google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
खास खबर

जब मिट्टी रोई और सरकार जागी — एक अधूरी कोशिश ; परंपरा की राख में चिंगारी तलाशने की…

मिट्टी के बर्तनों से बनती थी सभ्यता, अब बची है बस आख़िरी उम्मीद!

IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
IMG_COM_202505222101103700

देवरिया में मिट्टी शिल्पियों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु उत्तर प्रदेश सरकार मुफ्त इलेक्ट्रिक चाक योजना ला रही है। जानिए इस पारंपरिक उद्योग का अतीत, वर्तमान और भविष्य इस रपट में 👇👇

संजय कुमार वर्मा की खास रिपोर्ट

देवरिया, सदियों से मिट्टी का शिल्प भारतीय संस्कृति की आत्मा रहा है—सिंधु घाटी की खुदाइयों से लेकर आज के गाँवों तक, कुम्हार का चाक समय के साथ घूमता रहा, कभी पूजा की थाली में दीप जलाया, तो कभी आँगन में खिलौने रच दिए।

परंतु समय की आँधी में जब मशीनें हावी हुईं, तो यह परंपरा दम तोड़ने लगी; कुम्हार की मेहनत भारी होती गई और बाजार से उसकी पहचान मिट्टी की तरह बहने लगी। आज जब यह उद्योग अस्तित्व के संघर्ष में अंतिम साँसें गिन रहा है, तब उत्तर प्रदेश सरकार की यह योजना—देवरिया के 45 कुम्हारों को मुफ्त इलेक्ट्रिक चाक देने की पहल—एक साँस की तरह आई है, जो भले ही एक सीमित हस्तक्षेप हो, पर संकेत देती है कि यदि नीतियाँ संवेदनशील हों और तकनीक परंपरा के साथ खड़ी हो, तो यह उद्योग फिर चाक की गति से घूम सकता है, और मिट्टी से बना भविष्य फिर से आकार पा सकता है।

मिट्टी से रचा गया अतीत

भारत में मिट्टी के शिल्प का इतिहास पाँच हजार वर्षों से भी अधिक पुराना है। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में मिले टेराकोटा के बर्तन और खिलौने यह दर्शाते हैं कि मिट्टी न केवल रोज़मर्रा की जरूरत थी, बल्कि सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का भी माध्यम थी

👉यह भी पढें 👉मिट्टी से बनेगा भविष्य : कुम्हारों को मुफ्त मिलेंगे इलेक्ट्रिक चाक, बढ़ेगा उत्पादन और आय

हर राज्य, हर भूगोल में इस कला ने स्थानीय स्वरूप अपनाया—खुरजा की ग्लेज़्ड पॉटरी, गोरखपुर के टेराकोटा खिलौने, राजस्थान की मातृ मूर्तियाँ। यह शिल्प केवल रोज़गार नहीं, बल्कि हमारी अस्मिता का प्रतीक था।

वर्तमान की टूटती कड़ियाँ

आज स्थिति यह है कि मिट्टी के शिल्प से जुड़े कारीगर जीवन यापन के संकट से जूझ रहे हैं। पारंपरिक चाक भारी होता है, काम धीमा होता है और मेहनत अधिक। प्लास्टिक और मशीनी उत्पादों ने बाजार को कब्ज़ा लिया है और कुम्हारों को उनके ही गाँवों में अप्रासंगिक बना दिया है। नई पीढ़ी इस शिल्प से दूर जा रही है, क्योंकि मेहनत का मूल्य नहीं और कला की कद्र नहीं। यह केवल एक कला का क्षय नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत की आत्मा के क्षरण की प्रक्रिया है।

सरकारी योजना: एक नई साँस

उत्तर प्रदेश माटीकला बोर्ड की “समन्वित विकास कार्यक्रम योजना” के अंतर्गत देवरिया जिले के पारंपरिक कुम्हारों को मुफ्त में विद्युत चालित चाक दिए जाएंगे। जिला ग्रामोद्योग अधिकारी वीरेंद्र प्रसाद के अनुसार, इस योजना के अंतर्गत 45 कारीगरों को लाभ मिलेगा। इसका उद्देश्य है कि तकनीक के सहारे कारीगरों की उत्पादकता बढ़े और मेहनत घटे।

इस योजना का लाभ उठाने के लिए पात्रता निर्धारित की गई है—आवेदक की आयु 18 से 55 वर्ष के बीच होनी चाहिए, और एक ही परिवार से एक ही व्यक्ति को पात्र माना जाएगा। पूर्व में सरकारी योजना से लाभ प्राप्त कर चुके लोग इस योजना में अयोग्य होंगे।

आवेदन प्रक्रिया और आवश्यक दस्तावेज

इच्छुक कारीगर upmatikalaboard.in पर 27 मई 2025 तक ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। आवेदन के साथ निम्नलिखित दस्तावेज अनिवार्य रूप से अपलोड करने होंगे:

हालिया पासपोर्ट साइज फोटो, आधार कार्ड, राशन कार्ड, शैक्षिक योग्यता प्रमाण पत्र, ग्राम प्रधान द्वारा जारी निवास प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र।

अधिक जानकारी के लिए जिला पंचायत भवन के प्रथम तल पर स्थित जिला ग्रामोद्योग कार्यालय, देवरिया से संपर्क किया जा सकता है।

भविष्य की दिशा

यह योजना भले ही एक जिले तक सीमित हो, पर इसका संदेश व्यापक है—यदि सरकारें पारंपरिक उद्योगों के प्रति संवेदनशील हों और तकनीकी हस्तक्षेप को जमीनी जरूरतों से जोड़ें, तो ग्रामीण भारत की आत्मा को पुनर्जीवित किया जा सकता है। केवल योजना नहीं, प्रशिक्षण, बाज़ार तक पहुँच और नवाचार की ज़रूरत है।

कुम्हार अब फिर सोच रहा है कि उसके चाक पर केवल बर्तन नहीं, भविष्य भी घूम सकता है। मिट्टी के उस बर्तन में आज उम्मीद का दीप जल रहा है।

126 पाठकों ने अब तक पढा
samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close
Close