चित्रकूट जिले में केंद्रीय कृषि मंत्रालय की नमसा योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। दलालों और अधिकारियों की मिलीभगत से किसानों को लाभ से वंचित कर भारी आर्थिक शोषण किया गया। जानिए इस योजना में किस तरह हुई गड़बड़ियां।
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट। किसानों की आय को बढ़ाने और उन्हें पारंपरिक खेती से आगे बढ़ाकर स्थायी कृषि की ओर प्रेरित करने के उद्देश्य से शुरू की गई नेशनल मिशन ऑन सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (नमसा) योजना अब भ्रष्टाचार की दलदल में धंसती दिख रही है। केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना को लेकर जिले में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां सामने आई हैं, जहां किसानों की आर्थिक मजबूती के बजाय दलालों की जेबें भरने का काम हुआ है।
सबसे पहले बात करें योजना की संरचना की, तो नमसा योजना के तहत जिले में पांच क्लस्टर बनाए जाने थे। इन क्लस्टरों में चयन उन्हीं किसानों का होना था जिनके पास कम से कम एक हेक्टेयर भूमि हो। योजना के अनुसार, किसानों को पशुपालन, चारा उत्पादन, जल संरक्षण, ग्रीन हाउस, पॉली हाउस जैसे कार्यों के लिए एक लाख रुपए तक का अनुदान देना था।
हालात क्या हैं?
मानिकपुर ब्लॉक की ग्राम पंचायत लौढिया माफी इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है, जहां योजना की आड़ में जमकर धांधली की गई है। बताया जा रहा है कि यहां विभागीय अधिकारियों और दलालों की मिलीभगत से कई किसानों को जानबूझकर योजना से वंचित कर दिया गया। वहीं दूसरी ओर, जिन किसानों को योजना में शामिल किया गया, उनके निजी पशुओं पर सरकारी टैग लगाकर अनुदान की रकम हड़प ली गई।
यह भी सामने आया है कि योजना के लाभार्थियों से पशुपालन योजनाओं के नाम पर मोटी रकम वसूली गई। दलालों की मदद से न सिर्फ राशि वसूली गई, बल्कि सरकारी रिकॉर्ड में कागज़ी घोड़े दौड़ाकर बंदरबांट को वैधता भी दे दी गई।
योजना के अंतर्गत कुछ प्रमुख लक्ष्य थे:
- प्रत्येक क्लस्टर में 37 किसानों को भैंस पालन हेतु 30 हजार रुपए प्रति भैंस
- चारा प्रदर्शन पर 10 हजार रुपए
- 6 किसानों को बागवानी, 20 को भेड़-बकरी पालन
- एक-एक ग्रीन हाउस और पॉली हाउस की स्थापना
मगर ज़मीनी हकीकत यह है कि अधिकांश मामलों में इन लक्ष्यों को पूरी तरह नजरअंदाज कर कागजी रिपोर्टों के ज़रिये भुगतान उठा लिया गया।
कौन हैं ज़िम्मेदार?
इस घोटाले में भूमि संरक्षण अधिकारी, उप निदेशक कृषि और संबंधित ग्राम प्रधानों की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। योजना के क्रियान्वयन में पारदर्शिता का पूरी तरह अभाव दिखता है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि दलालों ने विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से किसानों से मनमाने तरीके से धन वसूला। भैंस, बकरी और भेड़ों के नाम पर सरकारी रकम का दुरुपयोग हुआ।
आखिर कब जागेगा जिला प्रशासन?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस तरह की गड़बड़ियों पर जिला प्रशासन कब कठोर कार्रवाई करेगा? क्या भ्रष्ट अधिकारियों और दलालों पर कोई कार्रवाई होगी या यह मामला भी अन्य योजनाओं की तरह फाइलों में दबा दिया जाएगा?
अगर जिला प्रशासन समय रहते कार्रवाई नहीं करता, तो यह न सिर्फ किसानों के साथ अन्याय होगा, बल्कि केंद्र की महत्वपूर्ण कृषि योजनाओं की साख को भी गहरा आघात पहुंचेगा।
नमसा जैसी योजनाएं यदि पारदर्शिता और जवाबदेही से लागू हों, तो यह किसानों के जीवन में परिवर्तन ला सकती हैं। लेकिन चित्रकूट जैसे जिलों में इन योजनाओं को भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ाकर दलालों और अधिकारियों ने किसानों के साथ एक बड़ा विश्वासघात किया है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि शासन-प्रशासन इस मामले में कितना सक्रिय रुख अपनाता है। क्या दोषियों पर कार्रवाई होगी या यह लूट-तंत्र यूं ही जारी रहेगा?