जातिगत स्थिति और दर्जा

उत्तर प्रदेश में कोल समुदाय को अनुसूचित जाति (SC) के अंतर्गत रखा गया है, जबकि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में यही समुदाय अनुसूचित जनजाति (ST) की श्रेणी में है। यह अंतर उन्हें वनाधिकार कानून और आदिवासी योजनाओं से वंचित करता है।

शिक्षा की स्थिति: अज्ञान का अभिशाप ; बस्तियों में स्कूलों की अनुपस्थिति

अधिकांश कोल बस्तियों में कोई प्राथमिक विद्यालय नहीं है। जहाँ स्कूल हैं, वहाँ शिक्षक नियमित नहीं आते। बच्चों को 5-7 किमी दूर चलकर स्कूल जाना पड़ता है।

छात्रवृत्ति व सरकारी योजनाएं

सरकारी योजनाएं जैसे छात्रवृत्ति, स्कूल ड्रेस, या किताबें अक्सर समय पर नहीं मिलतीं। कई बच्चों का नामांकन तो होता है, लेकिन “ड्रॉपआउट दर” 70% से अधिक है, खासकर लड़कियों में।

आर्थिक स्थिति: श्रम तो है, लेकिन स्थायित्व नहीं : आजीविका के स्रोत

  • खेतिहर मजदूरी (दूसरों के खेतों में काम करना)
  • पत्थर तोड़ना और निर्माण कार्य
  • वनों से महुआ, तेंदू पत्ता, लकड़ी इकट्ठा करना
  • कुछ लोग पशुपालन करते हैं, पर संसाधनों की भारी कमी है

जमीन पर अधिकार

कई कोल परिवार पीढ़ियों से जंगल की जमीन पर बसे हैं, लेकिन उनके पास कोई वैध भूमि-पट्टा (कागज़) नहीं है। इस कारण वे न तो सरकारी योजनाओं में पात्र माने जाते हैं, और न ही किसी बैंक से कर्ज़ ले सकते हैं।

स्वास्थ्य की स्थिति: जीवन और मौत के बीच की खामोशी

पाठा क्षेत्र में कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए 10-15 किमी दूर ले जाना पड़ता है।

 बीमारियाँ और मृत्यु दर

  • मलेरिया, पेट की बीमारियाँ, डायरिया, और कुपोषण आम हैं
  • नवजात और मातृ मृत्यु दर बहुत अधिक है
  • कोई नियमित टीकाकरण नहीं, न ही पोषण सेवाएं
  • कानून, अपराध और सामाजिक असुरक्षा ; माफियाओं और ठेकेदारों का कब्ज़ा
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खनन माफिया, बालू माफिया, और लकड़ी ठेकेदारों ने कई इलाकों में कोल मजदूरों को शोषण के जाल में फंसा रखा है। कई बार ये लोग बिना मजदूरी दिए उन्हें निकाल देते हैं।

पुलिस-प्रशासनिक भय

कई कोल युवकों पर झूठे केस दर्ज किए गए हैं। पुलिस और प्रशासन को कोल समुदाय से अधिक संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।

संभावनाएं और समाधान: हाशिए को केंद्र में लाना जरूरी

  • कानूनी पहचान की बहाली
  • उत्तर प्रदेश सरकार को कोल समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देना चाहिए
  • वन भूमि पर उनका परंपरागत कब्ज़ा मान्यता प्राप्त करे
  • समुदाय को Forest Rights Act 2006 के तहत अधिकार मिलें

शिक्षा और स्वास्थ्य सुधार

  • मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयाँ और स्कूल वैन चलायी जाएं
  • स्थानीय कोल युवाओं को समुदाय शिक्षक और स्वास्थ्य स्वयंसेवक बनाया जाए
  • विशेष छात्रवृत्ति और आश्रम पद्धति विद्यालयों की स्थापना हो

 जीविका विकास

  • महुआ, तेंदू, गोंद जैसे उत्पादों पर आधारित लघु उद्योग शुरू किए जाएं
  • महिला समूहों को सिलाई, मशरूम उत्पादन, मुर्गी पालन जैसे कार्यों में प्रशिक्षण दिया जाए
  • मनरेगा कार्यों की सक्रिय निगरानी हो
  •  एक समावेशी दृष्टि की मांग

पाठा क्षेत्र के कोल आदिवासी सिर्फ आंकड़ों के पात्र नहीं हैं — वे संस्कृति के जीवित प्रतीक, जंगलों के संरक्षक, और संघर्ष की गाथा हैं। लेकिन राज्य और समाज दोनों ने उन्हें लगभग अदृश्य बना दिया है। यदि देश को वंचितों को मुख्यधारा में लाना है, तो पाठा जैसे इलाकों और कोल जैसे समुदायों को केंद्र में लाना होगा — नहीं तो विकास एक भ्रम बनकर रह जाएगा।

 

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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