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जिंदगी एक सफर

मुनीर नियाज़ी: शायरी से भविष्य को पहचानने वाला जादूगर

 "उनके लफ़्ज़ों में वो धड़कन थी, जो आने वाले कल की दस्तक सुनाती थी।"

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 “होशियारपुर के फक्कड़ शायर मुनीर नियाज़ी की नर्म आवाज़ और मख़मली शायरी में छिपा है वतन की जुदाई का दर्द, प्रेम की तलाश और भविष्य की आहट। जानिए उनकी अनूठी शख्सियत और बेबाक शेरों की दुनिया।”

अनिल अनूप

पंजाब का एक शहर — होशियारपुर।

पूरे पंजाब की हरियाली में भी इसकी हरियाली कुछ अलग, कुछ ज़्यादा है। गुड़ मंडी की मिठास हो या रेलवे रोड पर ताज़गी से भरपूर जूस का स्वाद — यहाँ हर कोना जैसे अपने भीतर कहानी समेटे है।

जालंधर की ओर बढ़ते हुए जब आप शाम चौरासी पहुँचते हैं, तो सुरों की उस परंपरा की झलक मिलती है, जिसने संगीत का एक अमर घराना रचा।

वहीं चंडीगढ़ की राह पकड़ें तो चब्बेवाल के भीतर गंज-ए-शकर बाबा शेख फरीद की मजार पर सुकून बिखरा मिलता है। गन्ने, किन्नू, तरबूज — क्या कुछ नहीं है यहाँ की मिट्टी में!

पंजाब सरकार भी होशियारपुर को संतों का शहर मानती है।

इसी संतों की भूमि पर जन्मा एक शायर — मुनीर नियाज़ी — जिसने उर्दू अदब को अपने नर्म लहजे और बेजोड़ तख़य्युल से समृद्ध किया।

मुनीर नियाज़ी का नाम उर्दू शायरी के उन बुलंद सितारों में शुमार होता है, जिनकी आवाज़ कभी तल्ख़ नहीं हुई। उनकी शायरी, मख़मली एहसास की तरह दिल पर उतरती है। बड़ी से बड़ी बात वे इतनी सहजता से कह जाते कि सुनने वाला चुपचाप सोच में डूब जाए। उनकी शायरी, जैसे ज़बानों की साझी विरासत को सँजोए हुए, एक नई राह गढ़ती है।

मुनीर नियाज़ी वक़्त से आगे चलने वाले शायर थे। उनकी ग़ज़लों में भविष्य की धड़कनों की आहट साफ़ सुनाई देती है। वतन के बंटवारे का दर्द, हिजरत की टीस, और जन्मभूमि से जुदाई का एहसास उनके लफ्ज़ों में बार-बार लौटता है। उनकी शायरी में प्रीतम, मीत, खोज, दीप जैसे भारतीय शब्दों की मिठास महसूस होती है — जैसे कोई पुरानी आत्मा नए ज़ख्मों के साथ जी रही है ।

मुनीर नियाज़ी ने मिंटगुमरी से दसवीं तक पढ़ाई की, श्रीनगर और लाहौर की गलियों में घूमा, दयाल सिंह कॉलेज और इस्लामिया कॉलेज जालंधर में भी पढ़ा। उर्दू, पंजाबी और अंग्रेजी — तीनों भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। वे भीड़ से अलग थे — न सिर्फ़ जीवन में बल्कि शायरी में भी। जब शायरी का संसार क्लासिकियत में लिपटा था, मुनीर ने एक अलग डिक्शन गढ़ा, जो उनकी विशिष्टता का प्रमाण है।

उनके इंटरव्यूज़ में अक्सर झलकता कि उन्हें खुद के अलावा शायद ही कोई शायर पसंद आता हो।

एक आत्माभिमानी, फक्कड़ और बेलौस शख्सियत, जो मुनीर नियाज़ी को अमर बनाती है।

डॉ. मंजूर एजाज जैसे समकालीन उनके फक्कड़पन के कई किस्से सुनाते हैं। मसलन, जब भुट्टो से मिलने की बात चली तो नियाज़ी साहब बोले — “मुलाकात करनी चाहिए, क्योंकि उसे अवाम ने चुना है, मगर तरीके से। स्कॉच पीने की ज़रूरत नहीं, स्कॉच तो घर में भी है।”

उनके घर में दरवाज़े नहीं, खिड़कीनुमा रास्ता था — “थ्रिल बना रहता है, जैसे चोर दरवाज़े से दाखिल हो रहे हों,” — मुनीर साहब ने हँसते हुए कहा था।

यही फक्कड़पन उनकी शायरी में भी झलकता है — एक अनूठा, मख़मली अकेलापन जो हर शेर में धड़कता है:

 “बेचैन बहुत फिरना, घबराए हुए रहना

इक आग सी जज़्बों की दहकाए हुए रहना”

मुनीर नियाज़ी की शायरी सूफ़ीवाद से इतर एक बिल्कुल अपनी राह बनाती है — बनावटी जटिलताओं से दूर, एहसासों की सच्चाई में डूबी हुई। उनका कलाम बाहर से भीतर और भीतर से और भी गहरे तक यात्रा करता है।

हर शेर में तलाश — कभी प्रेम की, कभी पहचान की, कभी खोए हुए वतन की:

जरूरी बात कहनी हो, कोई वादा निभाना हो,

उसे वापस बुलाना हो, हमेशा देर कर देता हूं मैं…”

मुनीर नियाज़ी का अकेलापन, उनका अजनबीपन, एक ऐसी खामोश पुकार है जो पढ़ने वाले को भी अपने भीतर का एकांत दिखा देती है।

उनकी ग़ज़लों में लोक, जीवन, रिश्ते और यथार्थ के बीज भी हैं — मगर उनकी बुनावट ऐसी है कि लगता है, जैसे समय की नसों पर उनकी उंगलियाँ थिरक रही हों।

उनकी रचनाओं — तेज़ हवा और ठंडा फूल, पहली बात ही आखिरी थी, जंगल में धनक, दुश्मनों के दरमियान शाम, एक दुआ जो मैं भूल गया था और माहे मुनीर — में यह तलाश हर जगह दिखती है।

उनकी नज़्में जैसे समय के अक्स को पेश करती हैं:

आ गई याद शाम ढलते ही

बुझ गया दिल चिराग जलते ही…”

मुनीर नियाज़ी की शायरी एक गुलदस्ता है, जिसमें फूल भी हैं और समय की सच्चाइयों के नुकीले कांटे भी।

वे शायर थे, मगर एक भविष्यवक्ता भी — जिनकी नज़रों में आने वाले कल की परछाइयाँ साफ़ झलकती हैं।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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