चित्रकूट के मानिकपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 21 वर्षों से तैनात बाबू बद्रे आलम पर जमीन कब्जा, अवैध निर्माण, और पैथोलॉजी संचालन जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। आखिर क्यों नहीं हो रहा तबादला? जानिए पूरी सच्चाई इस रिपोर्ट में।
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट,मानिकपुर। सवाल अब केवल स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता का नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार के गठजोड़ का भी है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) मानिकपुर में पिछले लगभग 21 वर्षों से जमे बाबू बद्रे आलम के कारनामे अब जनता के साथ-साथ प्रशासन के भी गले की फांस बनते जा रहे हैं।
सत्ता का केंद्र बना CHC का बाबू
सिर्फ़ एक बाबू के रूप में नियुक्त बद्रे आलम ने वर्षों की तैनाती का लाभ उठाते हुए पूरे स्वास्थ्य केंद्र पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे मानिकपुर CHC उसके निजी कार्यालय में तब्दील हो चुका है।
स्वास्थ्य केंद्र की ज़मीन पर अवैध निर्माण
सूत्रों के अनुसार, बद्रे आलम ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की ज़मीन पर तीन मंजिला इमारत खड़ी करवा दी है। और तो और, इस इमारत में ‘रेखा पैथोलॉजी’ नाम से एक निजी जांच केंद्र भी संचालित किया जा रहा है – जो स्पष्ट रूप से अवैध है।
सरकारी संसाधनों का निजी उपयोग
इतना ही नहीं, बाबू बद्रे आलम की दो बोलेरो गाड़ियाँ कथित रूप से CHC कार्यों के लिए किराए पर लगाई गई हैं, जबकि हकीकत में वे अधिकतर निजी उपयोग में आती हैं। इससे सरकारी डीज़ल और संसाधनों का दुरुपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है।
उपकेंद्रों में कागजी मेंटीनेंस, मोटी कमाई
मानिकपुर के अधीनस्थ उप-प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति भी चिंताजनक है। बताया जा रहा है कि मेंटीनेंस का पैसा फर्जी बिलों के माध्यम से निकाला जाता है, और विभागीय सांठगांठ से सब कुछ कागजों में ‘सही’ दर्शा दिया जाता है।
नियमों की उड़ती धज्जियां – तबादला क्यों नहीं?
सरकारी नियमों के अनुसार, किसी भी कर्मचारी की एक ही स्थान पर 3 साल से अधिक तैनाती नहीं होनी चाहिए, लेकिन बद्रे आलम लगभग दो दशक से उसी ब्लॉक में जमे हुए हैं। यह बात स्वयं में कई सवाल खड़े करती है—
क्या प्रशासनिक नियमों का पालन सिर्फ कागज़ों तक सीमित है?
- आखिर क्या वजह है कि इतने गंभीर आरोपों के बावजूद उनका स्थानांतरण नहीं हो रहा?
- किस स्तर पर और क्यों बन रही है अनदेखी?
यह पूरा मामला साफ तौर पर भ्रष्टाचार, पद के दुरुपयोग और प्रशासनिक निष्क्रियता का घोतक है। जरूरत है कि जिला प्रशासन तत्काल इस प्रकरण को गंभीरता से ले, और बाबू बद्रे आलम के तबादले एवं जांच की प्रक्रिया शुरू की जाए।