➡️ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन एक बार फिर अपने विवादित बयान को लेकर सुर्खियों में हैं। इस बार उन्होंने आगरा में एक सभा को संबोधित करते हुए करणी सेना पर तीखा हमला बोला और तीव्र शब्दों में अपनी नाराजगी जाहिर की।
अखिलेश यादव की आगरा यात्रा से पहले चेतावनी
सभा के दौरान रामजीलाल सुमन ने घोषणा की कि 19 अप्रैल को पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव आगरा आने वाले हैं, और इसके साथ ही
“लड़ाई का मैदान तैयार होगा और दो-दो हाथ होंगे।”
उन्होंने इस लड़ाई को राजनीतिक संघर्ष बताते हुए कहा कि “इस लड़ाई को कोई माई का लाल नहीं हरा सकता।”
करणी सेना पर करारा वार
करणी सेना को “फर्जी सेना” बताते हुए सुमन ने कहा कि अब तक लोग थल सेना, वायु सेना और जल सेना के बारे में सुनते थे, लेकिन ये करणी सेना कहां से आ गई? उन्होंने कहा कि अगर करणी सेना को देश से सच में प्रेम है, तो उन्हें चीन से कब्जा छुड़वाने अरुणाचल प्रदेश जाना चाहिए, न कि देश के भीतर नफरत फैलानी चाहिए।
डीएनए और बाबर का जिक्र
सुमन ने करणी सेना पर सीधा हमला करते हुए सवाल उठाया कि
“अगर मुसलमानों में बाबर का डीएनए है, तो बताओ तुममें किसका डीएनए है?”
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारतीय मुसलमान कभी बाबर को अपना आदर्श नहीं मानते, उनका आदर्श तो पैगंबर मोहम्मद साहब हैं। इसके साथ ही उन्होंने याद दिलाया कि जब-जब देश की इज्जत दांव पर लगी, मुसलमानों ने अपनी वफादारी साबित की है।
मंदिर-मस्जिद विवाद पर तीखी प्रतिक्रिया
उन्होंने यह भी कहा कि अगर हर मस्जिद के नीचे मंदिर की बात की जाएगी, तो हमें भी यह कहना पड़ेगा कि हर मंदिर के नीचे एक बौद्ध मठ है। उनके अनुसार, इतिहास को उधेड़ने की कोशिशें देश के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि “गढ़े मुर्दे उखाड़ोगे तो बहुत भारी पड़ेगा।”
करणी सेना का आक्रोश
गौरतलब है कि रामजीलाल सुमन इससे पहले भी राज्यसभा में राणा सांगा को लेकर विवादित टिप्पणी कर चुके हैं, जिसे बाद में संसद की कार्यवाही से हटा दिया गया था। हालांकि, करणी सेना का आक्रोश तब भी शांत नहीं हुआ। बीते शनिवार को राणा सांगा की जयंती पर आगरा में रक्त स्वाभिमान रैली आयोजित की गई, जिसमें लोग तलवारें लहराते हुए सड़कों पर उतरे।
रामजीलाल सुमन के इस बयान ने एक बार फिर राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। जहां एक ओर उनके बयान को मुसलमानों की वफादारी और सम्मान की पैरवी के रूप में देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर करणी सेना समेत हिंदुत्ववादी संगठनों में गहरा रोष है। आगामी 19 अप्रैल को अखिलेश यादव की आगरा यात्रा के मद्देनज़र, यह बयान एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा कर सकता है।