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November 21, 2024 9:36 pm

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क्या ब्राम्हणों को लुभाने अखिलेश ने “माता बाबा” को विपक्षी कमान सौंपी? इसके साथ झलकते कई संकेत

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

समाजवादी पार्टी (सपा) ने 81 वर्षीय माताप्रसाद पांडे को उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त किया है। पांडे, जो पहले विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं और सात बार इटावा से विधायक भी रहे हैं, अब इस महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी संभालेंगे। यह निर्णय सपा के प्रमुख अखिलेश यादव द्वारा लिया गया है, जो खुद पहले इस पद पर थे लेकिन लोकसभा चुनाव में सांसद निर्वाचित होने के बाद उन्होंने पद छोड़ दिया था।

पांडे की नियुक्ति पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

माताप्रसाद पांडे की नियुक्ति को लेकर कई संभावित कारण बताए जा रहे हैं। इनमें एक प्रमुख कारण ब्राह्मण समुदाय को सपा के साथ जोड़ने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

पांडे, जो सिद्धार्थनगर ज़िले से हैं, 1980 से लगातार राजनीति में सक्रिय रहे हैं और समाजवादी पार्टी से जुड़े हैं, सिवाय 2017 के विधानसभा चुनाव के जब वे हार गए थे।

मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए वे विधानसभा के स्पीकर भी रहे और अखिलेश यादव के कार्यकाल में भी उन्होंने इसी पद की जिम्मेदारी निभाई।

बीएसपी और भाजपा की आलोचना

इस फैसले की राजनीतिक प्रतिक्रिया भी मिली है। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की प्रमुख मायावती ने अखिलेश यादव की आलोचना की है।

उनका कहना है कि सपा ने ब्राह्मण समाज की उपेक्षा की है और यह निर्णय इस समुदाय के उत्थान की दिशा में कोई सार्थक कदम नहीं है। वहीं, कांग्रेस ने इसे सपा का आंतरिक मामला मानते हुए इस निर्णय की तारीफ की है।

सपा के अंदरूनी विवाद और ब्राह्मण वोट बैंक

समाजवादी पार्टी के अंदरूनी मामलों में भी विवाद रहे हैं। हाल ही में, दो ब्राह्मण विधायक, मनोज पांडे और राकेश पांडे, ने राज्यसभा चुनाव में पाला बदल लिया था।

इस स्थिति ने सपा को ब्राह्मण वोट बैंक को मजबूत करने के प्रयास में जोड़ा है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समुदाय का वोट महत्वपूर्ण माना जाता है, जो लगभग 12 से 14 प्रतिशत है और कई विधानसभा सीटों पर प्रभावशाली भूमिका निभाता है।

भाजपा की आलोचना और सपा का बचाव

भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने इस नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं, उनका कहना है कि शिवपाल सिंह यादव को किनारे करके अखिलेश यादव ने पांडे को चुना है ताकि किसी भी चुनौती का सामना न करना पड़े। वहीं, सपा प्रवक्ता मोहम्मद आज़म खान ने इसे सही निर्णय बताया और कहा कि पांडे का अनुभव और समाजवादी मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इस निर्णय की वैधता को साबित करते हैं।

पीडीए फ़ॉर्मूले का विवाद

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) की राजनीति में माताप्रसाद पांडे की नियुक्ति ने पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) फ़ॉर्मूले को लेकर विवाद को जन्म दिया है।

सपा पर आरोप है कि उसने पीडीए के सिद्धांत से भटककर माताप्रसाद पांडे को विपक्ष का नेता नियुक्त किया है, जबकि मायावती और भाजपा ने इस निर्णय की आलोचना की है।

विशेषज्ञों की राय

सपा का तर्क है कि पांडे की नियुक्ति दरअसल एक रणनीतिक कदम है। विजय उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार, का कहना है कि सपा ने यह संदेश दिया है कि जो लोग भाजपा से नाराज हैं, उन्हें कांग्रेस में जाने की बजाय सपा में शामिल होना चाहिए। इसका मकसद यह है कि भाजपा की नुकसान का लाभ कांग्रेस को ना मिले।

यूपी के राजनीति विशेषज्ञ शरत प्रधान का कहना है कि पांडे की नियुक्ति का उद्देश्य एक बैलेंस बनाना है और ब्राह्मण समुदाय को यह संदेश देना है कि समाजवादी पार्टी में उनके लिए जगह है। प्रधान का कहना है कि भाजपा पीडीए के फ़ॉर्मूले के खिलाफ भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही है, जबकि यह फ़ॉर्मूला अब भी सपा की नीति का हिस्सा है।

लोकसभा चुनाव में पीडीए का प्रभाव

सपा ने लोकसभा चुनाव में पीडीए फ़ॉर्मूले का प्रभावी ढंग से उपयोग किया, जिससे उन्हें 37 सीटें मिलीं। इसके मुकाबले भाजपा केवल 33 सीटें ही जीत सकी। इस चुनावी सफलता का श्रेय पीडीए के सिद्धांत को दिया जा रहा है।

भाजपा की नई रणनीति

वहीं, भाजपा ने ओबीसी वोट को वापस लाने के लिए कवायद शुरू कर दी है। 29 जुलाई को पार्टी ने ओबीसी मोर्चा की बैठक बुलाई है। यह चुनावी रणनीति भाजपा की पीडीए फ़ॉर्मूले के खिलाफ तैयारी का हिस्सा है।

पूर्वांचल की राजनीतिक अदावत

पूर्वांचल की राजनीति में ठाकुर और ब्राह्मण समुदाय के बीच की अदावत भी महत्वपूर्ण रही है। 80-90 के दशक में हरिशंकर तिवारी जैसे बाहुबली नेताओं का वर्चस्व था, लेकिन उनके खिलाफ ठाकुर वीरेंद्र प्रताप शाही का प्रभाव भी था। शाही की हत्या के बाद तिवारी का वर्चस्व कायम रहा। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद ठाकुरों का प्रभाव बढ़ा है, लेकिन भाजपा इस प्रभाव को नकारते हुए ब्राह्मण बाहुल्य सीटों पर अपनी स्थिति मजबूत बता रही है।

भविष्य की राजनीतिक रणनीतियाँ

सपा और भाजपा के बीच वोट बैंक को लेकर यह रस्साकशी अगले विधानसभा चुनाव 2027 तक जारी रहने की संभावना है। सपा बीजेपी के अगड़ी जातियों के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है, जबकि भाजपा पिछड़ी जातियों का वोट वापस लाने के प्रयास में लगी हुई है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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