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जिंदगी एक सफर

यहाँ बुढापा आती नही और जवानी जाती नहीं है, सौंदर्य भी नहीं झुकतीं : 90 की उम्र में भी मां बनती हैं औरतें

प्रकृति की गोद में बसी जन्नत: हुंजा समुदाय की अद्भुत जीवनशैली

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अरमान अली की खास रिपोर्ट

जब दुनिया शहरी प्रदूषण, तनावपूर्ण जीवनशैली और कृत्रिम खानपान की भेंट चढ़ती जा रही है, ऐसे में एक समाज ऐसा भी है जहां न केवल सौ वर्ष तक जीना सामान्य बात है, बल्कि साठ की उम्र में भी स्त्रियाँ युवावस्था का तेज और सौंदर्य संजोए रखती हैं। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि पाकिस्तान की उत्तरी सीमा पर स्थित हुंजा घाटी का यथार्थ है — एक ऐसा जीवन जहां प्रकृति और मानव का सहजीवन अब भी जीवित है।

बुढापा आती नही, जवानी जाती नहीं

जहां उम्र थकती नहीं, सौंदर्य झुकता नहीं

हुंजा समुदाय, जिसे बुरुशो के नाम से भी जाना जाता है, गिलगित-बाल्टिस्तान की पहाड़ियों में बसा एक ऐसा आदिवासी समाज है, जिसकी जीवनशैली आज की दुनिया के लिए प्रेरणा बन सकती है। यहां के लोग औसतन 120 साल तक जीते हैं और कुछ वयोवृद्धों की आयु तो 150 वर्ष तक भी दर्ज की गई है। सबसे चौंकाने वाली बात यह कि यहां की महिलाएं 90 वर्ष की उम्र में भी गर्भवती हो जाती हैं, वह भी बिना आधुनिक चिकित्सा सहायता के।

सौंदर्य का ठिकाना, हुंजा की महिलाएं

हुंजा की स्त्रियाँ सिर्फ दीर्घायु ही नहीं, बल्कि अलौकिक सौंदर्य की भी प्रतीक मानी जाती हैं। गाढ़ी आंखें, दमकती त्वचा, घने और काले बाल — सब कुछ इतना स्वाभाविक और संतुलित कि देख कर लगता है जैसे समय ने इन पर असर डालना ही छोड़ दिया हो। उम्र चाहे साठ हो या अस्सी, चेहरा 25-30 वर्ष की युवती जैसा दमकता हुआ।

धरती के स्वर्ग की ये हूरों से कम नहीं

प्राकृतिक खानपान और सात्विक जीवनशैली

हुंजा समुदाय के लोग जैविक और शुद्ध आहार लेते हैं। ताजे फल, कच्ची सब्जियां, खुबानी, मेवे, गेहूं की रोटी, और ताजे झरनों का पानी इनकी दिनचर्या का हिस्सा हैं। वे ‘अप्रकाशित’ नमक का प्रयोग करते हैं और दूध, घी जैसे उत्पाद सीमित मात्रा में लेते हैं। उपवास यहां केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि स्वास्थ्य की देखभाल का अहम हिस्सा है।

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रोग से नहीं, रोगी से नाता तोड़ते हैं

चिकित्सा के नाम पर यहां के लोग अस्पतालों में कम ही जाते हैं। शुद्ध हवा, स्वच्छ पानी और फिजिकल एक्टिविटी उन्हें अधिकांश रोगों से दूर रखती है। यह समाज शारीरिक श्रम को बोझ नहीं, वरदान मानता है। सुबह चार बजे उठकर दिनचर्या आरंभ करना, रोजाना मीलों पैदल चलना या साइकिल चलाना — यही उनका व्यायाम है, यही उनका योग।

शिक्षा, संस्कृति और सौहार्द का संगम

हुंजा समाज शिक्षित भी है और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भी। पाकिस्तान के अन्य क्षेत्रों की तुलना में यहां की साक्षरता दर अधिक है। यहां के लोग इस्लाम के सूफी मत को मानते हैं, जो सहिष्णुता और आध्यात्मिकता की मिसाल है। उनकी भाषा ‘बुरुशास्की’ है, जो विश्व की सबसे पुरानी और अनोखी भाषाओं में गिनी जाती है।

हुंजा घाटी: प्रकृति का चमत्कार

हुंजा घाटी को देखना जैसे किसी चित्रकार की कल्पना में प्रवेश करना हो — चारों ओर बर्फीली चोटियाँ, झरते झरने, साफ-सुथरी गलियाँ और एक अलौकिक शांति। यहां की आबादी लगभग 85 हजार के करीब है, लेकिन जीवन की गुणवत्ता किसी करोड़ों की महानगरी से बेहतर है।

किताबों में दर्ज, दुनिया की जुबान पर

द हेल्दी हुंजाज और द लॉस्ट किंगडम ऑफ द हिमालयाज जैसी किताबों ने इस समुदाय की विलक्षण जीवनशैली को दुनिया भर में पहुंचाया है। अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं और यात्रियों ने भी इस घाटी की सराहना की है और इसे ‘मानव दीर्घायु का रहस्य’ करार दिया है।

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आज जब पूरी दुनिया स्वास्थ्य संकट, मानसिक तनाव और असमय मृत्यु की चिंता में घिरी है, हुंजा घाटी एक जीवंत उत्तर की तरह हमारे सामने खड़ी है। वह उत्तर जो कहता है — “प्रकृति के साथ रहो, उसकी गति में जियो, और फिर देखो उम्र कैसे रुक जाती है, सौंदर्य कैसे स्थायी हो जाता है।”

यदि जीवन में कभी अवसर मिले, तो हुंजा घाटी की यात्रा अवश्य कीजिए। यह सिर्फ एक पर्यटक स्थल नहीं, बल्कि जीवन की असली परिभाषा को समझने की भूमि है। एक ऐसा अनुभव, जो न केवल आंखों को आनंदित करता है, बल्कि आत्मा को भी छू जाता है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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