ऑपरेशन सिंदूर और ड्रोन हमलों के बाद पंजाब के बॉर्डर जिलों में डर का माहौल है। प्रवासी मजदूर और छात्र बड़ी संख्या में राज्य छोड़ रहे हैं, जिससे खेती और उद्योग दोनों संकट में हैं।
जसपाल कौर की रिपोर्ट
पंजाब के बॉर्डर जिलों में ड्रोन अटैकों और ‘ऑपरेशन सिंदूर‘ के बाद उत्पन्न तनावपूर्ण स्थिति ने राज्य की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बुरी तरह प्रभावित किया है। लुधियाना, अमृतसर, पठानकोट, बठिंडा और फिरोजपुर जैसे ज़िलों से प्रवासी मजदूरों, छात्रों और छोटे व्यापारियों का बड़े पैमाने पर पलायन शुरू हो गया है। इनमें अधिकांश लोग उत्तर प्रदेश और बिहार से हैं, जो यहां खेती, इंडस्ट्री और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दे रहे थे।
सबसे बड़ा असर कृषि पर पड़ रहा है
धान की रोपाई का समय आ चुका है, लेकिन मजदूरों के पलायन से किसान बेहद चिंतित हैं। पंजाब में धान की खेती का दारोमदार काफी हद तक बाहरी राज्यों से आने वाली लेबर पर निर्भर है। यदि यही स्थिति बनी रही, तो रोपाई का काम गंभीर संकट में पड़ सकता है।
उद्योगों पर भी खतरा मंडरा रहा है
लुधियाना, जो कि पंजाब का औद्योगिक केंद्र है, वहां की फैक्ट्रियां काफी हद तक यूपी-बिहार के मजदूरों पर आश्रित हैं। जैसे-जैसे ये मजदूर अपने घर लौट रहे हैं, उत्पादन धीमा पड़ रहा है और इंडस्ट्री को नुकसान हो रहा है।
छात्र और पर्यटक भी हो रहे हैं प्रभावित
जालंधर, अमृतसर और पटियाला जैसे शहरों में मौजूद शिक्षा संस्थानों और पर्यटन केंद्रों में भी असर देखा जा रहा है। जाजलंधर रेलवे स्टेशन पर प्रवासियों और छात्रों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है, जो घर लौटने की जल्दी में हैं।
हालांकि सीजफायर की घोषणा हो चुकी है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आम लोगों के मन में सुरक्षा को लेकर भरोसा नहीं बन पा रहा है। बार-बार हो रही घटनाओं ने लोगों को डरा दिया है। प्रवासी मानते हैं कि फिलहाल अपने घरों में रहना ही सुरक्षित विकल्प है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जल्द हालात नहीं सुधरे, तो इसका असर पंजाब की अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक रूप से पड़ सकता है।
राज्य और केंद्र सरकार के लिए यह एक स्पष्ट संकेत है कि सुरक्षा, स्थिरता और भरोसे का वातावरण जल्द बहाल किया जाना ज़रूरी है, ताकि प्रवासी वापसी की सोच सकें और पंजाब अपनी उत्पादनशीलता व स्थायित्व दोबारा हासिल कर सके।