कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के संभल जिले की कुंदरकी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा की भारी जीत ने राजनीतिक हलकों में नई चर्चा को जन्म दिया है। 60% मुस्लिम आबादी वाली इस सीट पर भाजपा ने 78% वोट हासिल कर विपक्ष को चौंका दिया। भाजपा की इस अप्रत्याशित जीत के तुरंत बाद संभल में एक धार्मिक स्थल के सर्वेक्षण को लेकर तनाव बढ़ गया, जिसने हिंसा का रूप ले लिया और पांच लोगों की मौत हो गई। इस घटना ने प्रदेश की राजनीति को एक बार फिर से अल्पसंख्यक वोटों की सियासत की ओर मोड़ दिया है।
विपक्ष की नई रणनीति
इस हिंसक घटना के बाद समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस ने संभल को राजनीतिक मुद्दा बनाने की पूरी कोशिश की। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस मामले में सरकार को सड़क से लेकर संसद तक घेरने की रणनीति अपनाई। सपा का 15 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल हिंसा प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने निकला था, लेकिन प्रशासन ने उन्हें वहां जाने से रोक दिया।
कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर सक्रियता दिखाई। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने हिंसा प्रभावित परिवारों से मिलने के लिए संभल जाने का प्रयास किया, लेकिन प्रशासन ने उन्हें यूपी बॉर्डर पर रोक दिया। इसके बाद राहुल गांधी ने दिल्ली में ही मृतकों के परिजनों से मुलाकात कर सांत्वना दी। कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी अलग-अलग जिलों में खुद को नजरबंद किए जाने का आरोप लगाया।
आजम खान की तीखी प्रतिक्रिया
इस बीच समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद आजम खान ने जेल से एक पत्र जारी कर I.N.D.I.A. गठबंधन पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि गठबंधन रामपुर में हुए अन्याय पर खामोश रहा और मुस्लिम नेतृत्व को खत्म करने की कोशिशें होती रहीं। आजम ने आरोप लगाया कि अगर रामपुर में हुए अत्याचारों का विरोध सही तरीके से होता तो संभल में हिंसा नहीं होती।
उन्होंने सपा को नसीहत देते हुए कहा कि जिस तरह संभल का मुद्दा संसद में उठाया जा रहा है, उसी तरह रामपुर के मुद्दे को भी मजबूती से उठाना चाहिए। आजम खान ने गठबंधन से स्पष्टता की मांग की और कहा कि अगर गठबंधन मुस्लिमों की समस्याओं पर चुप्पी साधे रहा तो मुसलमानों को अपने भविष्य पर दोबारा विचार करना होगा।
सियासी नफा-नुकसान का खेल
संभल की घटना ने यूपी की राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। सपा, जो पिछले कुछ चुनावों में मुस्लिम मतदाताओं की एकतरफा पसंद बनी हुई थी, हाल के उपचुनावों में मुस्लिम बहुल सीटों पर हार का सामना कर चुकी है। इस हार के बाद सपा मुस्लिम वोटों को फिर से अपने पाले में लाने के लिए अल्पसंख्यकों के मुद्दों को जोर-शोर से उठाने की रणनीति पर काम कर रही है।
वहीं, कांग्रेस को लोकसभा में मिली 6 सीटों के बाद उम्मीदें बढ़ी हैं। कांग्रेस भी अल्पसंख्यक मतदाताओं को लुभाकर 2027 के विधानसभा चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है।
ध्रुवीकरण की राजनीति
भाजपा की जीत और उसके बाद की हिंसा के मुद्दे ने एक बार फिर राज्य में ध्रुवीकरण की राजनीति को हवा दी है। भाजपा इस मुद्दे को विपक्ष की साजिश बता रही है, जबकि विपक्ष इसे सत्ता प्रायोजित अत्याचार करार दे रहा है।
संभल के घटनाक्रम ने दिखाया है कि यूपी की राजनीति में अल्पसंख्यक मतदाताओं का कितना महत्व है और किस तरह विपक्ष और सत्तारूढ़ दल अपनी-अपनी रणनीतियों के साथ इस ध्रुवीकरण को साधने में लगे हैं।