आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ : मेंहदी हसन की मिट्टी का संस्मरण आज भी मीठी यादों को ताजा कर देता है

354 पाठकों ने अब तक पढा

अनिल अनूप

2 अक्टूबर 1986, सफर की शुरुआत जयपुर से हुई। मेरे भीतर एक अजीब-सी उत्तेजना थी—मैं उस जगह की ओर जा रहा था, जिसने दुनिया को शास्त्रीय और ग़ज़ल गायकी के बेताज बादशाह, मेंहदी हसन, जैसा नगीना दिया। यह सफर न केवल संगीत के एक महान स्तंभ को समझने का था, बल्कि उस मिट्टी से जुड़ने का भी था, जिसने इस कलाकार को आकार दिया।

जैसे ही जयपुर की हलचल पीछे छूटी, रास्ते में प्राकृतिक सौंदर्य ने मुझे अपनी ओर खींच लिया। चारों ओर फैले अरावली पर्वत शृंखलाओं के घुमावदार रास्ते, उनके बीच से झांकती सूरज की किरणें, और पहाड़ों की तलहटी में बसे छोटे-छोटे गाँव—यह सब किसी स्वप्नलोक जैसा लग रहा था।

रास्ते में आते-जाते गाँवों में सादगी का जीवन साफ़ झलक रहा था। महिलाएँ खेतों में काम कर रही थीं, पुरुष अपने बैलगाड़ियों को हांकते हुए दिख रहे थे। कहीं-कहीं बच्चे स्कूल जाते नजर आए, तो कहीं पेड़ों की छाँव तले बुजुर्ग बीड़ी के कश लगाते हुए बैठे थे। इन दृश्यों में एक विशेष प्रकार की ठहराव भरी शांति थी।

जैसे-जैसे लूणा गाँव नजदीक आता गया, मेरा दिल और भी तेज धड़कने लगा। इस गाँव ने एक ऐसा सितारा जन्मा, जिसकी गूँज न केवल राजस्थान, बल्कि पाकिस्तान और पूरी दुनिया में सुनाई दी। मेंहदी हसन का नाम गूँजते ही हर संगीत प्रेमी के मन में उनके गाए ग़ज़लों के अमर सुर तैरने लगते हैं—”रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ…”

हम गांव की गलियों से गुजरे तो छान-छप्परों से धुंआ उठ रहा था। लगा हवा में लहराते दरख्त मेहदी हसन की गाई गज़ल गुनगुना उठे हों-“ये धुंआ सा कहां से उठता है, देख तो दिल की जां से उठता है…’। यह झुंझूनूं जिले का लूणा गांव है। मेहदी हसन का गांव। यह वो रेतीली धरती है जहां मेहदी हसन कभी कबड्‌डी खेलते थे, अखाड़े में कुश्ती करते थे और जहां उनके संगीत के सुर परवान चढ़े। देश विभाजन के बाद लगभग 20 वर्ष की उम्र में वे लूणा गांव से उखड़कर पाकिस्तान चले गए थे, लेकिन यहां की यादें जीवन भर उनका पीछा करती रहीं। गांव की हवा में आज भी मेहदी हसन की गायकी की खुशबू तैरती है।

गाँव में दाखिल होते ही, वहाँ की सरलता ने मेरा मन मोह लिया। लूणा गाँव का हर कोना जैसे एक कहानी बयां कर रहा था। मैंने सबसे पहले उन लोगों से बात की जो मेंहदी हसन के परिवार को जानते थे। एक बुजुर्ग ने बड़े गर्व से बताया, “भले ही मेंहदी हसन पाकिस्तान चले गए, पर उनका दिल हमेशा लूणा में ही था। वह जब भी गाते थे, उनकी आवाज़ में यहाँ की मिट्टी की खुशबू साफ झलकती थी।”

गाँव के छोटे-से चौपाल में कुछ लोग बैठे हुए थे। वहाँ चर्चा छिड़ गई—मेंहदी हसन के संघर्ष की, उनके संगीत के प्रति समर्पण की और उनके अमर योगदान की। मुझे बताया गया कि लूणा की हवाओं और यहाँ के पहाड़ों ने ही मेंहदी हसन की आवाज़ को वह अनोखा जादू दिया।

लूणा की गलियों में चलते हुए मैंने महसूस किया कि इस गाँव में एक अलग तरह की ऊर्जा है। यह केवल एक संगीतकार की जन्मस्थली नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह है जहाँ संघर्ष, सपने, और कला एक साथ जुड़ते हैं। मेंहदी हसन की कला और उनकी आवाज़ की जड़ें यहीं हैं—इस मिट्टी, इन पहाड़ों, और यहाँ की आत्मीयता में।

इस सफर ने मुझे न केवल संगीत को गहराई से समझने का अवसर दिया, बल्कि यह भी सिखाया कि कोई भी बड़ा कलाकार अपने जीवन की शुरुआत कितनी सादगी और संघर्ष से करता है। लूणा का यह अनुभव हमेशा मेरे दिल में रहेगा—जैसे यहाँ की मिट्टी में मेंहदी हसन की आत्मा हमेशा के लिए बसी हुई है।

जब मैं लूणा गाँव की ओर बढ़ रहा था, रास्ते में अरावली पर्वत शृंखला के सुंदर नज़ारे दिल को एक अजीब-सी शांति और उत्साह से भर रहे थे। पहाड़ियों के बीच से झांकती सूरज की किरणें जैसे स्वर्णिम कालीन बिछा रही थीं। हवा में एक अनकही मिठास थी—जैसे यह प्रकृति भी संगीत के सुरों से भरी हो।

गाँव के प्रवेश द्वार पर ही एक पुराने बड़ के पेड़ के नीचे कुछ बच्चे खेलते मिले। उनकी खिलखिलाहट और उत्सुक निगाहें जैसे किसी नाटक के किरदारों का स्वागत कर रही थीं। मैंने वहाँ के बुजुर्गों से पूछा, “यह लूणा गाँव ही है, जहाँ मेंहदी हसन का जन्म हुआ था?” जवाब में उनकी आँखें गर्व से चमक उठीं। एक बुजुर्ग ने कहा, “हाँ, यही वह जगह है। यह मिट्टी और ये हवाएँ उनकी आवाज़ की मिठास में घुली हुई हैं।”

गाँव की गलियों में चलते हुए मैंने देखा कि वहाँ की दीवारों पर लोककला के भित्ति चित्र बने हुए थे। उनमें से एक चित्र में राजस्थानी संगीत वाद्य यंत्र सारंगी के साथ बैठे एक व्यक्ति की आकृति थी। किसी ने बताया कि यह गाँव के कलाकारों द्वारा बनाया गया श्रद्धांजलि चित्र है, जो मेंहदी हसन और उनके संगीत को समर्पित है।

गाँव के कुएँ के पास एक महिला से बातचीत हुई। उन्होंने बताया, “कहते हैं कि मेंहदी साहब को बचपन में अपने पिता के साथ इस कुएँ से पानी लाने में मदद करनी पड़ती थी। वहीं बैठकर वे अक्सर अपने पिता के साथ रियाज़ भी किया करते थे।” यह जानकर मैंने महसूस किया कि यह साधारण सा कुआँ उनकी साधना का एक मौन साक्षी रहा होगा।

इसके बाद मैंने वह पुराना घर देखा, जहाँ मेंहदी हसन का जन्म हुआ था। यह अब खंडहर में बदल चुका है, लेकिन उसकी दीवारें मानो अतीत की कहानियाँ बयां कर रही थीं। स्थानीय लोगों ने बताया कि यह घर कभी संगीत की गूँज से भर जाता था। उनके पिता, जो ध्रुपद और ख्याल गायकी के उस्ताद थे, अक्सर अपने बच्चों को संगीत सिखाते थे।

गाँव के पास एक ऊँचे टीले पर खड़े होकर मैं चारों ओर देख रहा था। नीचे फैले खेत, दूर बहती नदियाँ, और आकाश में उड़ते पक्षी—यह सब जैसे किसी राग का दृश्य रूप था। वहाँ खड़े एक बुजुर्ग ने बताया, “जब मेंहदी हसन साहब पहली बार पाकिस्तान से लौटे थे, तो उन्होंने कहा था कि यह गाँव उनकी प्रेरणा का स्रोत है।”

लूणा की एक और अनोखी बात यह थी कि वहाँ के लोगों में आज भी संगीत के प्रति गहरी रुचि है। गाँव में कुछ बच्चे ग़ज़ल गाते हुए मिले। उनमें से एक ने बहुत गर्व से कहा, “हम भी मेंहदी साहब की तरह बनना चाहते हैं।” यह देखकर लगा कि उनकी विरासत केवल उनकी कला तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नई पीढ़ी को प्रेरित कर रही है।

गाँव में एक चौपाल के पास बैठकर मैंने एक चाय की दुकान पर चाय पी। वहाँ पर मेंहदी हसन की गाई हुई ग़ज़लें बज रही थीं। दुकानदार ने मुस्कुराते हुए कहा, “यहाँ हर घर में उनकी ग़ज़लें सुनाई देती हैं। वे हमारे गाँव के गौरव हैं।”

लूणा का यह सफर मेरे लिए न केवल एक सांस्कृतिक यात्रा थी, बल्कि यह आत्मा को झंकृत कर देने वाला अनुभव था। यहाँ की मिट्टी, हवा, और लोग, सब मेंहदी हसन के जीवन और उनकी कला के अनकहे पहलुओं को सामने लाते हैं। यह महसूस हुआ कि यह छोटा-सा गाँव न केवल एक महान कलाकार की जन्मस्थली है, बल्कि यह खुद में एक जीवंत प्रेरणा है।

samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

1 thought on “आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ : मेंहदी हसन की मिट्टी का संस्मरण आज भी मीठी यादों को ताजा कर देता है”

  1. मेहंदी हसन का मुल्क की मिट्टी के साथ जो रिश्ता अपने संगीत के माध्यम से खास और आम तक पहुंचाया वही साधना हसन के व्यक्तित्व को अमर कर गई ।दूसरी तरफ साहित्य साधक और कलम धर्मियों के लिए यहा नायक बन गए।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top