राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने वाले सात विधायकों में से समाजवादी पार्टी ने तीन को निष्कासित कर दिया है। राकेश प्रताप सिंह ने इसे साजिश करार दिया, जबकि मनोज पांडे ने सनातन अपमान का मुद्दा उठाया।
अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश की सियासत में सोमवार को उस समय नया मोड़ आ गया, जब समाजवादी पार्टी (सपा) ने राज्यसभा चुनाव के दौरान पार्टी लाइन से हटकर मतदान करने वाले सात विधायकों में से तीन को पार्टी से निष्कासित कर दिया। सपा ने गोशाईगंज से विधायक अभय सिंह, गौरीगंज से राकेश प्रताप सिंह, और ऊंचाहार से डॉ. मनोज कुमार पांडेय को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते बाहर का रास्ता दिखा दिया।
‘अनुग्रह-अवधि’ खत्म, पार्टी ने जताई सख्ती
सपा ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर इन विधायकों के निष्कासन की घोषणा करते हुए लिखा कि “इन लोगों को हृदय परिवर्तन के लिए दी गई अनुग्रह-अवधि समाप्त हो चुकी है।” साथ ही पार्टी ने यह भी जोड़ा कि शेष चार विधायकों की ‘अनुग्रह-अवधि’ अच्छे व्यवहार के चलते अभी जारी है।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या पार्टी का यह फैसला त्वरित न्याय था या किसी अंदरूनी राजनीतिक साजिश का हिस्सा?
राकेश प्रताप सिंह का हमला: “विधायकों को बांटने की साजिश”
निष्कासन के तुरंत बाद राकेश प्रताप सिंह ने तीखा प्रहार करते हुए सपा के फैसले को ‘विधायकों को बांटने का षड्यंत्र’ करार दिया। उनका दावा था कि “आठ में से सात विधायक एक साथ हैं,” जो सीधे तौर पर पल्लवी पटेल की ओर इशारा था, जिन्होंने मतदान का बहिष्कार किया था। राकेश ने पूछा कि “अगर दो-चार दिन में किसी का व्यवहार सुधर सकता है, तो यह किसी सोची-समझी योजना का हिस्सा ही लगता है।”
उन्होंने कहा, “निष्कासन मेरे लिए राहत की खबर है। सपा में अब घुटन महसूस हो रही थी। यह एक डूबता हुआ जहाज है, जिससे निकलकर मैं स्वतंत्र हो गया हूं।”
मनोज पांडेय का सनातन कार्ड: “जहां राम का अपमान हो, वहां कैसे रहूं?”
पूर्व मंत्री और वरिष्ठ विधायक डॉ. मनोज पांडेय ने निष्कासन के बाद धार्मिक आस्था का मुद्दा उठाया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि “मैं पहले ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सामने भाजपा में शामिल होने की घोषणा कर चुका था। ऐसी पार्टी में क्यों रहूं जहां सनातन और भगवान राम का अपमान होता है?”
उन्होंने सपा के शीर्ष नेतृत्व पर हमला करते हुए पूछा कि “जब स्वामी प्रसाद मौर्य रामचरितमानस की प्रतियां जला रहे थे, तब अखिलेश यादव कहां थे?” मनोज पांडे लगातार तीन बार ऊंचाहार से विधायक रहे हैं और मुलायम सिंह व अखिलेश यादव, दोनों की सरकारों में मंत्री पद पर रह चुके हैं।
पार्टी की रणनीति पर उठे सवाल
इस पूरे घटनाक्रम के बीच, सपा द्वारा राज्यसभा में भेजे जा रहे प्रत्याशियों पर भी सवाल उठने लगे हैं। राकेश प्रताप सिंह ने कपिल सिब्बल, जया बच्चन और आलोक रंजन के नामों का जिक्र करते हुए कहा कि “जो नेता विधायकों से वोट मांगने तक तैयार नहीं, उन्हें आखिर क्यों भेजा जा रहा है?”
निष्कासन का संदेश: ‘जन-विरोधियों’ के लिए कोई स्थान नहीं
सपा की ओर से दी गई जानकारी में यह भी कहा गया कि “भविष्य में भी जो पार्टी के विचार और जनहित के विरुद्ध काम करेगा, उसके लिए पार्टी में कोई स्थान नहीं होगा।” यह वक्तव्य कहीं न कहीं यह संकेत भी देता है कि आने वाले समय में पार्टी और कड़े फैसले ले सकती है।
इस पूरी घटना से उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नया ध्रुवीकरण स्पष्ट रूप से सामने आ रहा है। क्रॉस वोटिंग, निष्कासन, धार्मिक मुद्दे और ‘डूबते जहाज’ जैसे शब्द सियासी हवाओं का रुख बदलते दिखाई दे रहे हैं। सवाल यह भी है कि क्या सपा अपनी अंतर्कलह को नियंत्रित कर पाएगी या फिर यह सिलसिला और भी गहराता जाएगा?