मानिकपुर टाइगर रिजर्व के भाग-2 में रेंजर सोनकर की अगुवाई में बंजर और पथरीली ज़मीन को हरियाली में बदलने का अभियान ज़ोरों पर है। वृक्षारोपण के साथ सुरक्षा के ठोस इंतज़ाम किए जा रहे हैं, जिससे यह क्षेत्र जल्द ही घना और समृद्ध वन क्षेत्र बनकर उभरेगा।
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट जनपद के मानिकपुर टाइगर रिजर्व (भाग-2) में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक नई इबारत लिखी जा रही है। क्षेत्रीय वन अधिकारी (रेंजर) श्री सोनकर की अगुवाई में यहां बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कार्य को अंजाम दिया जा रहा है। यह कोई सामान्य वृक्षारोपण नहीं, बल्कि एक मिसाल है — क्योंकि जिस ज़मीन पर यह कार्य हो रहा है, वह पूरी तरह से पथरीली और बंजर मानी जाती है।
बंजर ज़मीन में उम्मीद की हरियाली
गौरतलब है कि मानिकपुर रेंज के इस भाग में मिट्टी का नामोनिशान तक नहीं है। हल्की खुदाई के बाद ही पत्थरों की परत सामने आ जाती है। इसके बावजूद, रेंजर सोनकर ने हार नहीं मानी और विशेष तकनीकी प्रयासों के माध्यम से इस कठिन भूभाग में पौधरोपण की राह तलाशी।
उन्होंने अपने पूरे वन अमले के साथ दिन-रात मेहनत करते हुए मिट्टी बाहर से मंगवाकर भराई करवाई, फिर उसमें जैविक खाद डलवाकर पौधों के अनुकूल वातावरण तैयार किया। परिणामस्वरूप आज यहां लगभग 90 प्रतिशत वृक्षारोपण कार्य पूरा हो चुका है।
इस बार प्लांटेशन सिर्फ ‘कागज़ी खानापूर्ति’ नहीं
अब तक आमतौर पर देखा गया है कि सरकारी योजनाओं के अंतर्गत वृक्षारोपण तो करा दिया जाता था, लेकिन उसकी सुरक्षा के लिए कोई विशेष उपाय नहीं किए जाते थे। नतीजा यह होता था कि या तो जानवर पौधों को नुकसान पहुंचा देते थे, या फिर कुछ असामाजिक तत्व इन्हें नष्ट कर देते थे। लेकिन इस बार कहानी बिल्कुल अलग है।
टाइगर रिजर्व घोषित हो जाने के बाद इस क्षेत्र में वृक्षों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है। वृक्षारोपण के चारों ओर जहां सुरक्षा खाइयाँ खुदवाई जा रही हैं, वहीं तारबंदी (बेरिकेटिंग) भी की जा रही है, ताकि जानवर या अन्य तत्व अंदर प्रवेश न कर सकें।
पूर्व में लगाए जाने वाले खखरी (कांटेदार झाड़ियाँ) पर्याप्त नहीं मानी जाती थीं, लेकिन अब व्यापक और वैज्ञानिक तरीके से पौधों की रक्षा सुनिश्चित की जा रही है।
स्थानीय सहभागिता और प्रशिक्षण की नई पहल
इसके अतिरिक्त, वन विभाग स्थानीय ग्रामीणों को भी इस कार्य से जोड़ रहा है। खासतौर पर जो ग्रामीण बाँस की खेती में लगे हैं, उन्हें पौधरोपण के महत्व को समझाया जा रहा है और साथ ही वृक्षों की सुरक्षा से जुड़ी विशेष टिप्स भी वन विभाग की टीम उन्हें समय-समय पर दे रही है। इससे न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि ग्रामीणों को भी रोजगार व जागरूकता के अवसर प्राप्त होंगे।
आगामी लक्ष्य और उम्मीदें
जैसे-जैसे पौधे विकसित होंगे और उनकी हरियाली फैलती जाएगी, मानिकपुर का यह हिस्सा एक घना और जैव विविधता से भरपूर वन क्षेत्र में तब्दील हो जाएगा। यह न सिर्फ पर्यावरण की दृष्टि से लाभकारी होगा, बल्कि टाइगर रिजर्व की जैविक श्रृंखला को भी सशक्त बनाएगा।
रेंजर सोनकर की यह पहल यह साबित करती है कि इच्छाशक्ति और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ अगर कोई कार्य किया जाए तो असंभव सी लगने वाली जमीन भी हरी-भरी की जा सकती है। मानिकपुर टाइगर रिजर्व (भाग-2) का यह वृक्षारोपण अभियान आने वाले समय में पूरे बुंदेलखंड के लिए एक आदर्श मॉडल बनकर उभर सकता है।