google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
संपादकीय

होली की प्राचीनता पर हावी आधुनिकता: बदलते दौर में रंगों का बदलता स्वरूप

IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
IMG_COM_202505222101103700

अनिल अनूप

होली, रंगों का पर्व, भारतीय संस्कृति की अनूठी पहचान है। यह त्योहार न केवल सामाजिक समरसता का प्रतीक है, बल्कि धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को भी संजोए हुए है। सदियों से यह पर्व प्रेम, भाईचारे और उल्लास का संदेश देता आया है, लेकिन बदलते समय के साथ होली के रूप और परंपराओं में भी व्यापक बदलाव देखने को मिल रहा है।

आज आधुनिकता की चकाचौंध में यह त्योहार अपनी पारंपरिक पहचान को धीरे-धीरे खोता जा रहा है। जहां पहले गुलाल, फूलों और प्राकृतिक रंगों से होली खेली जाती थी, वहीं अब रासायनिक रंगों और पानी की बर्बादी ने इसके मूल स्वरूप को बदल दिया है। इसके अलावा होली के गीत-संगीत, खान-पान, पारिवारिक मेल-मिलाप और सामूहिक आयोजनों में भी आधुनिकता का प्रभाव साफ दिखने लगा है।

होली का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

होली का उत्सव प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है। इसका उल्लेख वेदों, पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। इस पर्व को मनाने के पीछे भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ होलिका की कथा प्रमुख रूप से प्रचलित है।

हिरण्यकश्यप के अहंकार को समाप्त करने और भक्ति की विजय को दर्शाने के लिए होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई थी, जो आज भी भारतीय समाज में बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानी जाती है। इसके अलावा, भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम-लीलाओं से जुड़ी कहानियां भी होली के महत्व को दर्शाती हैं।

वर्षों से चली आ रही इन परंपराओं में समाज की एकजुटता, आपसी प्रेम और सौहार्द का भाव समाहित था। लेकिन वर्तमान समय में होली के उत्सव में व्यक्तिगत स्वार्थ, दिखावे और सामाजिक बिखराव जैसे नकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं।

पारंपरिक होली बनाम आधुनिक होली

1. प्राकृतिक रंगों की जगह रासायनिक रंगों का उपयोग

पहले के समय में होली खेलने के लिए टेसू के फूलों, चंदन, हल्दी और अन्य प्राकृतिक सामग्रियों से रंग बनाए जाते थे। ये रंग त्वचा के लिए सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल होते थे। लेकिन आज बाजार में उपलब्ध रासायनिक रंग और गुलाल त्वचा और आंखों के लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं।

2. सामाजिक समरसता की जगह व्यक्तिगत आयोजन

पारंपरिक होली गांव-शहरों में सामूहिक रूप से मनाई जाती थी। मोहल्लों में होली मिलन समारोह, पारंपरिक गीत-संगीत और नृत्य का आयोजन होता था। लेकिन अब यह त्योहार छोटे-छोटे समूहों तक सिमट गया है। लोग अपने करीबी मित्रों और परिवार तक ही सीमित रह गए हैं, जिससे समाज में पहले जैसा जुड़ाव नहीं रहा।

3. लोक संगीत और फाग की जगह बॉलीवुड गाने

पहले होली का त्योहार फाग और लोकगीतों के बिना अधूरा माना जाता था। लोग समूहों में इकट्ठा होकर ढोलक, मृदंग और मंजीरे की धुनों पर होली के पारंपरिक गीत गाते थे। लेकिन आज के दौर में डीजे और लाउडस्पीकर पर बजने वाले बॉलीवुड गानों ने इन पारंपरिक धुनों को कहीं पीछे छोड़ दिया है।

4. पारंपरिक पकवानों की जगह बाजारू मिठाइयां

होली का असली स्वाद घर में बने पकवानों से जुड़ा होता था। गुझिया, दही-भल्ले, मालपुए, ठंडाई जैसी पारंपरिक मिठाइयां घर-घर में बनती थीं। लेकिन अब होली का खान-पान भी बाजार की मिठाइयों और फास्ट फूड की ओर बढ़ चुका है।

5. पानी की बर्बादी और अनावश्यक खर्च

होली का मुख्य आकर्षण रंगों के साथ पानी के खेल होते थे, लेकिन अब यह बेतहाशा पानी की बर्बादी और फिजूलखर्ची का कारण बन चुका है। कई स्थानों पर पानी के टैंकर मंगवाकर होली खेली जाती है, जो जल संकट वाले क्षेत्रों के लिए चिंता का विषय है।

सोशल मीडिया और डिजिटल युग में होली का बदलता स्वरूप

तकनीक और सोशल मीडिया के युग में होली के जश्न का स्वरूप भी बदल गया है। लोग रंगों से ज्यादा सेल्फी और सोशल मीडिया पोस्ट पर ध्यान देने लगे हैं। पहले जहां होली मिलन समारोह में व्यक्तिगत बातचीत और मेल-जोल को महत्व दिया जाता था, वहीं अब WhatsApp स्टेटस, Instagram रील्स और फेसबुक पोस्ट होली मनाने का नया तरीका बन गए हैं।

हालांकि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने होली की शुभकामनाएं भेजना आसान बना दिया है, लेकिन इसने सामाजिक संबंधों को कमजोर भी किया है। लोग घर बैठे ऑनलाइन ग्रीटिंग्स भेजकर औपचारिकता पूरी कर लेते हैं, जबकि पहले होली के मौके पर मिलने और रंग लगाने की परंपरा अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती थी।

कैसे बचाएं होली की पारंपरिक पहचान?

अगर हम होली के मूल स्वरूप को बचाना चाहते हैं, तो हमें कुछ अहम कदम उठाने होंगे:

1. प्राकृतिक और हर्बल रंगों का उपयोग करें ताकि त्वचा और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।

2. सामूहिक रूप से होली मनाने की परंपरा को दोबारा जीवित करें ताकि समाज में आपसी प्रेम और सौहार्द बना रहे।

3. पारंपरिक लोकगीतों और संगीत को बढ़ावा दें ताकि हमारी सांस्कृतिक धरोहर सुरक्षित रह सके।

4. पानी की बर्बादी रोकें और सूखी होली खेलने को बढ़ावा दें, ताकि जल संकट से बचा जा सके।

5. बाजार के खाने की बजाय घर के बने पकवानों को प्राथमिकता दें, जिससे पारंपरिक स्वाद बरकरार रहे।

6. सोशल मीडिया के बजाय व्यक्तिगत रूप से लोगों से मिलें, ताकि संबंधों में आत्मीयता बनी रहे।

आधुनिकता और परंपरा के बीच संतुलन जरूरी

होली का त्योहार केवल रंगों और उत्सव तक सीमित नहीं, बल्कि यह संस्कृति, इतिहास और परंपराओं से जुड़ा एक महत्वपूर्ण अवसर है। आधुनिकता का प्रभाव किसी भी त्योहार पर पड़ना स्वाभाविक है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अपनी पुरानी परंपराओं और मूल्यों को पूरी तरह भुला दें।

अगर हम होली के पारंपरिक रंगों को बनाए रखते हुए आधुनिकता को सकारात्मक रूप से अपनाएं, तो यह त्योहार अपनी खूबसूरती और मौलिकता को बनाए रखेगा। जरूरत है कि हम अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करें और नई पीढ़ी को इसके महत्व से परिचित कराएं।

होली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन में खुशियों के रंग भरने का अवसर है। इसे हम परंपरा और आधुनिकता के संतुलन के साथ मनाएं, ताकि इसकी वास्तविक पहचान बनी रहे।

🆑विचारोत्तेजक लेख, सोचनीय विचार और उत्कृष्ट साहित्यिक आलेखों के लिए हमारे साथ बने रहें

172 पाठकों ने अब तक पढा
samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close
Close