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चित्रकूट

झोलाछाप डॉक्टर की लापरवाही से मासूम की मौत, रसूखदारों का पीड़ित परिवार पर दबाव; पुलिस की निष्क्रियता पर उठे सवाल

झोलाछाप डॉक्टर की लापरवाही से मासूम की मौत, रसूखदारों का पीड़ित परिवार पर दबाव; पुलिस की निष्क्रियता पर उठे सवाल

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संजय सिंह राणा की रिपोर्ट

चित्रकूट/राजापुर। पियरिया माफी गांव में इलाज के नाम पर झोलाछाप डॉक्टर द्वारा की गई घोर लापरवाही एक मासूम की जान ले बैठी। दस वर्षीय सतिन, जिसे गले में फोड़े की शिकायत थी, का इलाज कराने परिजन स्थानीय झोलाछाप डॉक्टर शशिभूषण उर्फ दीपू पांडेय के पास ले गए। लेकिन, इलाज के दौरान दिए गए इंजेक्शन और दवाओं के महज आधे घंटे के भीतर ही मासूम की मौत हो गई। इस हृदयविदारक घटना से गांव में कोहराम मच गया।

परिवार सदमे में, पिता परदेस से लौटा

मृतक मासूम का पिता कल्लू परदेश में मजदूरी कर परिवार का भरण-पोषण कर रहा था। बेटे की मौत की सूचना मिलते ही वह बदहवासी की हालत में गांव पहुंचा। पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।

प्राथमिकी दर्ज, लेकिन गिरफ्तारी नहीं

घटना की जानकारी मिलते ही राजापुर थाने की पुलिस मौके पर पहुंची और जांच के बाद झोलाछाप डॉक्टर के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 105 के अंतर्गत मुकदमा पंजीकृत कर लिया गया। हालांकि, अब तक आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है, जिससे पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

रसूखदारों का दबाव, पीड़ित परिवार सहमा

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उधर, मामला दर्ज होते ही झोलाछाप डॉक्टर के रसूखदार परिजन और स्थानीय दबंग पीड़ित परिवार पर दबाव बनाने लगे हैं। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, इन लोगों ने शिकायतकर्ता की तलाश में कौशांबी जिले के एक ईंट भट्ठे तक पहुंचकर उसे धमकाने की कोशिश की। कहा जा रहा है़ कि चार से पांच गाड़ियों में सवार होकर ये लोग हथियारों से लैस पहुंचे थे, जिससे भय का माहौल बन गया।

ग्राम प्रधान प्रतिनिधि की संवेदना बनाम पूर्व ब्लॉक प्रमुख की साजिश

गांव के प्रधान प्रतिनिधि जितेंद्र शुक्ला ने जहां पीड़ित परिवार से संवेदना प्रकट की, वहीं ग्राम प्रधान के पिता और पूर्व ब्लॉक प्रमुख बालमुकुंद पांडेय पर परिजनों पर दबाव डालने का आरोप है। यह दोहरा चरित्र गांव में चर्चा का विषय बना हुआ है।

अन्याय के खिलाफ खड़ा है सवाल – पुलिस अब तक क्यों मौन?

यह अत्यंत गंभीर और संवेदनशील मामला है, जो न केवल एक मासूम की जान जाने से जुड़ा है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अवैध चिकित्सा व्यवसाय और स्थानीय रसूखदारों का गठजोड़ किस तरह कानून व्यवस्था को चुनौती दे रहा है।

सबसे बड़ा सवाल यही है कि एफआईआर दर्ज होने के बावजूद अब तक गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? क्या पुलिस रसूख के आगे नतमस्तक है या फिर जानबूझकर समय खींचा जा रहा है?

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