उत्तर प्रदेश में बिजली दरों में छह वर्षों बाद बड़ी बढ़ोतरी की संभावना, कंपनियों ने 30% तक बढ़ोतरी का प्रस्ताव विद्युत नियामक आयोग में पेश किया। जानें पूरी खबर और उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया।
चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के लोगों को लगभग छह साल बाद बिजली दरों में भारी बढ़ोतरी का सामना करना पड़ सकता है। बिजली कंपनियों ने मौजूदा खर्च और कम राजस्व को ध्यान में रखते हुए बिजली दरों में 30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी का प्रस्ताव विद्युत नियामक आयोग में प्रस्तुत किया है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि कंपनियों ने सोमवार को आयोग में नया एआरआर (वार्षिक राजस्व आवश्यकता) दाखिल किया, जिसमें उन्होंने 19,600 करोड़ रुपये के घाटे का अनुमान लगाया है। इसके आधार पर अब आयोग बिजली दर निर्धारण की प्रक्रिया शुरू करेगा।
घाटे की मुख्य वजह: वसूली में गिरावट और खर्च में वृद्धि
पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 के मुकाबले चालू वर्ष 2025-26 में बिजली कंपनियों ने पहले 1,13,923 करोड़ रुपये का एआरआर दाखिल किया था, जिसमें 9,206 करोड़ रुपये का घाटा दर्शाया गया था। लेकिन कंपनियों ने अब इसे संशोधित कर 19,600 करोड़ रुपये का घाटा बताया है।
दरअसल, कंपनियों का कहना है कि बिजली बिलों की शत-प्रतिशत वसूली संभव नहीं हो पाती है। उदाहरण के तौर पर, पिछले साल केवल 88% वसूली ही हो सकी। इस असंतुलन को देखते हुए कंपनियों ने अब वास्तविक आय-व्यय के आधार पर नया लेखा-जोखा पेश किया है।
दरें छह सालों से स्थिर, अब बदलाव तय?
गौरतलब है कि पिछली बार बिजली दरों में बढ़ोतरी वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद हुई थी, जब औसतन 11.69 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी। उसके बाद से अब तक पांच वर्षों तक दरें स्थिर बनी रहीं।
पिछले वर्ष भी कंपनियों ने 11,203 करोड़ रुपये का राजस्व गैप दिखाया था, लेकिन आयोग ने उपभोक्ताओं के हित में 1944.72 करोड़ रुपये का सरप्लस निकालते हुए दरें नहीं बढ़ाईं।
उपभोक्ता परिषद ने जताई आपत्ति, कहा- “गैरकानूनी है प्रस्ताव”
इस प्रस्ताव पर उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने आयोग में लोक महत्व आपत्ति दाखिल करते हुए कहा कि कलेक्शन एफिशिएंसी के आधार पर गैप निकालना पूरी तरह असंवैधानिक है और यह मल्टी ईयर टैरिफ रेगुलेशन 2025 के भी खिलाफ है।
उन्होंने यह भी मांग की कि बिजली निजीकरण से जुड़ी सभी विधिक आपत्तियां सरकार को भेजी जाएं और राज्य सलाहकार समिति की बैठक बुलाई जाए, ताकि विषय की पारदर्शिता बनी रहे।
आम उपभोक्ता पर बढ़ेगा बोझ
यदि यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है तो राज्य के करोड़ों उपभोक्ताओं को बिजली बिल में भारी बढ़ोतरी झेलनी पड़ सकती है। अब यह देखना अहम होगा कि नियामक आयोग उपभोक्ताओं के हित और कंपनियों की मांग के बीच क्या संतुलन बनाता है।