चित्रकूट के मानिकपुर में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शिवरामपुर में तैनात बाबू बद्रे आलम के खिलाफ गंभीर भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है। अस्पताल की भूमि पर अवैध कब्जा, करोड़ों की संपत्ति और डीजल चोरी तक के आरोप।
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट(मानिकपुर)। उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में स्वास्थ्य विभाग के एक बाबू के भ्रष्टाचारी करतूत इन दिनों चर्चा का केंद्र बन गए हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मानिकपुर और शिवरामपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र से जुड़े इस मामले ने अब गंभीर रूप ले लिया है।
जांच से पहले ही जो तथ्य सामने आ रहे हैं, वे चौंकाने वाले हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र शिवरामपुर में कुष्ठ सहायक के पद पर तैनात बाबू बद्रे आलम पर आरोप है कि उन्होंने सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की ज़मीन पर अवैध रूप से कब्जा कर मकान निर्माण करा लिया है।
जमीन पर अवैध कब्जा: सरकारी और धार्मिक संपत्तियां भी नहीं रहीं सुरक्षित
प्राप्त जानकारी के अनुसार बाबू ने गाटा संख्या 161, 163 और 158 के कुछ हिस्सों पर कब्जा किया। इनमें से गाटा संख्या 163/1 शिव मंदिर के नाम दर्ज है, जबकि शेष भूमि सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र से संबंधित है।
इसके बावजूद बद्रे आलम ने इस पूरी जमीन पर मकान निर्माण करवा डाला, जो अब स्थानीय लोगों के बीच बहस और नाराजगी का विषय बन चुका है।
करोड़ों की संपत्तियों का मालिक: कहां से आया इतना पैसा?
इतना ही नहीं, सूत्रों की मानें तो भ्रष्ट बाबू ने मानिकपुर कस्बे में लगभग 6 बीघे ज़मीन भी खरीद रखी है। इसके अलावा लखनऊ के गोमती नगर जैसे महंगे इलाकों में प्लॉट और पैतृक गांव में भी चल-अचल संपत्तियां जमा कर रखी हैं।
एक सरकारी कर्मचारी के पास इतनी बड़ी मात्रा में संपत्ति होना कई सवाल खड़े करता है। लोग अब यह पूछ रहे हैं कि आखिर इतनी दौलत कहां से आई?
सिस्टम की आंखों में धूल: कार्यस्थल कुछ और, डटे रहते हैं कहीं और
हालांकि बद्रे आलम की तैनाती प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र शिवरामपुर में बताई जाती है, लेकिन वह रोज़ाना सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मानिकपुर में मौजूद रहते हैं। अधीक्षक ने भी स्पष्ट किया है कि शिवरामपुर में उनका अटैचमेंट है, लेकिन उनकी मौजूदगी और दखल मानिकपुर में ज्यादा है।
गाड़ियों से कमाई का खेल: सरकारी गाड़ी, निजी उपयोग
सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद बद्रे आलम ने अपनी दो बोलेरो गाड़ियां अस्पताल में लगा रखी हैं। ये गाड़ियां अधिकांशतः निजी कार्यों में इस्तेमाल होती हैं, जबकि इनके नाम पर सरकारी कार्य का बहाना बनाया जाता है।
यह भी आरोप है कि इन वाहनों के नाम पर बड़ी मात्रा में डीजल की चोरी की जाती है और इससे जुड़े कमीशनखोरों का पूरा नेटवर्क सक्रिय है।
क्या होगी जांच? कार्रवाई की मांग तेज
स्थानीय नागरिकों और कर्मचारियों के बीच यह मामला अब खुलकर चर्चा में है। मांग की जा रही है कि जिला प्रशासन और भ्रष्टाचार निवारण इकाई इस पर जांच शुरू करें और दोषी पाए जाने पर सख्त कानूनी कार्यवाही की जाए।
आख़िरी सवाल यही है—क्या प्रशासन अब जागेगा या दबंग बाबू का खेल यूं ही चलता रहेगा?
अगर आप इस खबर को और गहराई में जानना चाहते हैं, तो हमारे विस्तृत संस्करण में पढ़ें कि कैसे एक सरकारी बाबू ने कानून को ताक पर रखकर भ्रष्टाचार की नई इबारत लिखी।