उत्तर प्रदेश के शामली जिले में एक व्यक्ति लाउडस्पीकर की तेज आवाज से परेशान होकर गांव छोड़ने की धमकी दे रहा है। उसने सोशल मीडिया पर अपना दर्द साझा करते हुए पुलिस को मकान की चाबी सौंपने की बात कही है। पुलिस ने मामले की दोबारा जांच शुरू कर दी है।
चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
शामली, उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश के शामली जिले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां लाउडस्पीकर की तेज आवाज से परेशान एक व्यक्ति ने गांव से पलायन करने की धमकी दी है। यही नहीं, उसने सोशल मीडिया पर पुलिस को मकान की चाबी सौंपने की बात भी कही है।
मामला शामली जिले के बाबरी थाना क्षेत्र के गांव भनेड़ा जट का है, जहां राजीव कुमार नामक व्यक्ति धार्मिक स्थल पर बजने वाले लाउडस्पीकर की आवाज से मानसिक रूप से परेशान है।
राजीव कुमार का कहना है कि वह पिछले एक महीने से लाउडस्पीकर की तेज आवाज से परेशान हैं। उन्होंने इस संबंध में कई बार शिकायत की। यही नहीं, उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डीजीपी उत्तर प्रदेश को भी पत्र लिखकर अपनी पीड़ा जताई।
शिकायत के बाद पुलिस ने मौके पर जांच की, लेकिन जांच में ध्वनि स्तर मानक के अनुरूप पाया गया, जिसके चलते कार्रवाई नहीं की गई और मामला बंद कर दिया गया।
सोशल मीडिया पर भड़के, जताई पलायन की चेतावनी
अब शनिवार रात राजीव कुमार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक भावुक पोस्ट साझा की। उन्होंने लिखा:
“लाउडस्पीकर की तेज आवाज के सबूत देते-देते थक चुका हूं। जल्द गांव से पलायन कर लूंगा। मकान की चाबी भी पुलिस को देकर जाऊंगा, जिससे पुलिस मकान बेचकर भ्रष्टाचार में कुछ सहयोग कर सके।”
उनकी इस पोस्ट ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी, जिससे प्रशासन हरकत में आ गया।
एसपी राम सेवक गौतम ने दिया त्वरित आदेश
शिकायत को गंभीरता से लेते हुए शामली के एसपी राम सेवक गौतम ने मामले की पुनः जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने बाबरी थाना पुलिस को निर्देशित किया कि इस प्रकरण की गहनता से जांच की जाए और वास्तविक स्थिति को सामने लाया जाए।
शामली पुलिस ने भी एक्स पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा:
“इस प्रकरण में बाबरी पुलिस को गहनता से जांच के निर्देश दिए गए हैं।”
क्या कहता है कानून?
भारतीय कानून के तहत सार्वजनिक स्थानों पर ध्वनि विस्तारक यंत्रों का प्रयोग ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) नियंत्रण अधिनियम के अंतर्गत आता है। धार्मिक स्थलों में लाउडस्पीकर के प्रयोग के लिए प्रशासन से अनुमति आवश्यक होती है, और ध्वनि स्तर का मानक तय है। यदि यह मानक पार किया जाता है, तो कार्रवाई की जा सकती है।
राजीव कुमार की यह आपबीती दर्शाती है कि ध्वनि प्रदूषण केवल एक तकनीकी विषय नहीं, बल्कि एक गंभीर सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा भी है। जहां एक ओर प्रशासन की जांच मानकों के अनुरूप रही, वहीं दूसरी ओर पीड़ित की मानसिक परेशानी और असहायता भी नज़रअंदाज़ नहीं की जा सकती।
अब देखना यह होगा कि दोबारा जांच के बाद राजीव को राहत मिलती है या नहीं। यदि नहीं, तो यह मामला प्रशासनिक व्यवस्था और नागरिक अधिकारों की संतुलन नीति पर भी सवाल खड़ा करेगा।