अखिलेश यादव की नई सियासी चाल: ब्राह्मण नेताओं के सहारे 90 बनाम 10 की रणनीति

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उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने 90 बनाम 10 के सामाजिक समीकरण के तहत ब्राह्मण नेताओं को साधने की कवायद तेज की है। विनय तिवारी की गिरफ्तारी को मुद्दा बनाकर भाजपा को घेरने की तैयारी।

उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर से हलचल तेज हो गई है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव हाल ही में पार्टी कार्यालय पहुंचे, जहां पहले से मौजूद कुछ प्रमुख ब्राह्मण नेता उनका इंतजार कर रहे थे। जैसे ही अखिलेश पहुंचे, सभी नेता खड़े होकर उनका अभिवादन करने लगे। इस मुलाकात की शुरुआत अखिलेश के सहज सवाल से हुई—“कैसे आना हुआ आप लोगों का?”

इस पर कुशल तिवारी ने जवाब दिया, “आप मदद नहीं करेंगे तो हम बर्बाद हो जाएंगे।” इसी बीच अखिलेश ने अपने सहयोगी से कहा कि एक खास नेता को फोन मिलाएं। कुछ ही देर में वरिष्ठ नेता माता प्रसाद पांडे भी बैठक में शामिल हो गए और करीब एक घंटे तक गहन चर्चा चलती रही।

90 बनाम 10: अखिलेश की सियासी गणित

गौरतलब है कि इस बार अखिलेश यादव ने 90 बनाम 10 का नया सामाजिक समीकरण तैयार किया है। इससे पहले 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने 85 बनाम 15 का नारा दिया था। हालांकि, उस समय सीटें बढ़ी थीं लेकिन सत्ता से दूरी बनी रही। तब उन्होंने कुछ जातिगत पार्टियों से गठबंधन कर पिछड़ी जातियों के वोट बटोरने की कोशिश की थी, मगर वो रणनीति ज्यादा कारगर नहीं रही।

इसके विपरीत, हाल के लोकसभा चुनाव में PDA फार्मूले (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) ने समाजवादी पार्टी को बड़ा फायदा दिलाया। पार्टी देश की तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बनकर उभरी। अब अखिलेश यादव इसी जीत को विस्तार देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

राणा सांगा विवाद के बाद अखिलेश की नई रणनीति

रामजी लाल सुमन के राणा सांगा पर दिए बयान के बाद से ठाकुर समुदाय में जबरदस्त नाराज़गी है। करणी सेना और अन्य क्षत्रिय संगठन विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं। इस मौके को भुनाते हुए अखिलेश ने गैर-ठाकुर सवर्णों, विशेषकर ब्राह्मणों को साधने की रणनीति शुरू कर दी है।

विनय तिवारी की गिरफ्तारी बनी सियासी हथियार

इस पूरे घटनाक्रम के बीच पूर्व विधायक विनय शंकर तिवारी की गिरफ्तारी ने नया मोड़ ले लिया है। वे बाहुबली नेता हरि शंकर तिवारी के बेटे हैं, जो मुलायम सिंह यादव, मायावती और राजनाथ सिंह की सरकारों में मंत्री रह चुके हैं। विनय तिवारी पर बैंकों से लगभग 700 करोड़ की धोखाधड़ी के आरोप हैं और इस मामले में ईडी ने उन्हें गिरफ्तार किया है।

इस मुद्दे को अखिलेश यादव ने राजनीतिक हथियार बनाने का मन बना लिया है। हाल ही में पार्टी कार्यालय में हुई बैठक में माता प्रसाद पांडे, पवन पांडे और कुशल तिवारी सहित कई ब्राह्मण नेताओं ने भाग लिया। बैठक में फैसला लिया गया कि इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया जाएगा।

अखिलेश यादव ने साफ शब्दों में कहा, “समाजवादी पार्टी तिवारी परिवार के साथ मजबूती से खड़ी है।” विरोध प्रदर्शन की योजना भी बनी और विचार किया जा रहा है कि खुद अखिलेश प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस मुद्दे को जनता के सामने लाएं।

ब्राह्मण प्रतिनिधित्व बढ़ाने की कवायद

समाजवादी पार्टी में ब्राह्मण प्रतिनिधित्व बढ़ाने की कोशिश कोई नई बात नहीं है। मुलायम सिंह यादव के समय में जनेश्वर मिश्रा पार्टी में प्रभावशाली नेता हुआ करते थे। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अखिलेश ने सांसद बनने के बाद माता प्रसाद पांडे को यूपी विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया।

हालांकि पार्टी के भीतर इसे PDA फार्मूले के खिलाफ समझा गया, फिर भी अखिलेश अपने निर्णय पर डटे रहे। इससे पहले उन्होंने मनोज पांडे को विधानसभा में पार्टी का चीफ व्हिप भी बनाया था, जो बाद में पार्टी से अलग हो गए।

ब्राह्मण समर्थन से भाजपा को सीधी चुनौती

इस पूरी रणनीति के पीछे अखिलेश यादव की मुख्य मंशा है ब्राह्मण वोट बैंक में सेंध लगाना। यदि वे इसमें सफल होते हैं तो इसका सीधा नुकसान भाजपा को होगा। पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और भाजपा के वोट शेयर में लगभग आठ प्रतिशत का अंतर था। अखिलेश की कोशिश है कि इस अंतर को ब्राह्मणों के समर्थन से पाटा जाए।

अखिलेश यादव की चालें इस बार काफी सोच-समझकर चली जा रही हैं। PDA के बाद अब वे सवर्ण ब्राह्मणों को जोड़ने में लगे हैं। राजनीति में गणित और भावनाएं—दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं, और फिलहाल अखिलेश यादव इन्हें संतुलित करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

➡️संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट

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Author: samachardarpan24

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