✒ संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट। कभी बीहड़ों और जंगलों में दहशत फैलाने वाले दस्यु अब इतिहास बन चुके हैं, लेकिन उनके संरक्षणदाताओं का प्रभाव अब शहरों और कस्बों में साफ नजर आने लगा है। जहां पहले बंदूक के बल पर दहशत का साम्राज्य चलता था, वहीं अब उसी दहशत के दम पर जुटाई गई अवैध संपत्तियों से दबंग भू-माफियाओं का साम्राज्य खड़ा हो चुका है।
दरअसल, बुन्देलखण्ड के सबसे पिछड़े जनपदों में शुमार चित्रकूट में कभी दस्युओं का इतना बोलबाला था कि सांसद, विधायक से लेकर ग्राम प्रधान तक दस्यु सरगनाओं के इशारे पर चुने जाते थे। यही नहीं, दस्युओं को संरक्षण देने वालों की मदद से स्थानीय प्रतिनिधि विकास कार्यों के नाम पर सरकारी धन की मोटी वसूली करते थे। नतीजतन, सिर्फ दस्यु ही नहीं, बल्कि उनके सरंक्षक भी मालामाल हो गए।
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अब जब दस्युओं का सफाया हो चुका है, तो वही सरंक्षक शहरों और कस्बों में जमीनों की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं। पहले जो भूमाफिया दस्युओं के दम पर संपत्तियां जुटाया करते थे, अब उन्हीं संपत्तियों के बल पर करोड़ों की जमीनें खरीदकर महंगे दामों पर बेच रहे हैं।
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ऐसा ही एक नाम है—आनन्द सिंह पटेल उर्फ बड़कउना, ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत रामपुर कल्याणगढ़, मानिकपुर तहसील। सूत्रों के अनुसार, बड़कउना और उसके पिता भगत सिंह का अतीत दस्युओं के साथ गहराई से जुड़ा रहा है। बताया जाता है कि दोनों ने दस्यु सरगनाओं खासकर ददुआ, छोटवा पटेल और बलखड़िया गैंग के संरक्षण में रहकर अकूत दौलत जुटाई।
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भगत सिंह, जो ददुआ का दाहिना हाथ कहा जाता था, उसके बेटे बड़कउना पर भी कई संगीन आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। मानिकपुर और मारकुंडी थानों में अपराधों की लंबी फेहरिस्त आज भी मौजूद है। यह भी सामने आया है कि बड़कउना खुद दस्यु गतिविधियों में संलिप्त रहा है और जेल की हवा भी खा चुका है।
बड़कउना द्वारा हल्दी डांडी में दो मंजिला आलीशान भवन बनवाया गया है। वहीं उसकी बेटी की शादी में भी लाखों रुपये खर्च किए गए। इसके अलावा, ग्राम प्रधान रहते हुए विकास कार्यों में जमकर घोटाले किए गए हैं। मुक्तिधाम निर्माण और आरआरसी सेंटर में सरकारी मानकों की धज्जियां उड़ाई गईं और स्थानीय पहाड़ों से अवैध खनिज खनन कर राजस्व को भारी नुकसान पहुंचाया गया।
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इस पूरे मामले में सबसे अहम सवाल यही है कि आखिर कब जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन इन सरंक्षक भू-माफियाओं के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करेगा? इनके द्वारा अर्जित संपत्तियां सार्वजनिक धन और आम जनता के अधिकारों का मखौल उड़ाती हैं।
सूत्रों का यह भी दावा है कि दस्यु सम्राट ददुआ द्वारा फिरौती और रंगदारी से वसूली गई करोड़ों की रकम भगत सिंह के पास जमा होती थी। भगत सिंह की मौत के बाद यह सारा पैसा आनन्द सिंह उर्फ बड़कउना के पास पहुंचा, जो अब उस पूंजी से रसूखदार बन बैठा है।
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सवाल यह है कि क्या ऐसे लोगों के खिलाफ जांच एजेंसियां आंखें खोलेंगी? या फिर दस्यु-राज का यह नया रूप यूं ही प्रशासनिक चुप्पी की छाया में फलता-फूलता रहेगा?
“दस्युओं के संरक्षण के दम पर अर्जित संपत्तियों और उनसे जुड़ी अन्य कड़ियों का खुलासा अगले अंक में…”