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खास खबर

खौफ का खात्मा: बसवराजू की खूनी विरासत, जंगल से माओवादी जनरल बनने तक की कहानी

बस्तर के जंगलों में 21 दिन की घेराबंदी, और फिर खत्म हुआ 40 साल का नक्सल राज

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छत्तीसगढ़ के जंगलों में दशकों तक खौफ का पर्याय बना बसवराजू आखिरकार सुरक्षाबलों के ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट और बोटेर एनकाउंटर में मारा गया। जानिए उसकी पूरी कहानी – कबड्डी खिलाड़ी से माओवादी महासचिव तक का सफर और उसका खौफनाक अंजाम।

हरीश चन्द्र गुप्ता की रिपोर्ट

खौफ का खात्मा: बसवराजू की कहानी, जंगल से जनरल तक

18 मई: बोटेर में मौत की घेराबंदी

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों  दंतेवाड़ा, कोंडागांव, बीजापुर और नारायणपुर – में सुरक्षा बलों ने 18 मई को बोटेर इलाके में एक बड़ा ऑपरेशन शुरू किया। इसमें डिस्ट्रिक्ट रिज़र्व गार्ड (DRG), बस्तर फाइटर्स, STF और CRPF शामिल थे।

21 मई की सुबह: फायरिंग और अंत की शुरुआत

तीन दिन की घेराबंदी के बाद 21 मई की भोर में ऑपरेशन का आखिरी चरण शुरू हुआ। जबरदस्त गोलीबारी के बीच एक-एक कर नक्सली ढेर होते गए। कुछ ही देर में खबर आई – बसवराजू मारा गया।

नंबाला केशव राव: एक खिलाड़ी से कुख्यात गुरिल्ला कमांडर तक

खेल के मैदान से विचारधारा की ओर

बसवराजू, जिसका असली नाम नंबाला केशव राव था, आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम ज़िले का निवासी था। नेशनल लेवल के कबड्डी और वॉलीबॉल खिलाड़ी रह चुके बसवराजू ने वारंगल के रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज (अब NIT) से B.Tech किया।

कॉलेज के दिनों में ही वह वामपंथी राजनीति की ओर आकर्षित हुआ और CPI (ML) पीपुल्स वॉर ग्रुप में शामिल हो गया।

1980: पहली झड़प और पुलिस गिरफ्तारी

1980 में RSU और ABVP के बीच झड़प में शामिल बसवराजू पहली बार पुलिस की गिरफ्त में आया, लेकिन फिर कभी पकड़ा नहीं गया।

माओवादी ट्रेनिंग और लिट्टे से संबंध

बस्तर में पहली तैनाती (1987)

1987 में उसे बस्तर के जंगलों में भेजा गया, जहां उसे लिट्टे (LTTE) के विशेषज्ञों ने IED लगाने, घात लगाकर हमला करने और गुरिल्ला रणनीति की ट्रेनिंग दी।

विस्फोटकों का मास्टरमाइंड

बसवराजू जल्द ही अपने संगठन में एक्सप्लोसिव और मिलिट्री टैक्टिक्स एक्सपर्ट बन गया।

पीपुल्स वॉर से CPI (माओवादी) तक का उदय

  • 1992: केंद्रीय कमिटी में एंट्री
  • 1992 में उसे पीपुल्स वॉर की केंद्रीय समिति का सदस्य बनाया गया। उसका कद लगातार बढ़ता गया।
  • 2004: माओवादियों का विलय और CMC का गठन
  • CPI (माओवादी) के गठन के साथ ही बसवराजू को Central Military Commission (CMC) का प्रमुख बना दिया गया – माओवादियों का सैन्य दिमाग।

बसवराजू का खौफ: बड़े हमले और बढ़ता इनाम

प्रमुख हमलों की लिस्ट

  • 2010: दंतेवाड़ा हमला – 76 CRPF जवान शहीद
  • 2013: झीरम घाटी हमला – 27 नेता व कार्यकर्ता मारे गए
  • 2018: तेलुगु देशम पार्टी नेताओं की हत्या
  • 2019: गढ़चिरौली ब्लास्ट – 15 पुलिसकर्मी शहीद
  • 2021-2022: सुकमा-बीजापुर हमला – 22 सुरक्षाकर्मी शहीद
  • 2023-2025: कई IED हमले, जिसमें दर्जनों जवान मारे गए

CMC से महासचिव तक

2017 में गणपति को किनारे कर पार्टी की कमान बसवराजू को सौंपी गई। 2018 में वह CPI (माओवादी) का महासचिव बन गया। उसके चारों ओर बना 150 नक्सलियों का सुरक्षा घेरा और उस पर घोषित इनाम 1.5 करोड़ रुपये – उसकी हैसियत को दर्शाते थे।

ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट: अंत की पटकथा

करेगुट्टा हिल्स में सुरक्षाबलों की एंट्री

अप्रैल 2025 में सुरक्षाबलों ने ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट शुरू किया। करेगुट्टा हिल्स को चारों ओर से घेरा गया। 21 दिन तक चली मुठभेड़ में 31 माओवादी मारे गए।

बसवराजू की अंतिम भागदौड़

इस ऑपरेशन के दौरान बसवराजू वहां से भाग निकला और बोटेर के जंगलों में छिप गया। लेकिन सुरक्षा बलों को मिली पुख्ता जानकारी के आधार पर 21 मई को उसे ढेर कर दिया गया।

एक युग का अंत

बसवराजू की मौत माओवादियों के लिए एक बड़ा झटका है। उसका अंत न केवल एक आतंक की कहानी का पटाक्षेप है, बल्कि यह भी दिखाता है कि संगठित और निर्णायक सुरक्षा रणनीति से आंतरिक सुरक्षा को स्थायित्व दिया जा सकता है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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