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गोरखपुर

बुलेट और बैलेट दोनों पर धाक जमाई और शासन किया…. ऐसे ही नहीं बन गए बाहुबली नेताओं के अगुआ….!!

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राकेश तिवारी की रिपोर्ट 

गोरखपुर: आज यूपी की राजनीति में बाहुबली नेता एक आम सा विशेषण है। इस विशेषण का जन्‍म हरिशंकर तिवारी के साथ शुरू हुआ जब 1980 के दशक में उन्‍होंने जेल में रहते हुए कांग्रेस के उम्‍मीदवार को हराया। यह वह समय था जब पूरे देश में इंदिरा गांधी के निधन के बाद कांग्रेस के लिए सहानुभूति की आंधी चल रही थी।

उत्तर प्रदेश में राजनीति दशकों तक अपनी छाप छोड़ने वाले बाहुबली नेता पंडित हरिशंकर तिवारी का मंगलवार को गोरखपुर में निधन हो गया। उनके निधन की सूचना मिलते ही धर्मशाला स्थित उनके आवास पर हजारों समर्थकों की भीड़ जुट गई। हरिशंकर तिवारी को पूर्वांचल ही नहीं पूरे उत्तर प्रदेश की राजनीति को बदलने वाला नाम माना जाता रहा है। 

हाँ, उत्तर प्रदेश में हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही द्वारा राजनीति और सियासत में अपराधीकरण की शुरुआत के मामले में बात सही है। हरिशंकर तिवारी एक प्रसिद्ध राजनेता थे जिन्हें उनके अनेक मुख्यमंत्री पद की उम्मीद थी। उनकी हत्या वर्ष 2008 में हुई थी और उसके पश्चात उनके निकटस्थ और प्रतिद्वंद्वी वीरेंद्र शाही द्वारा यह घोषणा की गई थी कि तिवारी की हत्या का पीछा राजनीतिक माफिया संगठन कर रहा है।

उत्तर प्रदेश में पहली बार माफिया शब्द का इस्तेमाल भी पूर्वांचल के इसी बाहुबली के लिए किया गया था। इससे पहले उत्तर प्रदेश में बाहुबली शब्द का प्रयोग अपराधिक तत्वों या दुराचारी राजनेताओं को संकेत के रूप में किया जाता था। यह अपराधी तत्व नियमित तौर पर अपनी शक्ति और संसाधनों का उपयोग करके अधिकाधिक सत्ता और प्रभाव प्राप्त करने का प्रयास करते थे।

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हरिशंकर तिवारी ऐसे ही पूर्वांचल के सबसे रसूखदार और ब्राह्मण राजनीति के अगुआ नहीं बने। उनकी राजनीति उस विचारधारा की उपज थी जिसने इमरजेंसी के विरोध में तानाशाही सत्‍ता से लोहा लेने में हिचक नहीं दिखाई। पूर्वांचल में जयप्रकाश नारायण का आंदोलन छात्र नेताओं के लिए नर्सरी का काम कर रहा था। हरिशंकर तिवारी की छात्र राजनीति यहीं से निकली थी।

हरिशंकर तिवारी गोरखपुर के बड़हलगंज क्षेत्र के टांडा गांव के रहने वाले थे। बात 80 के दशक की है, जब छात्र राजनीति में दो युवाओं ने पूर्वांचल की राजनीति पर अपनी छाप छोड़नी शुरू की। 

एक थे वीरेंद्र शाही, जो ठाकुर लॉबी के अगुवा माने गए और जिन्हें गोरक्षपीठ का समर्थन माना जाता था। वहीं दूसरी तरफ हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों का नेता बनकर उभरे। दोनों नेताओं में अदावत ने देखते ही देखते पूरे क्षेत्र में ब्राह्मण-ठाकुर लामबंदी शुरू करा दी। दोनों ही अपराध की दुनिया में भी अपनी धाक जमाते गए और इसी के साथ शुरू हुआ गैंगवॉर का सिलसिला।

गोरखपुर उत्तर पूर्व रेलवे का मुख्यालय है। यहां से रेलवे का टेंडर हासिल करने के लिए माफियाओं में हाेड़ रहती थी। तिवारी और शाही गैंग ने इस होड़ में दुश्मनी की सारी हदें पीछे छोड़ दीं। स्थिति ये हुई कि गैंगवार की धमक लखनऊ तक सुनी जाने लगी थी। उत्तर प्रदेश में तब वीर बहादुर की सरकार हुआ करती थी। वह भी गोरखपुर के ही थे और कहा जाता है कि इन दोनों वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी गैंग पर नियंत्रण के लिए ही यूपी में पहली बार गैंगस्टर एक्ट लागू किया गया। वहीं गैंगस्टर एक्ट जिसे आज आपे योगी सरकार के माफियाओं के खिलाफ एक्शन में आए दिन सुनते रहते हैं।

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पुलिस सख्ती करने लगी थी और हरिशंकर तिवारी पर कई केस लग चुके थे। लेकिन हरिशंकर तिवारी यहां रुकने वाले नहीं थे। 1985 में हरिशंकर तिवारी जेल में बंद थे। 80 के दशक में उनके खिलाफ हत्या की साजिश, किडनैपिंग, लूट, रंगदारी आदि के कई मुकदमे दर्ज हो चुके थे। लेकिन किसे पता था जेल से उत्तर प्रदेश की सियासत बदलने जा रही है। 1985 में हरिशंकर तिवारी ने जेल से ही निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर सभी काे चौंका दिया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद तीन बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। नब्बे का दशक खत्म होते-होते हरिशंकर तिवारी पूर्वांचल में ब्राह्मणों का सबसे मजबूत चेहरा बन चुके थे। सरकार किसी की भी हो माना जाता था कि हरिशंकर तिवारी मंत्री बनेंगे ही।

90 के दशक में जब श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ में वीरेंद्र शाही की सरेआम हत्या कर दी तो पहले अफवाहें यही उड़ी थीं कि हरिशंकर तिवारी ने शाही को मरवा दिया और श्री प्रकाश शुक्ला उनका ही आदमी है। लेकिन बाद में चीजें साफ हो गईं और पता चला कि श्रीप्रकाश शुक्ला खुद अपना गैंग चल रहा है।

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वह 6 बार विधायक रहे और यूपी सरकार में 5 बार कैबिनेट मंत्री। यहां तक कि एक दिन के सीएम जगदंबिका पाल की कैबिनेट में भी हरिशंकर तिवारी का नाम शामिल था। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने तो यहां भी ‘पंडित जी’ को कैबिनेट में जगह दी गई, यही नहीं राम प्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह की सरकार के बाद मायावती और मुलायम सरकार में भी हरिशंकर तिवारी मंत्री रहे। वीरेंद्र शाही से अदावत के चलते हरिशंकर तिवारी की कभी भी गोरक्षपीठ से संबंध कभी अच्छे नहीं रहे। 2007 में चुनाव हारने के बाद हरिशंकर तिवारी राजनीति से दूर हो गए। उनके दोनों बेटे इस समय समाजवादी पार्टी में हैं।

रॉबिनहुड सरीखी छवि बनाई

माफ‍िया के कारोबार से धीरे-धीरे उनका रसूख बढ़ता गया। लेकिन हरिशंकर तिवारी ने अपनी इमेज गरीबों का दुख दूर करने वाले रॉबिनहुड सरीखे जननायक की बनाई। वह ऐसा करते भी थे। इसी की बदौलत उन्‍हें अपार जनसर्थन मिला। इसी के बल पर वह जेल में रहते हुए भी चुनाव जीते।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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