चित्रकूट के मानिकपुर में दबंग बाबू द्वारा अस्पताल और शिव मंदिर की जमीन पर अवैध कब्जा कर मकान निर्माण का मामला सामने आया है। सरकारी तंत्र की निष्क्रियता और भ्रष्टाचार की पोल खोलती रिपोर्ट पढ़ें।
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में एक ओर जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बुलडोजर सरकार भू-माफियाओं पर कार्रवाई कर रही है, वहीं दूसरी ओर कुछ दबंग अफसर खुलेआम मंदिर और अस्पताल की जमीन पर कब्जा कर प्रशासन को ठेंगा दिखा रहे हैं।
ताजा मामला मानिकपुर कस्बे का है, जहां बद्रे आलम नामक स्वास्थ्य विभाग का एक कर्मचारी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र और शिव मंदिर की जमीन पर अवैध रूप से कब्जा जमाकर मकान खड़ा कर चुका है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि न तो नगर पंचायत प्रशासन और न ही तहसील प्रशासन ने अब तक कोई सख्त कार्रवाई की है।
सरकारी पद, रसूख और राजनीतिक संरक्षण बना ‘ढाल’
प्राप्त जानकारी के अनुसार बद्रे आलम वर्तमान में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र शिवरामपुर में कुष्ठ सहायक के पद पर तैनात है, लेकिन वह मानिकपुर सीएचसी में अपनी मर्जी से अटेच रहकर कार्य करता है। उसकी दबंगई इतनी है कि उसके खिलाफ कोई अधिकारी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा।
बताया जाता है कि समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान इस भ्रष्ट बाबू ने अपने पद और राजनीतिक पहुंच का उपयोग करते हुए गाटा संख्या 163/1 समेत कई जमीनों पर अवैध निर्माण करवा लिया, जिनमें शिव मंदिर और अस्पताल की भूमि भी शामिल है।
गाटा संख्याओं में घपला: मंदिर की भूमि पर मकान निर्माण
जानकारी के अनुसार मानिकपुर रूरल की गाटा संख्या 161, 163 और 158 सड़क मार्ग से जुड़ी हैं। इनमें से गाटा संख्या 163/1 शिव मंदिर के नाम दर्ज है। वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की जमीन को भी कब्जा कर लिया गया है। बद्रे आलम न सिर्फ अकेला नहीं है, बल्कि उसके अलावा कई अन्य लोगों ने भी इसी सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा कर भवन बना लिया है।
चल-अचल संपत्ति का साम्राज्य, और सरकारी गाड़ियों का निजी उपयोग
सिर्फ सरकारी जमीन पर कब्जा ही नहीं, बद्रे आलम ने लगभग 6 बीघा जमीन भी खरीदी है, जबकि लखनऊ के गोमती नगर में प्लॉट और पैतृक गांव में भी भारी संपत्तियां अर्जित की हैं।
सरकारी कर्मचारी होते हुए भी वह दो बोलेरो वाहनों का उपयोग करता है जो अस्पताल परिसर में ही खड़ी रहती हैं। ये गाड़ियां ज्यादातर निजी कार्यों में प्रयोग की जाती हैं, और इनके नाम पर डीजल की चोरी भी धड़ल्ले से होती है। कहा जा रहा है कि इसमें विभागीय अधिकारी भी कमीशनखोरी के जरिए हिस्सेदार बने हुए हैं।
बाबा का बुलडोजर आखिर इनपर क्यों नहीं चल पा रहा?
यह प्रश्न अब जनमानस के मन में घर कर चुका है कि जब सरकार तालाब, चकरोड, चारागाह, व सार्वजनिक स्थलों पर अवैध कब्जों को ध्वस्त कर रही है, तो फिर अस्पताल और मंदिर की जमीन पर कब्जा करने वालों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है?
क्या यह प्रशासनिक उदासीनता है? या फिर रसूखदारों के सामने तंत्र की मजबूरी?
क्या होगा आगे?
अब सबकी निगाहें जिला प्रशासन, तहसील प्रशासन और नगर पंचायत पर टिकी हैं। देखना दिलचस्प होगा कि ये संस्थाएं अपनी जिम्मेदारी निभाती हैं या दबंग बाबू बद्रे आलम जैसे लोगों को और छूट मिलती है।
कानून का डर नहीं या कानून ही मूकदर्शक?
यह मामला न केवल सरकारी व्यवस्था की असफलता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि राजनीतिक संरक्षण और पद का दुरुपयोग कैसे धार्मिक और स्वास्थ्य संस्थाओं की जमीन को भी निगल सकता है।
जनता को जवाब चाहिए — और उम्मीद है कि अब प्रशासन चुप नहीं बैठेगा।