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आज का मुद्दा

युद्ध की आहट और मजदूरों की विदाई—कब तक भुगतेंगे मेहनतकश?

यह लड़ाई किससे है? दुश्मन से या अपने डर से—प्रवासी मजदूरों की चुप चीख

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मृणालिनी की रिपोर्ट

जब सरहदों की आग खेत-खलिहानों तक पहुंचने लगे

भारत-पाक सीमा पर बढ़ता तनाव अब केवल कूटनीति या सुरक्षा तक सीमित नहीं रहाइसका असर पंजाब और हरियाणा की जनजीवन पर स्पष्ट दिखने लगा है। खासकर प्रवासी मजदूरों का लगातार पलायन एक नई चिंता बनकर उभरा है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बंगाल से आए ये श्रमिक न केवल खेतों की फसलें उगाते हैं, बल्कि फैक्ट्रियों, निर्माण स्थलों और दैनिक श्रम में भी अहम भूमिका निभाते हैं।

पहला संकेत: असुरक्षा की भावना और घर वापसी

प्रवासी मजदूरों के पलायन की सबसे पहली वजह असुरक्षा की भावना हैजैसे ही भारत-पाक सीमा पर गोलाबारी या तनाव की खबरें आती हैं, सबसे पहले असर उन श्रमिकों पर होता है जो सीमावर्ती जिलों—गुरदासपुर, पठानकोट, फिरोजपुर, अबोहर, बठिंडा—में काम कर रहे होते हैं।
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खेतों की रीढ़: श्रमिक विहीन हरियाली

पंजाब और हरियाणा की कृषि व्यवस्था श्रमिकों पर गहराई से निर्भर है गेहूं की कटाई हो या धान की रोपाई, हर कार्य में प्रवासी मजदूरों की अहम भूमिका होती है।

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फैक्ट्रियों की फड़फड़ाती सांसें

केवल कृषि ही नहीं, लुधियाना, मोहाली, अमृतसर, पानीपत जैसे औद्योगिक क्षेत्रों की फैक्ट्रियाँ भी प्रवासी मजदूरों के दम पर चलती हैंइनमें वस्त्र उद्योग, स्टील, साइकिल निर्माण और प्लास्टिक इंडस्ट्री प्रमुख हैं।
अब जबकि मजदूर अचानक वापस लौट रहे हैं, इन इकाइयों में उत्पादन ठप होने की स्थिति बनने लगी है। कई जगहों पर ऑर्डर कैंसिल हो रहे हैं, और व्यापार घाटे का डर बढ़ने लगा है।

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सामाजिक और आर्थिक असर: दूरगामी और गंभीर

जब लाखों की संख्या में श्रमिक पलायन करते हैंतो असर केवल मजदूरी या उत्पादन तक सीमित नहीं रहता।
इसके विपरीत, इसका प्रभाव स्थानीय किराना दुकानों, छोटे व्यापारियों, ट्रांसपोर्ट, रियल एस्टेट और स्थानीय रोजगार पर भी पड़ता है। मजदूरों के जाने से उनकी खपत रुक जाती है, जिससे बाजार में सुस्ती आने लगती है।

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प्रशासन की चुप्पी: क्या तैयारी है?

प्रवासी मजदूरों के इस असामयिक पलायन पर सरकार और प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं…

क्या यह रणनीतिक विफलता है?

भारत-पाक तनाव के मामलों में हमेशा यह ध्यान रखा जाना चाहिएजबकि पिछले वर्षों में कोविड-19 के दौरान श्रमिकों के पलायन के कड़वे अनुभव सामने आए थे, फिर भी ऐसा लगता है कि इस बार प्रशासन ने तैयारी नहीं की। न तो किसी तरह की सुरक्षा आश्वासन की योजना है, न ही श्रमिकों के मनोबल को बनाए रखने के प्रयास।

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समाधान की संभावनाएं

फिलहाल जो सबसे जरूरी कदम है, वह यह कि मजदूरों को आश्वस्त किया जाएस्थानीय प्रशासन, पंचायतें और फैक्ट्री मालिक मिलकर उन्हें यह भरोसा दिलाएं कि स्थिति नियंत्रण में है।
इसके अलावा, राज्य सरकारों को बिहार, झारखंड जैसे राज्यों से संपर्क कर श्रमिक संवाद तंत्र मजबूत करना चाहिए, ताकि गलत सूचना या अफवाहों के कारण मजदूर घर लौटने को मजबूर न हों।

मीडिया की भूमिका: अफवाह बनाम सच

टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर फैली सनसनीखेज खबरें मजदूरों के डर को और बढ़ा रही हैंऐसे में, मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह सटीक और संतुलित जानकारी साझा करे। डर फैलाने के बजाय, उसे जनजागरण की भूमिका निभानी चाहिए।
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पलायन का संकट—आर्थिक नहीं, राष्ट्रीय है

आज जब भारत अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी ताकत बढ़ा रहा हैतब उसकी सीमाओं के भीतर मजदूर असुरक्षा में जी रहे हैं। यह केवल एक आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक और राष्ट्रीय संकट है।
यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया, तो पंजाब-हरियाणा जैसे राज्यों की अर्थव्यवस्था, जो पहले ही हरित क्रांति के बाद स्थिर हो चुकी है, और भी कमजोर पड़ सकती है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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