
चित्रकूट के भरतकूप क्षेत्र में अवैध खनन और बिना मानक के चल रही क्रेशर इकाइयों ने श्रमिकों के लिए बना दी है मौत की घाटी। जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी साधे हैं, हादसे बढ़ते जा रहे हैं।
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट, भरतकूप। कभी पहाड़ों की तलहटी में पत्थरों के खदानों में, तो कभी क्रेशर मशीनों की चपेट में—भरतकूप क्षेत्र श्रमिकों के लिए कब्रगाह बनता जा रहा है। आए दिन हो रही दुर्घटनाएं न केवल मानवीय त्रासदी को जन्म दे रही हैं, बल्कि यह भी उजागर कर रही हैं कि कैसे खनन माफिया और लापरवाह अफसरों की सांठगांठ श्रमिकों की जान पर भारी पड़ रही है।
अवैध खनन और मौत का गठजोड़
गोंडा पहाड़, गाटा संख्या 1078 में चल रहे पत्थर के अवैध खनन में न तो सुरक्षा मानकों का पालन हो रहा है और न ही श्रमिकों को उचित सुरक्षा किट मुहैया कराई जा रही है। इन खदानों में न बेंचिंग की जा रही है और न ही समयानुसार ब्लास्टिंग। इसके परिणामस्वरूप 23 अप्रैल 2025 को एक बड़ी दुर्घटना सामने आई, जिसमें तीन श्रमिक गंभीर रूप से घायल हो गए और मशीनें मलबे में दब गईं।
जिम्मेदार मौन, माफिया सक्रिय
हादसे की सूचना पर भले ही खनिज अधिकारी और थाना प्रभारी मौके पर पहुंचे, लेकिन अब तक खनन माफियाओं के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। जिस खदान में यह हादसा हुआ, वह महेश प्रसाद जायसवाल के नाम पर है—एक ऐसा नाम जो अब खनन जगत का बेताज बादशाह बन चुका है। एक समय गुमटी चलाने वाला यह व्यक्ति आज करोड़ों की संपत्ति का मालिक है, और यह सब संभव हुआ है खनिज विभाग की मिलीभगत से।
खनिज विभाग की भूमिका सवालों के घेरे में
सूत्रों की मानें तो खनिज अधिकारी सुधाकर सिंह और इंस्पेक्टर मंटू सिंह के सहयोगी नरेंद्र सिंह की भूमिका अत्यंत संदिग्ध है, जो माफियाओं से मोटी रकम लेकर अवैध खनन को संरक्षण प्रदान करता है। अफसरों के वाहन और रहन-सहन उनके भ्रष्ट आचरण की बानगी पेश करते हैं।
“चलो गांव की ओर” अभियान का हस्तक्षेप
“जीत आपकी चलो गांव की ओर” जागरूकता अभियान के संस्थापक संजय सिंह राणा ने घटनास्थल का दौरा कर स्थिति का जायज़ा लिया। उन्होंने पाया कि खदानों में मानकों की खुलेआम अवहेलना की जा रही है—जेसीबी व पुकलैंड मशीनों से गहरी खुदाई, अनियमित समय पर ब्लास्टिंग और सुरक्षा के नाम पर शून्य व्यवस्था।
खन सुरक्षा निदेशालय की निष्क्रियता
वाराणसी स्थित खान सुरक्षा निदेशक का दायित्व होने के बावजूद, अधिकारी मौके पर कम ही आते हैं और जब आते हैं तो कथित तौर पर लग्ज़री होटलों में रुककर केवल औपचारिकता निभाकर लौट जाते हैं। यह निष्क्रियता ही भरतकूप में खनिज माफियाओं के बोलबाले का मुख्य कारण बन चुकी है।
क्या प्रशासन जागेगा?
यह अब देखना शेष है कि जिला प्रशासन कब कार्रवाई करेगा। क्या खनन माफियाओं की मनमानी और अधिकारियों की मिलीभगत पर अंकुश लगेगा? या फिर श्रमिक यूं ही हादसों की भेंट चढ़ते रहेंगे?