संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जनपद से आई खबर ने एक बार फिर समाज में धार्मिक पहचान छुपाकर संबंध बनाने और विवाह करने की प्रवृत्ति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक मुस्लिम युवक द्वारा हिंदू बनकर मंदिर में एक युवती से विवाह करने का प्रयास न केवल धार्मिक मूल्यों के साथ छल है, बल्कि यह सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसे मामलों की आवृत्ति और इनकी पृष्ठभूमि को समझना आज के दौर में अत्यंत आवश्यक हो गया है।
घटनाक्रम की पृष्ठभूमि
यह घटना बेल्हा माई मंदिर परिसर में घटित हुई, जहां युवक ने खुद को हिंदू दर्शाकर एक युवती से विवाह करने का प्रयास किया। मुख्य पुजारी मंगला प्रसाद की सजगता से यह भेद खुल सका और पुलिस की तत्परता से युवक को तत्काल गिरफ्तार कर लिया गया।
यह कोई पहला मामला नहीं है। बीते वर्षों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों से भी ऐसी खबरें आती रही हैं, जहां युवकों ने अपनी असली धार्मिक पहचान छुपाकर युवतियों से नज़दीकियां बनाईं और फिर विवाह या धर्मांतरण के लिए दबाव डाला।
सामाजिक विमर्श और कानूनी पहलू
धार्मिक पहचान छुपाकर संबंध बनाना सिर्फ भावनात्मक धोखा नहीं है, बल्कि भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के अंतर्गत यह एक दंडनीय अपराध है। उत्तर प्रदेश में तो ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021’ भी लागू है, जो छल-फरेब और बलपूर्वक धर्मांतरण को रोकने के लिए बनाया गया है।
लेकिन सिर्फ कानून बना देना ही काफी नहीं है। इस विषय की सामाजिक जटिलताएं और संवेदनशीलताएं इसे और भी गंभीर बनाती हैं। जब कोई व्यक्ति झूठी धार्मिक पहचान अपनाकर किसी महिला के विश्वास से खिलवाड़ करता है, तो वह केवल एक व्यक्ति विशेष को ही नहीं, बल्कि उस पूरे सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करता है, जो आपसी विश्वास और धार्मिक सहिष्णुता पर टिका है।
युवतियों के लिए चेतावनी और आत्मनिर्भरता की आवश्यकता
इस प्रकार की घटनाओं का शिकार ज़्यादातर युवा महिलाएं होती हैं, जो प्रेम या विवाह के रिश्ते में विश्वास करती हैं। यहां जरूरत है युवतियों को जागरूक करने की, ताकि वे संबंध बनाने से पूर्व अपने साथी की पृष्ठभूमि, धर्म और इरादों की पुष्टि कर सकें। सामाजिक संस्थाओं, परिवारों और शिक्षा संस्थानों को भी इसमें भूमिका निभानी होगी, ताकि युवतियां भावनात्मक रूप से मजबूत और कानूनी दृष्टि से सजग बन सकें।
मीडिया की भूमिका और जिम्मेदारी
मीडिया को चाहिए कि ऐसे मामलों की रिपोर्टिंग करते समय वह सनसनी के बजाय तथ्यों, कानून और सामाजिक चेतना पर जोर दे। बिना किसी धर्म विशेष को निशाना बनाए, सटीक जानकारी और विश्लेषण के माध्यम से समाज में संवाद और समाधान के रास्ते खोले जा सकते हैं।
प्रतापगढ़ की यह घटना केवल एक ‘अपराध’ नहीं, बल्कि समाज के सामने आई एक चेतावनी है। यह चेतावनी है उस विश्वासघात की, जो झूठी पहचान के जरिए प्रेम और विवाह जैसे पवित्र रिश्ते को अपवित्र कर देता है।
ऐसे समय में जब समाज में धार्मिक असहिष्णुता और ध्रुवीकरण बढ़ रहा है, हमें ज़रूरत है पारदर्शिता, सच और आपसी सम्मान की। कानून अपना कार्य करेगा, लेकिन समाज को भी अपने स्तर पर जागरूकता और सतर्कता दिखानी होगी।
“पहचान छुपाकर प्रेम नहीं होता — वह धोखे की बुनियाद पर खड़ा भ्रम होता है। और भ्रम की नींव पर न परिवार बनता है, न समाज।”