जब भी मैं आंखें बंद करती हूं, तो एक नन्ही-सी लड़की की छवि उभरती है—श्रीगंगानगर की गलियों में खुली आंखों से सपने देखती हुई। वो लड़की मैं थी—नीरू। सपने, जो उस समय की कल्पना से कहीं बड़े थे। सपने, जहां एक महिला केवल किसी की मां, बेटी या पत्नी नहीं, बल्कि अपनी पहचान के साथ खड़ी हो सके। आज जब मैं अखाधना ग्राम पंचायत में, अपने ससुराल के आंगन में खड़ी होकर यह लिख रही हूं, तो लगता है कि वह सपना अब एक सच्चाई बनता जा रहा है।
प्रस्तुति ➡️वल्लभ भाई लखेश्री
मेरी जड़ों में जो शक्ति थी…
… मेरे जीवन की नींव मेरे परिवार ने रखी—एक ऐसी नींव जो केवल ईंट-पत्थर की नहीं, विश्वास और प्रेम की थी। मेरी सासू मां, अखाधना की सरपंच, मेरे लिए एक प्रेरणा नहीं, एक प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। उनका आत्मबल, उनका समर्पण और गांव के लिए उनका दृष्टिकोण मुझे हर सुबह उठकर कुछ नया करने का हौसला देता है।

मेरे ससुर, एक सेवानिवृत्त शिक्षक, मेरे लिए ज्ञान का वह दीपक हैं, जिसकी रोशनी आज भी हर कठिनाई में रास्ता दिखाती है। उनके अनुभवों ने सिखाया कि शिक्षा केवल किताबों में नहीं, बल्कि सोच में होती है।
और फिर, मेरा सबसे बड़ा संबल…
श्री उमेश इणखिया—मेरे पति, मेरे हमसफ़र, मेरे सबसे बड़े शुभचिंतक। उन्होंने कभी मेरे सपनों को छोटा करने की कोशिश नहीं की। वे चाहते तो कह सकते थे—“ये सब बाद में,” लेकिन उन्होंने कहा, “तुम्हारा सपना भी हमारा सपना है।” जब भी मैं टूटी, उन्होंने मुझे फिर से जोड़ा। जब मैं डरी, उन्होंने मुझे थामा। उनके विश्वास ने मुझे उड़ना सिखाया।
जीवन सार्थक: जब सपना सेवा बन गया
2018 में मैंने जीवन सार्थक विकास सेवा संस्थान की शुरुआत की। यह किसी योजना का हिस्सा नहीं था, बल्कि दिल की एक पुकार थी। मैं चाहती थी कि गांव की हर महिला वह शक्ति महसूस करे, जो मैंने महसूस की। हमने उन्हें हुनर दिए, भाषा दी, मंच दिया।
मैंने वो चमकती आंखें देखीं, जब किसी महिला ने पहली बार अपनी कमाई से अपने बच्चे के लिए किताब खरीदी। मैंने वो संकोच टूटा देखा, जब किसी युवती ने मंच पर खड़े होकर अपने अधिकारों की बात की। मेरे लिए यह केवल काम नहीं, यह एक मिशन है—और हर मुस्कुराता चेहरा उसका प्रमाण।
परिवर्तन केवल शब्द नहीं, अनुभव है
सशक्तीकरण सिर्फ आंकड़े नहीं, वह कहानी है उस महिला की, जो पति की हिंसा सहने के बाद आखिरकार “नहीं” कह पाई। वह कहानी है उस लड़की की, जिसने भाइयों की तरह सपने देखे और मेहनत से उन्हें पूरा किया। और ये कहानियां हर गांव में हैं—बस उन्हें आवाज़ देने की जरूरत है।
पुरुषों की भागीदारी: एक अनकही ज़रूरत
जब हम महिलाओं के सशक्तीकरण की बात करते हैं, तो पुरुषों की भूमिका अक्सर छूट जाती है। लेकिन मेरे जीवन में, मेरे पति, मेरे ससुर—उन्होंने यह साबित किया है कि जब पुरुष साथ होते हैं, तो हर स्त्री और भी ऊंचा उड़ सकती है। समाज को बदलना है तो संवाद जरूरी है—और वह तब तक नहीं होगा, जब तक पुरुष खुद को इस बदलाव का हिस्सा नहीं मानते।
राजनीति: जहां आवाज नीतियों में बदलती है
मेरी सास का सरपंच बनना मेरे लिए सिर्फ एक घटना नहीं, एक संदेश था—कि एक ग्रामीण महिला भी नेतृत्व कर सकती है। लेकिन आज भी, बहुत-सी महिलाएं केवल नाम की सरपंच होती हैं। उन्हें असली निर्णयों से दूर रखा जाता है। हमें यह बदलना होगा। हमें उन्हें तैयार करना होगा, समझाना होगा कि वे केवल प्रतिनिधि नहीं, नीति निर्माता हैं।
अंत में, एक दिल से निकला धन्यवाद
मेरा परिवार, मेरी आत्मा का हिस्सा है। मेरी सास, ससुर और पति ने मुझे केवल रास्ता नहीं दिखाया, बल्कि साथ भी चला। मैं चाहती हूं कि मेरा गांव, मेरा समाज, मेरी बेटियों और बहनों को यह संदेश दे—कि सपने देखना उनका अधिकार है, और उन्हें पूरा करना उनकी ताकत।
मेरी हर बहन के नाम
तुममें वह आग है, जो समाज की बुनियाद बदल सकती है। मत सोचो कि तुम अकेली हो। मत मानो कि तुम कमज़ोर हो। उठो, बोलो, आगे बढ़ो। तुम्हारा सपना भी इस देश का सपना है।
आइए, हम सब मिलकर ऐसा समाज बनाएं, जहां हर स्त्री को न केवल सपने देखने का हक हो, बल्कि उन्हें जीने का भी।