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November 2, 2024 9:09 am

यूपी में “चाचा-भतीजे” की जंग और महाराष्ट्र में “पवार” परिवार के “पावर” की चर्चा क्या भाजपा को खिलाएगी लड्डू ?

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट 

लखनऊ। महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर से उथल-पुथल मच गई है, जिसके बाद उत्तर प्रदेश में चर्चा का बाजार गरम हो गया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता अजित पवार (Ajit Pawar) एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम के तहत फिर से महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री बन गए हैं। एनसीपी प्रमुख शरद पवार और भतीजे अजित पवार के बीच दूरियां बहुत बढ़ गई थीं। इन हालात के बीच समाजवादी पार्टी में चाचा और भतीजे के बीच हुई वर्चस्व की जंग को लोग याद करने लगे हैं। सवाल यह भी उठने लगा है कि क्या यूपी की तरह ही महाराष्ट्र में भी पारिवारिक विवाद के बीच भाजपा फायदा उठाने की स्थिति में रहेगी।

2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की जीत के बाद मुलायम सिंह यादव ने बेटे अखिलेश को मुख्यमंत्री बना दिया था। इसके बाद से चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश के बीच प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष जंग देखने को मिलती रही। स्थिति यह हो गई कि मुलायम सरकार में नंबर दो की हैसियत में रहे शिवपाल ने अपनी अलग प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली।

मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के साथ ही सैफई परिवार के मुखिया भी रहे। जब तक सक्रिय रहे, तब तक सभी सदस्य एक डोर से बंधे रहे। उनके कमजोर पड़ते ही अंदरूनी कलह खुलकर सामने आने लगी। अखिलेश ने पॉवर में आते ही राजनीति के तौर-तरीके बदले। भ्रष्टाचार और बाहुबल के आरोपी नेताओं के साथ ही सीनियर अधिकारियों को निकाल दिया। इससे शिवपाल नाराज हो गए। 2016 में टिकट बंटवारे को लेकर मुलायम ने अखिलेश को ही पार्टी से निकाल दिया।

विरोध के बीच अखिलेश की सपा में वापसी के साथ ही उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया। शिवपाल और अखिलेश के बीच विवाद में परिवार और पार्टी में दो फाड़ हो गया। शिवपाल खेमे के लोगों ने रामगोपाल यादव पर ठीकरा फोड़ा। वहीं अखिलेश खेमे के लोगों ने मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता को कलह का आरोपी बनाया। इस बीच परिवार के करीबी लोग भी सपा से दूर हो गए। इसका सीधा असर राजनीति पर दिखा, जहां बीजेपी ने फायदा उठा लिया।

2022 के विधानसभा चुनाव में शिवपाल यादव ने अखिलेश का साथ कर लिया। लेकिन उन्हें सीटों के बंटवारे के मामले में उचित सम्मान नहीं मिला। सपा की हार के बाद दूरियां एक बार फिर से बढ़ गईं। शिवपाल ने लेटर जारी कर अपनी पीड़ा जाहिर की। कभी महाभारत तो कभी उचित सम्मान का हवाला दिया। इस पर सपा की तरफ से भी दो टूक जवाब मिला कि जहां सम्मान मिले, वहां चले जाइए। बहरहाल मुलायम के निधन पर दोनों में सामंजस्य दिखा जो अभी तक कायम चल रहा है।

महाराष्ट्र की पवार फैमिली में लंबे समय से सबकुछ ठीक नहीं चल रहा था। पार्टी के स्थापना दिवस पर जिस तरह से शरद पवार ने अजित को संगठन से दूर रखा, उससे अजित बेहद खफा थे। कहते हैं कि इसे लेकर पवार परिवार में काफी लंबी बहस हुई। अजित ने पार्टी के लोकतंत्र पर भी सवालिया निशान लगाया। सुप्रिया सुले का कद बढ़ाए जाने से भी वह खफा चल रहे थे।

अजित पिछले चार साल में तीसरी बार राज्य के उपमुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए हैं। अज‍ित पवार के अलावा उनके साथ एनसीपी के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल, दिलीप वलसे पाटिल, हसन मुश्रीफ, धनंजय मुंडे, धर्मराव बाबा अत्राम, अदिति तटकरे, संजय बनसोडे और अनिल भाईदास पाटिल ने भी मंत्री पद की शपथ ली है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के अब दो उपमुख्यमंत्री होंगे। देवेंद्र फड़णवीस को केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी मिलने की भी उम्मीद है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."