उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2026 की तैयारियां शुरू हो गई हैं। राज्य निर्वाचन आयोग ने मतपेटिकाओं की आपूर्ति के लिए टेंडर जारी किया है। जानिए किसकी होगी असली परीक्षा और क्या है गांवों का सियासी माहौल।
संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव 2026 को लेकर हलचल तेज हो गई है। राज्य चुनाव आयोग ने सक्रियता दिखाते हुए व्यापक तैयारियों की शुरुआत कर दी है। यह चुनाव 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले होने हैं, इसलिए इसे राजनीतिक दलों के लिए एक तरह से सेमीफाइनल माना जा रहा है।
भाजपा की परीक्षा, सपा की चुनौती
लोकसभा चुनावों के बाद राज्य में भाजपा की हिंदुत्व की धार कुछ कुंद पड़ी नजर आई है। ऐसे में पंचायत चुनाव भाजपा के लिए अपनी साख बचाने का मौका है, तो वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए यह असली परीक्षा होगी। इन चुनावों में प्रदर्शन आगामी विधानसभा चुनाव के लिए माहौल बना सकता है।
जनवरी-फरवरी 2026 में हो सकते हैं चुनाव
इन चुनावों का आयोजन जनवरी-फरवरी 2026 में संभावित है। यूपी में कुल 57,691 ग्राम पंचायतें, 826 ब्लॉक और 75 जिला पंचायतें हैं। इसके लिए राज्य निर्वाचन आयोग ने 67 जिलों में मतदान के लिए 1.27 लाख सीआर शीट ग्रेड CR-1 की मतपेटिकाओं की आपूर्ति हेतु ई-टेंडर जारी कर दिया है। यह मतपेटिकाएं चार महीने के भीतर उपलब्ध करानी होंगी।
गुणवत्ता और अनुभव पर खास जोर
उपनिर्वाचन आयुक्त संत कुमार के अनुसार, पंचायत चुनाव एक बड़ा और संवेदनशील आयोजन होता है, लिहाज़ा मतपेटिकाओं की गुणवत्ता, सुरक्षा और समयबद्ध डिलीवरी पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। टेंडर केवल उन्हीं फर्मों को मिलेगा जिनके पास पिछले पांच वर्षों में कम से कम 15 करोड़ रुपये की आपूर्ति का अनुभव हो।
गांवों में प्रधानी को लेकर हलचल शुरू
गांवों में प्रधान पद को लेकर चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं। पोस्टर और होर्डिंग्स के ज़रिए संभावित दावेदार अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगे हैं। हालांकि, उम्मीदवारों की अंतिम तस्वीर आरक्षण की घोषणा के बाद ही साफ होगी। बीडीसी और जिला पंचायत सदस्य के लिए भी तैयारियां जोरों पर हैं।
पिछली बार निर्दलियों का बोलबाला
पिछले पंचायत चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों ने सभी बड़ी पार्टियों को पीछे छोड़ दिया था। 3,047 जिला पंचायत सीटों में से भाजपा को 768, सपा को 759, और निर्दलियों को सबसे अधिक 944 सीटें मिली थीं। इससे साफ है कि पंचायत स्तर पर व्यक्तिगत पकड़ और स्थानीय प्रभाव ही सबसे बड़ी पूंजी है।
जैसे-जैसे पंचायत चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राज्य में राजनीतिक सरगर्मी तेज होती जा रही है। यह चुनाव जहां सत्ता पक्ष के लिए जन समर्थन की कसौटी होंगे, वहीं विपक्ष के लिए पुनर्जीवन का अवसर साबित हो सकते हैं। गांव-गांव में अब फिर से लोकतंत्र की सबसे बुनियादी इकाई को लेकर नई उम्मीदें जाग उठी हैं।
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