अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
काशी में मृत्यु को उत्सव क्यों माना जाता है?
जीवन और मृत्यु को लेकर बनारस का अनोखा दृष्टिकोण।
होली का त्योहार भारत के हर कोने में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन काशी की होली कुछ अलग ही होती है। रंगों के इस पर्व को जहाँ आम लोग गुलाल और अबीर से मनाते हैं, वहीं बनारस के मणिकर्णिका घाट पर मसान होली खेली जाती है, जिसमें चिता की भस्म (राख) का उपयोग किया जाता है। यह होली न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि मृत्यु और मोक्ष को उत्सव की तरह स्वीकारने का प्रतीक भी है।
अगर आप यह जानना चाहते हैं कि मसान होली 2025 कब है, इसका धार्मिक महत्व क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है, तो इस लेख में हम आपके लिए इससे जुड़ी हर जानकारी लेकर आए हैं।
मसान होली 2025 कब है?
मसान होली 2025 में 11 मार्च को मनाई जाएगी। यह आयोजन होली से कुछ दिन पहले होता है और इसका संबंध भगवान शिव की आराधना से जुड़ा हुआ है। यह परंपरा हर साल रंगभरी एकादशी के अगले दिन निभाई जाती है।
क्या है मसान होली का धार्मिक महत्व?
1. महादेव और पार्वती के विवाह से जुड़ी मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव ने पार्वती जी से विवाह किया और उन्हें पहली बार काशी लाए, तब रंगभरी एकादशी के दिन भक्तों ने उनके साथ रंग और गुलाल से होली खेली। हालाँकि, इस उत्सव में शिव के प्रिय भूत-प्रेत, अघोरी और तांत्रिक भाग नहीं ले सके। इसलिए, महादेव ने अगले दिन इन्हीं लोगों के साथ चिता भस्म से होली खेली, जिसे आज मसान होली के रूप में मनाया जाता है।
2. मृत्यु और मोक्ष का उत्सव
काशी को मोक्ष की नगरी कहा जाता है और यहाँ मृत्यु को भी एक पवित्र यात्रा माना जाता है। मणिकर्णिका घाट, जहाँ यह अनोखी होली खेली जाती है, दुनिया का ऐसा एकमात्र श्मशान है जहाँ चिताएँ कभी नहीं बुझतीं। यह विश्वास किया जाता है कि इस अग्नि को स्वयं भगवान शिव ने प्रज्वलित किया था और यह हजारों वर्षों से लगातार जल रही है।
3. यमराज पर शिव की विजय
एक अन्य कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने मृत्यु के देवता यमराज को पराजित किया था। इस विजय के उपलक्ष्य में उन्होंने चिता की राख से होली खेली थी। यही कारण है कि यह पर्व मृत्यु के भय को समाप्त करने और मोक्ष प्राप्ति के विश्वास को मजबूत करने का प्रतीक बन गया।
कैसे मनाई जाती है मसान होली?
मसान होली का दृश्य अत्यंत रहस्यमयी और अद्भुत होता है। यह आयोजन विशेष रूप से अघोरी साधुओं, नागा बाबाओं, तांत्रिकों और शिव भक्तों द्वारा किया जाता है। आइए जानते हैं इस अनोखी होली की कुछ खास बातें—
इस दिन अघोरी साधु अपने शरीर पर चिता की भस्म मलते हैं और शिव की भक्ति में लीन हो जाते हैं।
होली का यह जश्न शवदाह गृह के पास मणिकर्णिका घाट पर मनाया जाता है, जहाँ चिताओं से निकली भस्म से एक-दूसरे पर रंग डाला जाता है।
इस दौरान साधु-संत भांग का प्रसाद ग्रहण करते हैं और शिव तांडव स्तोत्र, हर-हर महादेव के जयघोष के साथ उत्सव में भाग लेते हैं।
इस अनूठी होली में शामिल होने के लिए दूर-दूर से भक्त और श्रद्धालु बनारस आते हैं, ताकि वे इस पवित्र परंपरा का अनुभव कर सकें।
काशी में मृत्यु उत्सव क्यों है?
बनारस में मृत्यु को भय या शोक की भावना से नहीं देखा जाता, बल्कि इसे आत्मा की मुक्ति का मार्ग माना जाता है। यहाँ जब कोई प्राणी प्राण त्यागता है, तो लोग इसे विलाप के बजाय एक नए जीवन की शुरुआत मानते हैं। मसान होली इसी विचारधारा का प्रतीक है।
इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य यह समझाना है कि जीवन और मृत्यु एक चक्र का हिस्सा हैं, जिससे हर व्यक्ति को गुजरना होता है। यह पर्व हमें मृत्यु से डरने के बजाय उसे स्वीकारने और मोक्ष की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है।
मसान होली सिर्फ एक अनोखी परंपरा नहीं है, बल्कि यह भगवान शिव की असीम भक्ति और मृत्यु के रहस्य को समझने का एक दिव्य माध्यम है। काशी की यह होली हमें यह सिखाती है कि मृत्यु अंत नहीं, बल्कि आत्मा की मुक्ति का एक पड़ाव है।
अगर आप कभी काशी जाएँ और इस अनोखी होली का अनुभव करना चाहें, तो 11 मार्च 2025 को मणिकर्णिका घाट पर इस अलौकिक दृश्य का साक्षी बनने का मौका न चूकें। हर-हर महादेव!
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