चित्रकूट के मानिकपुर-धारकुंडी मार्ग पर बरदहा नदी में बना नया पुल पहली ही बारिश में बह गया। करीब ₹8 करोड़ की लागत से बना यह पुल घटिया निर्माण और प्रशासनिक अनदेखी की भेंट चढ़ गया। जानिए पूरी सच्चाई इस रिपोर्ट में।
संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट। बरदहा नदी पर बना नवनिर्मित पुल पहली बारिश भी नहीं झेल पाया। यह हादसा केवल एक निर्माण विफलता नहीं, बल्कि शासन-प्रशासन और ठेकेदारों की मिलीभगत से उपजा वह घातक उदाहरण है, जिसने जनता के विश्वास, सरकारी तंत्र की साख और करोड़ों रुपये के बजट — तीनों को डुबो दिया है।
धार्मिक पर्यटन मार्ग के रूप में पहचाना जाने वाला मानिकपुर-धारकुंडी संपर्क मार्ग चित्रकूट जिले की जीवनरेखा माना जाता है। यह मार्ग धारकुंडी आश्रम जैसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थल को उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से जोड़ता है। बरसों से यहां के लोगों की मांग थी कि बरदहा नदी पर एक मजबूत पुल बने, ताकि मानसून में नदी के जलस्तर के कारण क्षेत्र का संपर्क पूरी तरह बाधित न हो।
8 करोड़ की लागत, पहली बारिश में ध्वस्त
प्रदेश सरकार ने जनता की इस मांग को मानते हुए पुल निर्माण हेतु 120.68 मीटर लंबे स्ट्रक्चर के लिए ₹794.09 लाख की स्वीकृति प्रदान की। निर्माण कार्य की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम लिमिटेड, बांदा को सौंपी गई। कागजों पर सबकुछ दुरुस्त दिखता रहा—ठेकेदार नियुक्त हुए, शिलान्यास हुआ, नेताओं की उपस्थिति में योजनाएं घोषित की गईं।
शिलान्यास समारोह में लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद, सांसद आर.के. सिंह पटेल और स्थानीय विधायक अविनाश चंद्र द्विवेदी सहित तमाम जिम्मेदार अधिकारी मौजूद थे। लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही थी।
मिट्टी की नींव पर करोड़ों का पुल!
स्थानीय लोगों के अनुसार पुल निर्माण कार्य में भारी अनियमितताएं बरती गईं। जल्दबाज़ी में मिट्टी भराव कर पुल को जोड़ दिया गया, जबकि तकनीकी रूप से ऐसी परियोजनाओं में भराव को समय देकर जमने की प्रक्रिया अनिवार्य होती है। ऊपर से की गई पिचिंग भी खानापूर्ति मात्र थी। परिणामस्वरूप पहली ही बारिश में मिट्टी बह गई और पुल से जुड़ी सड़क ध्वस्त हो गई।
‘जैसे मोरबी की याद ताज़ा हो गई’ — लोग बोले
पुल से गुजरते समय बच गए कुछ स्थानीय निवासियों ने बताया कि “अगर हम कुछ मिनट पहले वहां होते, तो एक भीषण हादसा हो सकता था। ये ठीक वैसा ही था जैसा मोरबी पुल हादसे में हुआ था।”
धारकुंडी आश्रम जाने वाले श्रद्धालु भी दहशत में हैं, क्योंकि यह मार्ग उनकी धार्मिक यात्राओं का मुख्य ज़रिया है। स्थानीय ग्राम प्रधानों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक में रोष व्याप्त है।
नेताओं की चुप्पी पर भी सवाल
जिस पुल के उद्घाटन पर बड़े-बड़े नेता मौजूद थे, उस पुल के गिर जाने के बाद किसी की प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। न ठेकेदार को जवाबदेह ठहराया गया है, न निर्माण एजेंसी से कोई सवाल पूछा गया है।
क्या यह चुप्पी अनदेखी है, या मिलीभगत?
अब सवाल उठता है — जांच कब? कार्रवाई कौन करेगा?
स्थानीय जनता की मांग है कि इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय तकनीकी जांच कराई जाए। दोषी ठेकेदारों और अधिकारियों पर आपराधिक मामला दर्ज कर उन्हें दंडित किया जाए। वहीं, निर्माण कार्य की गुणवत्ता को लेकर पूरे ज़िले में शक का माहौल बन गया है। लोगों का कहना है कि अगर इसी तरह अन्य विकास कार्य हुए हैं, तो भविष्य में और भी बड़ी त्रासदियां सामने आ सकती हैं।
बरदहा नदी पर बना यह पुल सिर्फ कंक्रीट और लोहा नहीं था, यह जनता की उम्मीदों, विश्वास और जीवन की एक ज़रूरत था। यह हादसा यह स्पष्ट करता है कि जब योजनाएं नेताओं की फोटो खिंचवाने का माध्यम बन जाएं और ठेकेदारी भ्रष्टाचार की गठजोड़ से संचालित हो, तो नतीजे इसी तरह सामने आते हैं।