उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव 2026 से पहले NDA में फूट, अपना दल (एस), सुभासपा और निषाद पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ने का किया ऐलान। भाजपा की रणनीति पर पड़ सकता है असर।
अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में दरार साफ नजर आने लगी है। NDA के तीन प्रमुख सहयोगी दल—अपना दल (एस), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) और निषाद पार्टी—ने इस बार अपने दम पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। इससे भाजपा के लिए आगामी चुनाव में नई राजनीतिक चुनौतियां खड़ी हो गई हैं।
अनुप्रिया पटेल का बड़ा एलान
सबसे पहले, केंद्रीय मंत्री और अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने यह साफ कर दिया कि उनकी पार्टी पंचायत चुनाव 2026 में अकेले मैदान में उतरेगी। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया है कि जो भी चुनाव लड़ना चाहते हैं, उन्हें पार्टी से ही टिकट मिलेगा। उनका यह बयान ऐसे समय पर आया है जब अपना दल को भाजपा का एक भरोसेमंद सहयोगी माना जाता रहा है।
सुभासपा और निषाद पार्टी भी हुईं अलग
इसी क्रम में सुभासपा के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर और निषाद पार्टी के प्रमुख डॉ. संजय निषाद ने भी अपने-अपने कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर पर मजबूती से तैयारी करने को कहा है। डॉ. निषाद ने साफ संदेश दिया है कि हर बूथ पर पार्टी का झंडा लहराना चाहिए। जानकारों का मानना है कि इन दलों की यह तैयारी सिर्फ पंचायत चुनाव तक सीमित नहीं है, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनाव की रणनीति का भी हिस्सा हो सकती है।
भाजपा को लग सकता है करारा झटका
गौरतलब है कि इन क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर भाजपा ने उत्तर प्रदेश में एक मजबूत सामाजिक समीकरण खड़ा किया था। यदि ये दल अलग होकर चुनाव लड़ते हैं, तो वोटों का बंटवारा तय है, जिससे भाजपा की पकड़ कमजोर पड़ सकती है। यह स्थिति विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।
केशव प्रसाद मौर्य का बयान
इस पूरे घटनाक्रम पर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सहयोगी दलों के बयानों को लेकर अभी पार्टी स्तर पर कोई औपचारिक चर्चा नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि यह तय नहीं है कि कौन-सा दल अकेले चुनाव लड़ेगा और कौन-सा गठबंधन में। फिर भी, सहयोगी दलों की यह दूरी भाजपा के लिए आगामी पंचायत चुनाव को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना रही है।
उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव 2026 से पहले एनडीए में उभरते मतभेद भाजपा के लिए खतरे की घंटी हैं। यदि सहयोगी दल अपने फैसले पर अडिग रहते हैं, तो न सिर्फ पंचायत चुनाव, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को रणनीति पुनर्विचार करनी पड़ सकती है।