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23 February 2025 2:30 am

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बिजली चोरी का भार उपभोक्ताओं पर, बढ़ सकती हैं बिजली की दर, पढिए क्या है विभाग की योजना

148 पाठकों ने अब तक पढा

चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में बिजली उपभोक्ताओं को जल्द ही बिजली की बढ़ी हुई कीमतों का सामना करना पड़ सकता है। उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (UPERC) द्वारा भेजे गए एक नए प्रस्ताव के अनुसार, राज्य में बिजली चोरी, वाणिज्यिक नुकसान, और अन्य घाटों का बोझ अब उपभोक्ताओं के सिर पर डाला जाएगा। इसका मतलब यह है कि उपभोक्ताओं को बिजली के लिए अधिक दरें चुकानी होंगी।

प्रस्ताव का विरोध

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने चेतावनी दी है कि यदि यह प्रस्ताव लागू होता है, तो बिजली की दरों में भारी वृद्धि होगी, जिससे निजी बिजली कंपनियों को लाभ पहुंचेगा और आम उपभोक्ताओं को नुकसान होगा। परिषद ने आरोप लगाया है कि यह नया प्रस्ताव उपभोक्ताओं के हितों को नजरअंदाज करता है और निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए तैयार किया गया है।

नया ड्राफ्ट और समयसीमा

उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने इस प्रस्ताव के लिए एक 56-पृष्ठ का ड्राफ्ट तैयार किया है। यह ड्राफ्ट मल्टी ईयर वितरण टैरिफ रेगुलेशन की समाप्ति के बाद के लिए है। आयोग ने इस पर 15 फरवरी तक आपत्ति और सुझाव मांगे हैं। इसके बाद 19 फरवरी को इन आपत्तियों और सुझावों पर सुनवाई होगी, जिसके बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, नए प्रस्ताव में बिजली चोरी और वाणिज्यिक नुकसान का भार उपभोक्ताओं पर डाला जाएगा। परिषद का कहना है कि यह पूरी तरह अनुचित है क्योंकि बिजली चोरी की जिम्मेदारी उपभोक्ताओं की नहीं होनी चाहिए। इसके लिए पहले से ही विजिलेंस विंग, बिजली थाना, और अन्य व्यवस्थाएं मौजूद हैं, जो इस समस्या का समाधान कर सकती हैं।

पुराने रेगुलेशन को बनाए रखने की मांग

राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने मांग की है कि पुराने रेगुलेशन को ही जारी रखा जाए। पुराने कानून में स्पष्ट प्रावधान था कि बिजली चोरी और अन्य नुकसान का बोझ उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जाएगा। परिषद का मानना है कि पुराने नियम उपभोक्ताओं के हितों की बेहतर तरीके से रक्षा करते हैं और नई व्यवस्था से बचा जाना चाहिए।

इस नए प्रस्ताव के कारण उपभोक्ताओं में चिंता बढ़ रही है। यदि यह प्रस्ताव लागू होता है, तो बिजली की दरें काफी बढ़ सकती हैं, जिससे आम जनता पर आर्थिक बोझ पड़ेगा। परिषद और उपभोक्ता संगठनों का कहना है कि सरकार को उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए पुराने नियमों को ही लागू रखना चाहिए।

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