फिरोजाबाद जिले के शिकोहाबाद क्षेत्र में बीएसए द्वारा किए गए औचक निरीक्षण में स्कूलों की बदहाल स्थिति उजागर हुई। शिक्षकों की अनुपस्थिति, संसाधनों का दुरुपयोग और प्रशासनिक लापरवाही के चलते तीन विद्यालयों के शिक्षकों का एक दिन का वेतन रोका गया।
नरेश ठाकुर की रिपोर्ट
फिरोजाबाद/शिकोहाबाद। शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और गुणवत्ता की दिशा में शासन द्वारा उठाए जा रहे कदमों के बावजूद, जमीनी हकीकत कुछ और ही तस्वीर पेश कर रही है। हाल ही में फिरोजाबाद जिले के शिकोहाबाद क्षेत्र में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) द्वारा किए गए औचक निरीक्षण के दौरान कई चौंकाने वाली अनियमितताएं सामने आईं।
शिक्षकों की अनुपस्थिति और लापरवाही
सबसे पहले, निरीक्षण में यह पाया गया कि कई विद्यालयों में शिक्षक ड्यूटी पर उपस्थित नहीं थे। यह स्थिति तब और अधिक चिंताजनक हो गई जब यह भी स्पष्ट हुआ कि कुछ विद्यालयों में समय सारिणी ही तैयार नहीं की गई थी। इतना ही नहीं, कक्षाओं का कोई निश्चित आवंटन भी नहीं किया गया था, जिससे विद्यालयों में शिक्षा की प्रक्रिया पूरी तरह अव्यवस्थित प्रतीत हुई।
इसके अतिरिक्त, कई छात्र स्कूल ड्रेस में नहीं थे, जिससे अनुशासनहीनता और प्रबंधन की लापरवाही सामने आई। बीएसए ने साफ तौर पर कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट के लिए सिर्फ संसाधनों की कमी नहीं, बल्कि शिक्षकों की उदासीनता भी जिम्मेदार है।
नगला पोहपी उच्च प्राथमिक विद्यालय: उपेक्षा की मिसाल
उच्च प्राथमिक विद्यालय नगला पोहपी में निरीक्षण के समय शिक्षिका कविता यादव अनुपस्थित पाई गईं। छात्रों की ड्रेस की स्थिति भी बेहद असंतोषजनक रही। सबसे गंभीर बात यह रही कि विद्यालय द्वारा प्राप्त कंपोजिट स्कूल ग्रांट का व्यय विवरण विद्यालय की दीवार पर प्रदर्शित नहीं किया गया था, जो शासनादेश के अनुसार अनिवार्य है।
कंपोजिट विद्यालय लभौआ: टैबलेट का निजी उपयोग
कंपोजिट विद्यालय लभौआ में भी स्थिति चिंताजनक रही। सहायक अध्यापक सुनयना यादव निरीक्षण के समय गैरहाजिर थीं और छात्रों की ड्रेस की स्थिति नगला पोहपी जैसी ही रही। सबसे गंभीर मामला तब सामने आया जब यह पाया गया कि विद्यालय को शासन द्वारा उपलब्ध कराया गया टैबलेट, जो छात्रों की ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज करने एवं शैक्षिक गतिविधियों के लिए था, प्रधानाध्यापक ने अपने घर पर रख लिया था। यह न केवल लापरवाही का मामला है, बल्कि सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग का स्पष्ट प्रमाण भी है।
बीएसए का सख्त संदेश और कार्रवाई
निरीक्षण के उपरांत बीएसए ने तत्काल प्रभाव से तीनों विद्यालयों के समस्त शिक्षकों का एक दिन का वेतन रोकने का आदेश दिया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आगे इस प्रकार की लापरवाही मिलने पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। पत्रकारों से बातचीत में बीएसए ने कहा,
“शासन द्वारा जो सुविधाएं और संसाधन शिक्षकों को दिए जा रहे हैं, उनके अनुपात में अपेक्षित समर्पण दिखाई नहीं दे रहा है। यह स्थिति बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।”
भविष्य की योजनाएं और कड़े निर्देश
बीएसए ने बताया कि अब प्रत्येक विद्यालय का माह में कम से कम दो बार औचक निरीक्षण किया जाएगा। सभी प्रधानाध्यापकों को स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि विद्यालयों में उपलब्ध संसाधनों का उचित उपयोग हो तथा उनका विवरण सही ढंग से प्रदर्शित किया जाए। इसके अलावा, शिक्षकों की उपस्थिति ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से अनिवार्य रूप से मॉनिटर की जाएगी।
शिक्षा व्यवस्था पर उठते सवाल
निरीक्षण में उजागर हुई अनियमितताओं ने एक बार फिर शिक्षा व्यवस्था की वास्तविक स्थिति पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। जब शिक्षक समय पर विद्यालय नहीं पहुंचते, जब छात्रों के लिए जरूरी संसाधनों का दुरुपयोग होता है, और जब प्रशासनिक व्यवस्थाएं चरमराई हुई हों—तो ऐसी स्थिति में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कल्पना करना कठिन हो जाता है।
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यदि शिक्षकों की जवाबदेही तय नहीं की गई, तो सरकार की “सबको शिक्षा, अच्छी शिक्षा” की परिकल्पना अधूरी ही रह जाएगी।
बीएसए ने अंत में यह भी कहा कि
“एक शिक्षक केवल पढ़ाई नहीं कराता, बल्कि समाज के चरित्र निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। ऐसे में उसकी लापरवाही शैक्षणिक के साथ-साथ नैतिक विफलता भी है।”
फिरोजाबाद में बीएसए द्वारा की गई यह कार्रवाई सिर्फ एक औचक निरीक्षण नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था को सुधारने की एक चेतावनी है। यदि शिक्षक और विद्यालय प्रशासन समय रहते सजग नहीं हुए, तो आने वाले समय में और भी कठोर कदम उठाए जा सकते हैं। यह समय है आत्ममंथन का—क्या हम वाकई नई पीढ़ी को वह शिक्षा दे रहे हैं, जिसकी उन्हें जरूरत है?