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…पहले इमरान मसूद फिर दानिश अली और अब किससे नाराज हैं बहन जी…पढिए पूरी खबर

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट

लखनऊ: बसपा सुप्रीमो मायावती ने लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बड़ा ऐलान किया है। मायावती ने अपना उत्तराधिकारी भतीजे आकाश आनंद को घोषित कर दिया।

आकाश आनंद को मायावती ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी थी, लेकिन तीन राज्यों में बसपा कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई है। वहीं, मायावती मुस्लिम नेताओं पर कार्रवाई कर रही हैं।

पहले वेस्ट यूपी प्रभारी इमरान मसूद को पार्टी से निष्कासित किया था तो वहीं अब अमरोहा से सांसद दानिश अली को पार्टी से निलंबित कर दिया है। बसपा ने दोनों को पार्टी के विरुद्ध काम किए जाने की बात कहते हुए कार्रवाई की है। दोनों नेताओं का मुस्लिम वोटरों में खास पकड़ है। मुसलमान और दलित बसपा के हमेशा कोर वोटर रहे हैं। इसके बावजूद पहले इमरान मसूद और अब दानिश अली से मायावती अल्पसंख्यक नेताओं से क्यों नाराज हैं।

शनिवार को दानिश अली को किया गया निलंबित

शनिवार को मायावती की ओर से दानिश अली पर पार्टी के विरुद्ध काम करने की बात कहते हुए कार्रवाई की गई। हालांकि, दानिश अली कांग्रेस के करीब आते जा रहे थे। कई मौकों पर उनका कांग्रेस के प्रति प्रेम भी दिखाई दिया था। इसके अलावा 21 सितंबर को लोकसभा में बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी का दानिश अली को आपत्तिजनक शब्द कहना और उसके बाद राहुल गांधी का दानिश अली के आवास पर जाना। साथ ही राहुल गांधी का दानिश अली के पक्ष में बोलना और गले मिलना जैसे कई मौके हैं, जिससे मायावती काफी खफा थीं। यही नहीं कहा तो ये भी जा रहा है कि महुआ मोइत्रा का समर्थन करना दानिश अली को भारी पड़ गया।

कांग्रेस ने बसपा के विधायकों को तोड़कर शामिल किया था

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मायावती को कांग्रेस से चिढ़ इस बात की भी है कि राजस्थान और मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले बसपा के विधायकों को तोड़कर कांग्रेस ने पार्टी में शामिल कर लिया था। यही कारण है कि जो भी बसपा नेता कांग्रेस के करीब होने की कोशिश करता है, उस पर मायावती कड़ा ऐक्शन लेने से नहीं चूकती हैं।

मायावती कांग्रेस पर हमेशा से ही दलितों और अल्पसंख्यकों का हक मारने की बात कहती रही हैं। इंडिया गठबंधन से दूरी भी मायावती की नाराजगी साफ दिखाई देती है।

मुस्लिम वोटों को साधने के लिए इमरान को दी बड़ी जिम्मेदारी, फिर…

वेस्ट यूपी में मुसलमानों में मजबूत पकड़ रखने वाले इमरान मसूद सपा को छोड़कर बसपा में शामिल हुए थे। बसपा में शामिल होने के दो दिन बाद ही मुस्लिम वोटों को साधने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने इमरान मसूद को वेस्ट यूपी के चार मंडलों के साथ ही उत्तराखंड का भी संयोजक बना दिया था। इससे मुस्लिम वोटरों के बीच में बसपा के लिए अच्छा संदेश गया था। यही नहीं इमरान मसूद की भाभी को मायावती ने नगर निकाय चुनाव में सहारनपुर से मेयर प्रत्याशी भी बनाया था, लेकिन वो जीत नहीं पाई थीं।

मायावती को उम्मीद थी कि इमरान मसूद की भाभी को मेयर प्रत्याशी बनाए जाने से मुस्लिम वोट उनको मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चुनाव में हार के बाद मायावती का इमरान मसूद से विश्वास कम होने लगा। वहीं, इमरान मसूद कांग्रेस की ओर नजदीकी बढ़ाने लगे, जोकि मायावती को नागवार गुजरी और उन्होंने इमरान मसूद को पार्टी से निष्कासित करके सबको चौंका दिया था। बाद में इमरान मसूद कांग्रेस में शामिल हो गए।

बार-बार मौका फिर भी नहीं मिले मुस्लिम वोट

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मुसलमानों को हमेशा अपना कोर वोटर बताने वाली मायावती आखिर अल्पसंख्यक नेताओं से इतना ज्यादा क्यों नाराज हो गईं तो इसके कई कारण हैं। मायावती ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में सबसे ज्यादा मुस्लिमों को टिकट दिया। मायावती ने 88 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन एक भी नहीं जीते।

कांग्रेस ने 75 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन कांग्रेस के भी एक मुस्लिम प्रत्याशी नहीं जीते। सपा ने 64 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे, जिसमें 31 जीते थे।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने यूपी नगर निकाय चुनाव 2023 में 17 मेयर सीटों पर सबसे ज्यादा मुस्लिम चेहरों को उतारा था। 11 मेयर सीटों पर मायावती ने मुस्लिमों पर दांव लगाया था, लेकिन एक भी सीट बसपा को नहीं मिली थी।

मायावती को विधानसभा चुनाव 2022 के बाद नगर निकाय चुनाव 2023 में मुस्लिम वोटरों से उम्मीद थी, लेकिन उनकी उम्मीद धराशायी हो गई। यहीं कारण रहा कि मायावती की मुस्लिम नेताओं से नाराजगी बढ़ती चली गई।

सतीश चंद्र मिश्रा को क्या फिर मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी

लोकसभा चुनाव 2024 को देखते हुए मायावती एक बार क्या फिर से सतीश चंद्र मिश्रा को बड़ी जिम्मेदारी दे सकती हैं। बार-बार अल्पसंख्यक नेताओं को मौका देने के बाद भी बसपा को कोई फायदा नहीं हो रहा है। ऐसे में मायावती फिर से क्या सतीश चंद्र मिश्रा को बड़ी जिम्मेदारी देकर ब्राह्मण वोटरों को साधने की कोशिश करेंगी।

2007 में जब मायावती की सरकार बनी तो उस समय ब्राह्मण विधायकों की संख्या सबसे ज्यादा थी।

जिस तरह से मायावती अल्पसंख्यक नेताओं को मौका दे रही हैं तो हो सकता है कि एक बार फिर से ब्राह्मणों पर दांव बसपा सुप्रीमो खेल सकती हैं।

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हटो व्योम के मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं

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