‘सौगात-ए-मोदी’ पहल के तहत प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मुसलमानों को ईद की सौगात देने की योजना, इसके राजनीतिक प्रभाव और सामाजिक संदेश का विश्लेषण। जानें पूरी जानकारी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने मुसलमानों के बीच पहुंच बनाने के लिए एक नई पहल की है। ईद के मौके पर ‘सौगात-ए-मोदी’ नामक योजना के तहत मुसलमानों को विशेष किट वितरित की जा रही है। इस किट में महिलाओं के लिए सूट का कपड़ा, पुरुषों के लिए कुर्ता-पायजामा, सेवइयां, खजूर, मेवे, चीनी और चावल शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस किट पर प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर प्रमुखता से छपी हुई है, ठीक उसी तरह जैसे मुफ्त अनाज योजना के बैग पर होती है।
इसके अलावा, किट पर भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और कुछ मुस्लिम चेहरे भी नजर आ रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि भाजपा मुसलमानों को साधने की रणनीति पर काम कर रही है। यही नहीं, किट पर ‘भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा’ का नाम भी अंकित है, जो इस पहल को पार्टी की संगठित रणनीति का हिस्सा बनाता है।
क्या भाजपा की नजर 32 लाख मुसलमानों पर?
भाजपा इस योजना के जरिए देश के 32 लाख गरीब मुसलमानों तक पहुंचने का लक्ष्य रख रही है। इसके लिए पार्टी ने करीब 32,000 पदाधिकारियों को अलग-अलग मस्जिदों से संपर्क करने की जिम्मेदारी सौंपी है, ताकि पात्र लाभार्थियों की पहचान की जा सके।
अगर सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर नजर डालें, तो देश के करीब 32% मुसलमान अनपढ़ हैं और 30% गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। इनमें से ‘पसमांदा’ मुसलमानों की संख्या 80% से अधिक है, जो कि प्रधानमंत्री मोदी के कई बयानों में प्रमुखता से शामिल रहे हैं। ऐसे में, सवाल यह उठता है कि क्या 32 लाख की संख्या मुस्लिम आबादी के लिहाज से पर्याप्त है?
हालांकि, इस पहल को लेकर भाजपा के अंदर और बाहर कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह एक सकारात्मक कदम है, जबकि कुछ इसे चुनावी रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।
क्या भाजपा मुस्लिम मतदाताओं को आकर्षित कर पाएगी?
यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि मुसलमान पारंपरिक रूप से भाजपा के विरोध में रहे हैं। जनसंघ के जमाने से ही भाजपा हिंदूवादी छवि वाली पार्टी मानी जाती रही है। 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा-एनडीए को केवल 10% मुस्लिम वोट मिले थे, जबकि विपक्षी ‘इंडिया गठबंधन’ को 65% मुस्लिम वोट मिले थे।
हालांकि, कुछ राज्यों में भाजपा को अपेक्षाकृत अधिक मुस्लिम समर्थन मिला। उदाहरण के लिए:
गुजरात में भाजपा को 29% मुस्लिम वोट मिले, जबकि ‘इंडिया’ गठबंधन को 59%।
राजस्थान और दिल्ली में भी मुस्लिम वोट प्रतिशत में इजाफा हुआ।
लेकिन अगर हम मोदी सरकार की नीतियों पर नजर डालें, तो मुसलमानों को कई योजनाओं का लाभ मिला है। उदाहरण के लिए:
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 1.30 करोड़ मुस्लिम लाभार्थी हैं।
किसान सम्मान निधि योजना में भी करीब एक-तिहाई लाभार्थी मुसलमान हैं।
तीन तलाक कानून पारित कर मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को कानूनी सुरक्षा दी गई।
इसके बावजूद, मुसलमानों का बड़ा वर्ग भाजपा को अपना समर्थन देने में हिचकिचाता रहा है।
‘सौगात-ए-मोदी’ पर कांग्रेस का हमला
भाजपा की इस पहल को लेकर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस ने इसे “छलावा” और “फेंका हुआ टुकड़ा” करार देते हुए कहा कि भाजपा मुसलमानों को सिर्फ चुनावी फायदे के लिए इस्तेमाल कर रही है।
कांग्रेस का यह भी कहना है कि अगर मोदी सरकार वाकई में मुस्लिम समुदाय की भलाई चाहती है, तो उसे रोजगार, शिक्षा और सामाजिक समानता पर ध्यान देना चाहिए, न कि सिर्फ “ईदी” जैसी योजनाओं के जरिए दिखावटी समर्थन हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए।
क्या यह रणनीति कारगर होगी?
अब सवाल यह उठता है कि क्या ‘सौगात-ए-मोदी’ के जरिए भाजपा मुसलमानों के बड़े तबके को अपने पक्ष में ला पाएगी?
1. एक तरफ, भाजपा की यह पहल गरीब मुसलमानों तक पहुंच बनाने की कोशिश लगती है।
2. दूसरी तरफ, यह देखा जाना बाकी है कि मुस्लिम समुदाय इसे एक सकारात्मक पहल के रूप में स्वीकार करता है या इसे केवल एक चुनावी रणनीति मानता है।
3. इसके अलावा, अगर भाजपा को वास्तव में मुसलमानों के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ानी है, तो उन्हें केवल “सौगात” देने से आगे बढ़कर उनके सामाजिक-आर्थिक विकास पर ध्यान देना होगा।
ईद के बाद इस पहल के प्रभाव का सही आकलन किया जा सकेगा। तब यह स्पष्ट होगा कि ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ का नारा कितना सार्थक हुआ है।
➡️अंजनी कुमार त्रिपाठी

Author: samachardarpan24
जिद है दुनिया जीतने की