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भाटपार रानी

विधवा पेंशन के इंतज़ार में बुझती ज़िंदगियां; हकदार महिलाएं सिस्टम की अनदेखी की शिकार

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देवरिया जिले में समाज कल्याण विभाग की लापरवाही से पात्र विधवाएं सालों से पेंशन से वंचित, समाज कल्याण चैरिटेबल ट्रस्ट ने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर उठाई आवाज़

अर्जुन वर्मा की रिपोर्ट

देवरिया, जहां एक ओर सरकार वृद्ध, निराश्रित और विधवा महिलाओं को आर्थिक संबल देने के लिए विधवा पेंशन योजना चला रही है, वहीं ज़मीनी हकीकत इससे कोसों दूर है। देवरिया जिले के तार क्षेत्र की दर्जनों महिलाएं, जो इस योजना की पूरी पात्रता रखती हैं, वर्षों से पेंशन की बाट जोह रही हैं।

समाज कल्याण चैरिटेबल ट्रस्ट, लार ने इस गंभीर मुद्दे को उठाते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजा है, जिसमें इन महिलाओं की दुर्दशा का विस्तार से उल्लेख किया गया है।

पात्र होने के बावजूद नहीं मिली पेंशन

पत्र में बताया गया है कि इनमें से कई विधवाएं ऐसी हैं जिनके पति पंजीकृत श्रमिक थे, और उनकी मृत्यु के बाद आश्रित पत्नियों को विधवा पेंशन मिलनी चाहिए थी। लेकिन न तो पेंशन स्वीकृत हुई, और न ही किसी अधिकारी ने उन्हें समाधान दिया।

ट्रस्ट ने दावा किया है कि कुछ महिलाएं इतनी वृद्ध और बीमार हैं कि अब अंतिम सांसें गिन रही हैं, लेकिन सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता उन्हें पेंशन से भी वंचित किए हुए है।

क्या है विधवा पेंशन योजना?

उत्तर प्रदेश सरकार की यह योजना विधवा महिलाओं को आर्थिक सहारा देने हेतु चलाई जाती है। पात्र महिलाओं को हर महीने ₹500 से ₹1,000 तक की राशि उनके खाते में भेजी जाती है।

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लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि इस योजना का लाभ पंजीकृत पात्र महिलाओं तक पहुंच ही नहीं पा रहा है।

ट्रस्ट की मांगें

1. देवरिया जिले में विधवा पेंशन से वंचित सभी महिलाओं की जांच कर उन्हें तत्काल लाभ दिया जाए।

2. जिन अधिकारियों ने पात्र महिलाओं की अनदेखी की, उनकी ज़िम्मेदारी तय की जाए।

3. ट्रस्ट के माध्यम से प्राप्त महिलाओं की सूची को विशेष अभियान के तहत प्रक्रिया में लाया जाए।

4. ग्राम पंचायत और श्रम विभाग से समन्वय कर पात्रता सत्यापन शीघ्र कराया जाए।

ट्रस्ट का कहना:

ट्रस्ट के प्रतिनिधि मुजतबा लारी ने कहा:

 “यह दुखद है कि जिन महिलाओं ने अपने जीवन के सबसे कठिन समय में पति को खोया, वे अब सरकार की ओर से मिलने वाले सहारे से भी वंचित हैं। यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि मानवता के खिलाफ है।”

सरकारी पोर्टलों पर आंकड़े कुछ और कहते हैं, जबकि ज़मीनी हकीकत कुछ और है। देवरिया की विधवाओं की यह पीड़ा दर्शाती है कि जब योजनाएं सिर्फ काग़ज़ों में हों, तो आमजन की उम्मीदें भी दम तोड़ने लगती हैं। {समाचार के साथ प्रदर्शित चित्र मात्र सांकेतिक इमेज है इसका वास्तविक तस्वीर से कोई मेल नहीं -संपादक}

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